क्या जनगणना के आधार पर वोट पाना आसान होगा?

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अब जनगणना के आधार पर वोट पाना आसान हो जाएगा! अब यह साफ हो गया है कि विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A का नेतृत्व कांग्रेस ही संभालेगी। पहले से ही इसके संकेत मिलने लगे थे। नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता के लिए सारे जुगत किए, लेकिन कांग्रेस ने एकता मुहिम को ही हाईजैक कर लिया। अब तो नीतीश के काम को भी अपने स्टाइल में भुनाने का प्रयास कांग्रेस कर रही है। लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों में हो रहे चुनाव के लिए कांग्रेस के पास नरेंद्र मोदी सरकार की विफलताएं गिनाने के अलावा कोई मुद्दा तो है नहीं। इसलिए उसने बिहार के जातीय सर्वेक्षण को आधार बना कर विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए नया नारा गढ़ दिया- जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का कहना है कि बिहार की जाति गणना से साबित हो गया है कि राज्य में 84 फीसदी लोग ओबीसी, एससी और एसटी हैं और उनकी हिस्सेदारी उनकी आबादी के हिसाब से होनी चाहिए। केंद्र में अगर उनकी सरकार बनती है तो राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराई जाएगी। जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, वहां भी कांग्रेस जाति जनगणना को ही मुख्य मुद्दा बनाएगी। उसके पास दूसरा मुद्दा गारंटी योजना है। कांग्रेस ने कर्नाटक में गारंटी का प्रयोग शुरू किया था। वहां उसे सफलता मिल गई। अब तो गारंटी योजनाएं वहां लागू भी होने लगी हैं। मसलन किसानों को फला चीज फ्री मिलने की गारंटी, महिलाओं को मुफ्त और आर्थिक मदद की गारंटी, युवाओं को नौकरी या बेरोजगारी भत्ता की गारंटी वगैरह।

कांग्रेस तो नीतीश कुमार से एक कदम आगे निकल गई है। कांग्रेस ने कहा है कि जाति सर्वेक्षण में जिन जातियों की जितनी आबादी होगी, उसी हिसाब से उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। नीतीश ने अभी जाति सर्वे के चुनिंदा आंकड़े ही जारी किए हैं। नीतीश ने कहा था कि जाति सर्वेक्षण इसलिए कराया कि आबादी के हिसाब से लोगों के लिए योजनाएं बनाई जा सकें। यानी किसी सरकारी योजना पर किसी एक जाति का एकाधिकार न रहे। मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने आंकड़ों पर प्रतिबंध लगाया। इसलिए माना जाता है कि अदालत का रुख सकारात्मक रहेगा।

जहां तक आरक्षण का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट ने ही पहले से यह फैसला दे रखा है कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत होगी। अगर यह सीमा बढ़ती या बढ़ाई जाती है तो निश्चित तौर पर इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की इजाजत लेनी पड़ेगी। इसलिए कांग्रेस की यह घोषणा भ्रामक लगती है कि आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाएगा। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के एक्सपर्ट सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि कांग्रेस के नारों की पुरानी परंपरा है। अभी उसका ताजा नारा है- ‘‘जिसकी जितनी संख्या, उतना उसका हिस्सा’। इसमें आरक्षण वाला नारा तो बिल्कुल ताजा तरीन है।

सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि यह नारा इंदिरा गांधी के साल 1969 के ‘गरीबी हटाओ’ के नारे से मिलता-जुलता है। इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देते वक्त कहा था- ‘हम कहते हैं गरीबी हटाओ, प्रतिपक्ष कहता है इंदिरा हटाओ। जाति सर्वेक्षण इसलिए कराया कि आबादी के हिसाब से लोगों के लिए योजनाएं बनाई जा सकें। यानी किसी सरकारी योजना पर किसी एक जाति का एकाधिकार न रहे। मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने आंकड़ों पर प्रतिबंध लगाया। इसलिए माना जाता है कि अदालत का रुख सकारात्मक रहेगा। अब आप जनता को तय करना है।’ जनता तब झांसे में आ गई थी। गरीबी हटाओ के नारे की लहर पर सवार होकर 1971 में इंदिरा गांधी पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई। उस सरकार ने पहला महत्वपूर्ण काम किया संजय गांधी के लिए मारुति कार कारखाने की स्थापना का। यानी अपनी अमीरी बढ़ाने का काम। उसके बाद गरीबी कितनी हटी, यह सबको पता है। आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत सुप्रीम कोर्ट ने तय की है, किसी सरकार ने नहीं। वही चाहेगा तो यह सीमा बढ़ेगी। कोई सरकार यह काम नहीं कर सकती। सुरेंद्र किशोर कांग्रेस पर तंज कसते हैं- हां, यदि वर्ष 2024 में बहुमत में आने के बाद कांग्रेस देश में इमरजेंसी लगा दे, तब तो कुछ भी हो सकता है। 1975-77 के आपातकाल में इंदिरा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भी पालतू बना दिया था। आज की पीढ़ी को नहीं मालूम कि उस आपातकाल में कितने अधिक उल्टे-सीधे काम हुए थे।