Sunday, November 10, 2024
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क्या पूरी तरह फेल हो चुका है INDIA गठबंधन?

वर्तमान में INDIA गठबंधन पूरी तरह फेल होता हुआ दिखाई दे रहा है! अगले महीने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी एकता की कवायद के परवान चढ़ने की उम्मीद जताई जा रही थी। तब किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि इन्हीं विधानसभाओं के चुनाव में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A के बिखराव का बीजारोपण भी हो जाएगा। समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच मची खींचतान से अब यह बात स्पष्ट होने लगी है कि विपक्षी गठबंधन बेमेल ब्याह की तरह है। अबी तो लोकसभा चुनाव में पांच-छह महीने की देर है। इसके पहले ‘N’ यानी नीतीश और ‘A’ यानी अरविंद-अखिलेश अलग होते दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव गठबंधन बिखर जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच न सिर्फ बयानबाजी से घमासान मचा है, बल्कि इस साल हो रहे विधानसभा चुनावों में भी एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे जा रहे हैं। यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को रोज धमकाते हैं। यूपी में कांग्रेस की सभी 80 लोकसभा सीटों पर तैयारी की बात अजय राय कहते हैं, तो समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व सीएम अखिलेश यादव कांग्रेस को धोखेबाज बताने लगे हैं। अखिलेश तो यह भी कहते हैं कि अगर उन्हें पता होता तो गठबंधन करते ही नहीं। सपा ने मध्य प्रदेश की 24 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। इनमें अनुसूचित जन जाति की दो अनुसूचित जाति की एक सीट शामिल हैं। अन्य 21 सीटों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवार सपा के टिकट पर मैदान में हैं। पार्टी ने महिलाओं को भी छह सीटों पर टिकट दिए हैं। आम आदमी पार्टी ने आंध्र प्रदेश में अभी तक 29 उम्मीदवारों की घोषणा की है। छत्तीसगढ़ में भी आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवार घोषित कर विपक्षी एकता का खेल खत्म करने की शुरुआत कर दी है। राजस्थान में भी नामों का चयन हो चुका है। जल्द ही वहां भी AAP अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित करने वाली है। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी से रिश्ते को लेकर कांग्रेस में पहले से ही घमासान मचा हुआ है। AAP ने तो छतीसगढ़ में 10 गारंटी योजनाओं की भी घोषणा की है। आम आदमी पार्टी के रिश्ते पहले से तल्ख रहे हैं। शुक्र है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पहल पर AAP ने विपक्षी गठबंधन में शामिल होने का फैसला लिया।

विपक्षी एकता के सूत्रधार नीतीश कुमार भी अब विपक्षी एकता पर बहुत चर्चा नहीं करते। उल्टे हाल के दिनों की उनकी गतिविधियां विपक्षी एकता के अनुकूल तो कत्तई प्रतीत नहीं होतीं। विपक्षी एकता की मुहिम छेड़ने के बावजूद उन्हें वाजिब तरजीह नहीं मिली। पीएम पद की रेस से उन्होंने खुद को बाहर कर लिया, इसके बावजूद उन्हें संयोजक नहीं बनाया गया। उनके कोफ्त से बचने के लिए संयोजक पद की अवधारणा ही खत्म कर दी गई। अब तो विपक्षी दलों में बिहार के साथियों के अलावा दूसरे किसी दल से उनके ताल्लुकात भी पहले जैसे नहीं रह गए हैं। इसी बीच नीतीश ने पीएम के साथ तस्वीर खिंचवा कर, दीनदयाल उपाध्याय की जयंती मना कर, राष्ट्रपति की मौजूदगी में मोतीहारी में सेंट्रल यूनिवर्सिटी देने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ कर और भाजपा नेताओं से मरते दम तक रिश्ते बनाए रखने क बात कह कर विपक्षी खेमे में एक नये विवाद को जन्म दे दिया है।

यहां यह भी उल्लेख आवश्यक है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में टीडीपी नेता और पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू ने इसी तरह विपक्षी दलों का जमावड़ा किया था, पर चुनाव में सब ‘अपनी डफली, अपना राग’ अलापने लगे। आज चंद्रबाबू नायडू किस गति को प्राप्त हुए हैं, यह सबको पता है। सीएम की कुर्सी भी वह नहीं बचा पाए और अब टीडीपी को भाजपा के शरणागत होना पड़ा है। तब भी कांग्रेस साथ थी। अभी जितने दल विपक्षी गठबंधन में शामिल हैं,AAP अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित करने वाली है। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी से रिश्ते को लेकर कांग्रेस में पहले से ही घमासान मचा हुआ है। AAP ने तो छतीसगढ़ में 10 गारंटी योजनाओं की भी घोषणा की है। आम आदमी पार्टी के रिश्ते पहले से तल्ख रहे हैं। शुक्र है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार की पहल पर AAP ने विपक्षी गठबंधन में शामिल होने का फैसला लिया। उनमें कुछ नये हैं तो कुछ दूसरे खेमे में। मसलन एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस और टीडीपी भाजपा के साथ हैं तो एआईडीएमके, शिरोमणि अकाली दल और जेडीयू विपक्षी गठबंधन के साथ।

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