पांच राज्यों के किसानों का किस पार्टी की ओर है रुख?

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आज हम आपको बतायेंगे की पांच राज्यों के किसानों का किस पार्टी की ओर रुख है! मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में अन्य प्रदेशों की तरह ही मतदाताओं में सबसे बड़ी हिस्सेदारी किसानों की है। इन प्रदेशों में खेती-किसानी की हालत अलग-अलग है। तेलंगाना में अन्य तीन राज्यों की तुलना में किसानों की आय अधिक है। इन विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दल मतदाताओं को जातिगत और समुदाय आधारित मुद्दे उछालने की कोशिश करेंगे जबकि किसानों और खेती की बदहाली जैसे प्रमुख मुद्दे गौन हो जाएंगे। बावजूद इसके मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव परिणामों पर किसानों की छाप देखी जा सकती है। चुनावों में किसानों की जो थोड़ी-बहुत बातें हो पाती हैं, उसकी मूल वजह आबादी में उनकी तगड़ी हिस्सेदारी है। मसलन, मध्य प्रदेश में 72.4%, छत्तीसगढ़ में 70%, राजस्थान में 62% और तेलंगाना में 60% आबादी खेती-किसानी से जुड़ी है। फिर इन चार राज्यों की बात ही क्यों, किसान हर राज्य में मतदाताओं का बहुमत हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भी मतदाताओं का सबसे बड़ा हिस्सा किसानों का ही है। सत्ताधारी या फिर सत्ता में आने को इच्छुक दलों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वो किसानों की स्थिति सुधारें तो कैसे क्योंकि पारिवारिक स्तर पर किसानों का उत्पादन बहुत कम होता है। जीडीएसपी सकल राज्य घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी मध्य प्रदेश में 36.3%, छत्तीसगढ़ में 32%, राजस्थान में 24% और तेलंगाना में 21% है। यह आबादी में किसानों की हिस्सेदारी की तुलना में बहुत कम है। यही वजह है कि बहुत से किसान मतदाताओं को कम, अस्थिर आय से संतोष करना पड़ता है। ऐसे में वो भारी सरकारी समर्थन पर निर्भर होते हैं। मौसम पर निर्भर खेती की अंतर्निहित अनिश्चितता को देखते हुए वो ठीक-ठाक स्थितियों से तुरंत निराशा की ओर बढ़ जाते हैं। इस तरह खेती का कारक मोटे तौर पर चलन में है। लेकिन यह एक राज्य से दूसरे राज्य में बदलता रहता है। अंतर का पहला बिंदु यह है कि तेलंगाना में मतदाता अन्य तीन राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं।

छत्तीसगढ़ में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 1.3 लाख रुपये, मध्य प्रदेश में 1.4 लाख रुपये और राजस्थान में 1.6 लाख रुपये है। केवल यूपी, बिहार, झारखंड जैसे राज्य प्रति व्यक्ति आय के मामले में इन तीनों राज्यों से गरीब हैं। तेलंगाना में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 3.1 लाख रुपये है, जो भारत के राज्यों में उच्च स्थान पर है। किसानों की स्थिति उनकी रिहाइश पर भी निर्भर है क्योंकि मिट्टी, जलवायु और सिंचाई की उपलब्धता एक इलाके में कुछ है तो दूसरे में कुछ। नीचे के स्नैपशॉट में देखें कि चार चुनावी राज्यों में खेती को लेकर क्या स्थिति है।

इस राज्य में उच्च कृषि उत्पादन और खेती से नियमित आय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए प्रमुख वोट-कैचर थे। लेकिन इस बार स्थिति अलग दिख रही है। कृषि उत्पादन की वृद्धि दर धीमी हुई है। अनियमित मॉनसूनी बारिश के कारण सूखे की स्थिति भी पैदा हुई है। वहीं, अगस्त और सितंबर की शुरुआत में भारी बारिश हुई, जिससे सोयाबीन, कपास और दलहन समेत कई फसलें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। सोयाबीन को ही ले लीजिए। इसकी खेती 55-60 लाख हेक्टेयर में की जाती है। देशभर में जितना सोयबीन का उत्पादन होता है, उसमें आधी हिस्सेदारी अकेले मध्य प्रदेश की है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसानों का असंतोष कितना गहरा हो सकता है।

