समाचारों के मामलें पर क्या कहता है विश्व स्वास्थ्य संगठन?

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हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समाचारों के मामलें पर एक बयान दिया है! इजरायल-हमास के बीच चल रहे युद्ध के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि लोग टीवी या सोशल मीडिया पर ज्यादा समाचार न देखें। इससे कुछ लोगों में तनाव बढ़ सकता है जिससे उन्हें कई समस्याएं हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को तनाव से बचने के लिए पर्याप्त नींद लेने, स्वास्थ्यप्रद भोजन करने, प्रियजनों के संपर्क में रहने और प्रतिदिन व्यायाम करने की सलाह भी दी है। दरअसल, इस समय पूरी दुनिया भर में इजरायल-हमास के बीच चल रहा युद्ध चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग युद्ध की स्थिति और इस पर ताजा सूचना के लिए बार-बार टीवी या सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। टीवी-सोशल मीडिया पर कई बार गंभीर दृश्य दिखाई दे रहे हैं जिससे लोगों में तनाव बढ़ रहा है। इससे कुछ लोगों में समस्याएं भी पैदा हो रही हैं। विशेषकर युद्ध प्रभावित क्षेत्र, या प्रभावित समुदायों के लोग बार-बार युद्ध की स्थिति जानने की कोशिश कर रहे हैं। इससे उनमें तनाव बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इससे बचने की सलाह दी है। इसी प्रकार युद्ध के ज्यादा समाचार सुनने से लोगों में उसी के चित्र बार-बार याद रह सकते हैं जो उनमें डर, भय या अतिसंवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं। यह व्यवहार सामान्य नहीं होता और इसका असर कुछ समय से लेकर लंबे समय तक दिखाई पड़ सकता है। लोगों को गंभीर मनोरोग से लेकर सामान्य नकारात्मक वैचारिक विकार हो सकता है। 

इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट साइकिएट्रिस्ट के चेयरमैन डॉ. मृगेश वैष्णव ने कहा कि यह बात सही है कि युद्ध के बहुत ज्यादा समाचार देखने-सुनने से लोगों में तनाव बढ़ सकता है। यदि यह तनाव का स्तर लगातार ज्यादा रहे तो इसका असर लोगों के स्वास्थ्य,  व्यक्तिगत जीवन और कार्य क्षमता पर पड़ सकता है। इसलिए केवल जानकारी रखने तक के लिए समाचार देखना चाहिए। बार-बार उसे देखते रहने से मनोवैज्ञानिक समस्याएं सामने आ सकती हैं। डॉ. मृगेश वैष्णव ने कहा कि मस्तिष्क के सीखने और उसे याद रखने का एक पैटर्न होता है। हम जो भी देखते-सुनते हैं, उसका 90 प्रतिशत हिस्सा एक दिन में ही भूल जाते हैं, लेकिन यदि एक ही चीज को लगातार बार-बार सुनें तो उसे याद ऱखने की समय सीमा बढ़ती चली जाती है। जब बीमार लोग, संवेदनशील लोग या अन्य लोग भी युद्ध के समाचार सुनते हैं तो इससे उनके मस्तिष्क पर नकारात्मक भावनात्मक असर पड़ता है। लेकिन यदि यही समाचार उन्हें लगातार सुनना पड़े तो इसका उनमें नकारात्मक असर दिखाई पड़ सकता है। 

बार-बार भूकंप के समाचार सुनने से लोगों को यह मतिभ्रम होने लगता है कि दीवार, पंखे या भूमि हिल रही है। इसी प्रकार युद्ध के ज्यादा समाचार सुनने से लोगों में उसी के चित्र बार-बार याद रह सकते हैं जो उनमें डर, भय या अतिसंवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं। यह व्यवहार सामान्य नहीं होता और इसका असर कुछ समय से लेकर लंबे समय तक दिखाई पड़ सकता है। लोगों को गंभीर मनोरोग से लेकर सामान्य नकारात्मक वैचारिक विकार हो सकता है। 

मीडिया चैनलों को चाहिए कि वे समाचार प्रकाशित करें, लेकिन अपनी दर्शक क्षमता बढ़ाने के लिए इसे महिमामंडित न करें।व्यक्तिगत जीवन और कार्य क्षमता पर पड़ सकता है। इसलिए केवल जानकारी रखने तक के लिए समाचार देखना चाहिए।युद्ध के बहुत ज्यादा समाचार देखने-सुनने से लोगों में तनाव बढ़ सकता है। यदि यह तनाव का स्तर लगातार ज्यादा रहे तो इसका असर लोगों के स्वास्थ्य,  व्यक्तिगत जीवन और कार्य क्षमता पर पड़ सकता है। इसलिए केवल जानकारी रखने तक के लिए समाचार देखना चाहिए। बार-बार उसे देखते रहने से मनोवैज्ञानिक समस्याएं सामने आ सकती हैं। बार-बार उसे देखते रहने से मनोवैज्ञानिक समस्याएं सामने आ सकती हैं। डॉ. मृगेश वैष्णव ने कहा कि मस्तिष्क के सीखने और उसे याद रखने का एक पैटर्न होता है। बता दें कि इसी प्रकार युद्ध के ज्यादा समाचार सुनने से लोगों में उसी के चित्र बार-बार याद रह सकते हैं जो उनमें डर, भय या अतिसंवेदनशीलता को बढ़ा सकते हैं। यह व्यवहार सामान्य नहीं होता और इसका असर कुछ समय से लेकर लंबे समय तक दिखाई पड़ सकता है। लोगों को गंभीर मनोरोग से लेकर सामान्य नकारात्मक वैचारिक विकार हो सकता है।  लोगों के घावों, शवों के ज्यादा वीभत्स दृश्य दिखाने से भी बचना चाहिए। सूचना देते समय डराने की नहीं, समझाने और गंभीरतापूर्वक किसी बात को समझने वाली शैली अपनाई जानी चाहिए।