चुनावी नामों को लेकर सरकार पर क्यों भड़का सुप्रीम कोर्ट?

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हाल ही में चुनावी नामों को लेकर सुप्रीम कोर्ट सरकार पर भड़क चुका है! सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर फिर से आपत्ति जताई है कि केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को ज्यों का त्यों नहीं मानती है बल्कि नामों की लिस्ट में से कुछ को चुन लेती है और कुछ पर हमेशा के लिए चुप्पी ठान लेती है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि और शीर्ष अदालत और हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की तरफ से अनुशंसित नामों में से ‘पिक एंड चूज’ की प्रथा स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे परेशानी होती है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सरकार को भेद नहीं करना चाहिए क्योंकि नामों की सिफारिश कॉलेजियम की तरफ से जजों की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए की जाती है और नामों में छंटनी वरिष्ठता की प्रणाली बिगाड़ देती है। यह तीन सदस्यी बेंच सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की तरफ से अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से देरी पर एक याचिका की सुनवाई कर रही थी। सुनवाई की शुरुआत में केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने सरकार के विचाराधीन सभी लंबित नामों पर फैसला करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। ऐसे 21 नाम हैं जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए सरकार के विचाराधीन हैं। उच्च न्यायालय के लिए नियुक्ति के लिए दस नाम हैं- पांच नाम जिन्हें कॉलेजियम ने दोबारा केंद्र के पास भेजा था और पांच को पहली बार भेजा गया था। इनके अलावा 11 जजों का ट्रांसफर किया जाना है।

पीठ ने इस बात पर भी असंतोष व्यक्त किया कि पिछले कुछ हफ्ते पहले दी गई चेतावनी के बावजूद केंद्र सरकार ने फैसला लेने में फुर्ती नहीं दिखाई। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि सरकार को और ज्यादा धक्का देने की जरूरत है। उसने सुनवाई को 7 नवंबर के लिए स्थगित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बीते 26 सितंबर को केंद्र को कहा था कि उसके पास कॉलेजियम की तरफ से जिन 86 जजों के नाम भेजे गए हैं, उन पर कोई फैसला लेकर आए वरना समस्या का सामना करने को तैयार रहे।

ध्यान रहे कि जिन 86 नामों के अलावा 26 हाई कोर्टों के जजों के ट्रांसफर और एक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की नियुक्ति की भी सिफारिश की थी। बता दें कि सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने सरकार के विचाराधीन सभी लंबित नामों पर फैसला करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। ऐसे 21 नाम हैं जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए सरकार के विचाराधीन हैं। उच्च न्यायालय के लिए नियुक्ति के लिए दस नाम हैं- पांच नाम जिन्हें कॉलेजियम ने दोबारा केंद्र के पास भेजा था और पांच को पहली बार भेजा गया था। इनके अलावा 11 जजों का ट्रांसफर किया जाना है। इसके बाद, सरकार ने अपने फैसलों में तेजी लाई, फिर भी उसके पास 86 में से 21 नामों पर फैसला नहीं हो सका है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी पर कहा कि केंद्र सरकार पिक एंड चूज की प्रथा पर चलती है जो परेशानी पैदा करने वाली है।

यहि नहीं आपको बता दें कि मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों की तरफ से चुनाव से पहले की जा रही घोषणाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों, केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है. मुफ्त की घोषणाओं पर पहले से लंबित याचिका के साथ इस मामले को भी जोड़ा गया है. याचिकाकर्ता भट्टूलाल जैन का कहना था कि चुनावी लाभ के लिए बनाई जा रही योजनाओं से आखिरकार आम लोगों पर ही बोझ पड़ता है!

राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले लोगों के लिए ऐसी योजनाओं का ऐलान किया जा रहा है, जिसमें उन्हें कैश दिया जाएगा. इसे ‘फ्रीबीज’ भी कहा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनाव से पहले सभी तरह के वादे किए जाते हैं. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यहां सिर्फ वादों की बात नहीं हो रही है. इसकी वजह से नेट वर्थ निगेटिव हो रहा है. नेता जिला जेल को बेचने तक की हद तक चले गए हैं! चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा कि इस मामले को भी मुफ्त के वादों पर पहले से लंबित याचिका के साथ सुना जाएगा. राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव जीतने के लिए की जाने वाली मुफ्त की घोषणाओं के खिलाफ वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पहले से लंबित है. नई याचिका मध्य प्रदेश के रहने वाले भट्टूलाल जैन ने दाखिल की है!

उनका कहना है कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री एक के बाद एक घोषणाएं करते जा रहे हैं. इनसे सरकारी खजाने पर हजारों करोड़ रुपए का बोझ बढ़ेगा. चुनावी लाभ के लिए बनाई जा रही योजनाओं का खर्च आखिरकार आम लोगों को ही उठाना पड़ता है. याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय को भी पक्ष बनाया था. लेकिन कोर्ट ने उन्हें पक्षकारों की लिस्ट से हटाने को कहा. कोर्ट ने कहा कि नोटिस राज्य सरकार को भेजा जाना चाहिए, न कि मुख्यमंत्री को. इसके साथ ही कोर्ट ने रिजर्व बैंक को भी नोटिस जारी करने से मना कर दिया!