फसल नुकसान को फसल बीमा में कवर किया जाना चाहिए। लेकिन बीमा का पैसा किसानों को फसलों की बर्बादी के आकलन के बाद होता है। इस प्रक्रिया में ठीक-ठाक समय लग जाता है। पिछले खरीफ और रबी सीजन के फसल बीमा का पैसा अभी कुछ दिन पहले जारी किया गया था। माना जा रहा है कि इस साल के फसलों को हुए नुकसान, चुनाव को लेकर किसान मतदाताओं के रुख को प्रभावित करने वाले हैं। कांग्रेस का कहना है कि किसानों की आय घटी है जबकि उनकी आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं। भाजपा के लिए यह चुनाव थोड़ी टेढ़ी खीर दिख रही है। पार्टी ने खासकर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनावी मैदान में उतारकर विपक्षी कांग्रेस को इजी टार्गेट दे दिया है।

कांग्रेस पार्टी उम्मीद लगाए बैठी है कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार ने धान खरीद योजना को सफलता से लागू किया जिससे किसानों का भरपूर समर्थन उसे चुनाव में मिलने जा रहा है। बघेल ने 2018 में धान के लिए 2,500 रुपये प्रति क्विंटल खरीद मूल्य के वादे पर सत्ता हासिल की थी। उन्होंने अपना वादा पूरा किया और दो योजनाएं जोड़ीं। एक योजना के तहत, छत्तीसगढ़ में जमीन मालिक सभी किसानों को प्रति वर्ष प्रति एकड़ 9,000 रुपये दिए गए। वहीं, दूसरी योजना में किसानों से एक निर्धारित दर से गोबर और गोमूत्र खरीदे गए। विश्लेषकों की मानें तो भाजपा इस दूसरी योजना से चौंक गई क्योंकि उसे लगा कि बघेल सरकार ने उसके एजेंडे को हड़प लिया। हालांकि, बीजेपी का आरोप है कि गोबर और गोमूत्र खरीद योजना में भारी घोटाला हुआ है।

2014 में राज्य की स्थापना के बाद से किसानों पर मुख्यमंत्री केसीआर के चंद्रशेखर राव का खास फोकस रहा है। तेलंगाना में 2014-15 से 2022-23 तक कृषि उत्पादन 14% की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से बढ़ रहा है। केसीआर ने रायथु बंधु के नाम से डीबीटी स्कीम भी शुरू की, जिसे मोदी के पीएम-किसान योजना का ही एक मॉडल माना जाता है। केसीआर सरकार किसानों को साल में दो बार प्रति एकड़ 5,000 रुपये की दर से पैसे देती है। केसीआर धान और कपास को सफलता की कहानियों के रूप में बताते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि तेलंगाना के किसानों की बिल्कुल बल्ले-बल्ले है। केसीआर की सरकार ने प्रदेश में केंद्रीय फसल बीमा योजना को लागू नहीं किया है।

अगर अनियमित मौसम से उत्पादन प्रभावित होने के तुरंत बाद राज्य के आपदा राहत कोष से फंड जारी कर दिया गया होता तो यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाता, लेकिन ऐसा इस साल तक नहीं हुआ। इस चुनावी वर्ष में मार्च महीने में भारी बारिश से फसलों को नुकसान हुआ। फसल बीमा का मुद्दा चुनाव में कौन सा रंग दिखाएगा, यह देखने वाली बात होगी। इस बार के विधानसभा चुनाव में बंटाईदार किसानों का मुद्दा भी जोर पकड़ सकता है। केसीआर ने बंटाईदार किसानों को औपचारिक मान्यता दी जिससे उन्हें बैंक क्रेडिट जैसे लाभ मिलने। हालांकि, यह लाभ 2015-16 में एक बार ही हुई है। कई बंटाईदार किसान अभी भी इस योजना से बाहर हैं। केसीआर को किसानों के हित में और काम करने की जरूरत थी।