क्या जदयू के साथ हाथ मिलाएंगे आनंद मोहन?

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आनंद मोहन अब जदयू के साथ हाथ मिला सकते हैं! देश में अभी क्रिकेट का खुमार है। लोगों की नजर वर्ल्ड कप के लिए हो रहे मैचों पर है। इधर बिहार में भी सियासी खेल के लिए ‘फील्डिंग’ लगनी शुरू हो गई है। दरअसल बिहार के सीएम और जेडीयू नेता नीतीश कुमार आहिस्ता-आहिस्ता अपना दबदबा बढ़ा रहे हैं। विधानसभा में 43 सीटों पर सिमटी जेडीयू को फिर से पुरानी स्थिति में लौटाने का नीतीश कुमार प्रयास कर रहे हैं। जाति सर्वेक्षण का तो ऐसा कठिन काम नीतीश ने कर दिखाया है, जो अब विपक्ष के लिए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अचूक निशाना साधने वाला ‘अस्त्र’ बन गया है। नीतीश कुमार का साथ छोड़ने वाले भी अब पछता रहे होंगे कि उन्होंने हड़बड़ी में फैसला लिया। इसलिए आरजेडी के साथ जेडीयू के सटने पर लोगों को यही लगा था कि आरजेडी में जेडीयू समाहित हो जाएगा। यह भ्रम इसलिए भी पैदा हुआ, क्योंकि नीतीश ने 2025 के विधानसभा चुनाव का नेतृत्व तेजस्वी यादव के हाथों सौंपने की घोषणा कर दी। जाति सर्वेक्षण का काम पूरा हो जाने के बाद नीतीश पूरे देश में विपक्ष का मॉडल बन चुके हैं। आरजेडी भी नीतीश के अंदाज में अचानक आए बदलाव से हतप्रभ है। नीतीश आहिस्ता-आहिस्ता अपने वोट बैंक को ठीक करने में लगे हैं। वे किसी तरह का कील कांटा नहीं रहने देना चाहते। जाति सर्वेक्षण के आंकड़े सामने आने के बाद नीतीश अपनी पैठ उन जातियों में बढ़ाने को बेचैन हैं, जिनका साथ वर्ष 2005 से अब तक उन्हें लगातार मिलता रहा है। मसलन मुस्लिम कम्युनिटी को नीतीश अपने पक्ष में करना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने बीते हफ्ते जेडीयू के मुस्लिम नेताओं से मुलाकात भी की थी। कांग्रेस और आरजेडी का युग समाप्त होने के बाद मुस्लिम वोटर नीतीश कुमार के ही साथ थे। यह सिलसिला 2020 के विधानसभा चुनाव से टूटा, जब जेडीयू के सभी 11 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव हार गए।

बिहार में दलित और महा दलित में बंटे दलित समुदाय को अपने साथ रखने की योजना पर तो नीतीश लंबे वक्त से काम कर रहे हैं। उनके उत्थान के लिए नीतीश ने दलितों को दो भागों में बांटा और उनको उसी हिसाब से सहूलियतें दीं। उनके लिए कई तरह की सरकारी योजनाएं बनाईं। दलितों में भरोसा कायम करने के लिए उन्होंने जीतन राम मांझी को सीएम तक बना दिया था। हालांकि कालांतर में मांझी ने कभी उनसे दूरी तो कभी नजदीकी का खेल जारी रखा। हाल तक नीतीश के साथ रहने वाले मांझी ने प्रत्यक्ष रूप से उनसे दूरी बना ली है, लेकिन अब खिचड़ी भी पकाने में लग गए हैं।

सप्ताह भर पहले जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार से राजगीर में गोपनीय मुलाकात की थी। राजनीति में ऐसी गोपनीय मुलाकातों का काफी महत्व होता है। मांझी की मुसहर जाति की आबादी तीन प्रतिशत है। मांझी के लिए पाला बदलना कोई नई बात नहीं है। वर्ष 2020 में आखिरी वक्त में उन्होंने आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन का साथ छोड़ा था और नीतीश के शरणागत हुए थे। नीतीश कुमार के साथ उनके स्वजातीय कुर्मी वोटर तो 1994 से ही हैं। पहली बार पटना में 1994 में कुर्मी और कुशवाहा जाति के लोगों ने साझा सम्मेलन किया और लव-कुश समीकरण की नींव पड़ी। यह समीकरण नीतीश कुमार को केंद्र में रखकर ही बना था। बिहार में ताजा आंकड़ों के मुताबिक, कुर्मी आबादी तीन प्रतिशत से थोड़ी अधिक और कुशवाहा की तकरीबन पांच प्रतिशत है। साल 1994 से लेकर पिछले चुनाव तक यह समीकरण नीतीश के साथ रहा है। यानी तकरीबन 9 प्रतिशत वोट लव-कुश समीकरण वाले हैं।

कुशवाहा बिरादरी से आने वाले उपेंद्र कुशवाहा ने हालांकि अपनी राह अलग कर ली है, लेकिन उनके मन में अब भी नीतीश के प्रति आदर और प्रेम है। इसका इजहार उपेंद्र कुशवाहा इस रूप में करते हैं कि ‘अगर नीतीश को खून की जरूरत पड़ी तो पहला आदमी वे ही होंगे, जो खून देने के लिए खड़े मिलेंगे।’ उपेंद्र जेडीयू से इसलिए अलग हुए थे कि उन्हें आरजेडी में पार्टी के विलय की आशंका थी। अब नीतीश की सक्रियता देख यह शंका भी निर्मूल साबित हुई है। अगर मांझी और कुशवाहा नीतीश कुमार के साथ आ जाते हैं तो नीतीश की ताकत बढ़ जाएगी।

पूर्व सांसद आनंद मोहन खुद ही नीतीश की ओर खिंचे चले आए हैं। आनंद की रिहाई के लिए नीतीश कुमार ने जेल मैन्युअल में संशोधन करने का जोखिम उठाया। रिहाई के बाद लगा था कि आनंद मोहन का झुकाव आरजेडी की ओर रहेगा। ऐसा मानने का आधार यह था कि उनके बेटे चेतन आनंद आरजेडी कोटे से एमएलए हैं। आनंद की पत्नी लवली आनंद भी आरजेडी के साथ हैं। लालू यादव का आनंद मोहन से न मिलना और ‘ठाकुर’ विवाद पर लालू परिवार का अपने सांसद मनोज झा के साथ खड़ा होना, आनंद मोहन को नीतीश के करीब जाने का आधार बना है।

चर्चा है कि आनंद मोहन अपने दूसरे बेटे अंशुमान और अपनी पत्नी लवली आनंद के साथ नीतीश कुमार का हाथ पकड़ सकते हैं। आरजेडी विधायक चेतन आनंद अपनी पार्टी में ही बने रहेंगे। उनके बारे में फैसला विधानसभा चुनाव के वक्त होगा। आनंद मोहन सक्रिय राजनीति के समय सवर्णों के नेता के रूप में देखे जाते थे। उन्हें लालू को चुनौती देने वाले नेता के रूप में देखा जाता था। अगर वे नीतीश के साथ आते हैं तो तकरीबन 4 प्रतिशत राजपूत वोट का दावेदार जेडीयू हो जाएगा।