एक ऐसी प्रोत्साहित कर देने वाली कहानी जिसमें यूपीएससी से मिली जॉब को छोड़कर बिजनेसमैन बन गए! दिल्ली यूनिवर्सिटी का टॉप कॉलेज माना जाता है सेंट स्टीफेंस कॉलेज। इस कॉलेज में एक जुमला चलता है कि यहां पढ़ने वाले चाहे राजनीति में जाएं, वकालत में जाएं, ब्यूरोक्रेट बने या फिर जहां भी जाएं, बनते हैं टॉप क्लास के लोग। इस जुमले को शत-प्रतिशत सही साबित किया है हरियाणा में तत्कालीन रोहतक और आज के झज्जर जिले के खरड़ गांव के वासी कुलदीप सिंह राठी ने। उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज से 1970 में ग्रेजुएशन किया। फिर यूपीएससी से क्लास वन जॉब के लिए चुने गए। वहां मन नहीं लगा तो सीपीडब्ल्यूडी मे ठेकेदारी करने लगे। वहां भी मन नहीं लगा तो ठेकेदारी छोड़ ऑटो पार्ट्स की फैक्ट्री लगा ली। आज वही के. एस. राठी की कंपनी एएसके ऑटोमोटिव लिमिटेड का एक साल का रेवेन्यू 25,551.47 मिलियन रुपये है। वह देश के ब्रेक किंग माने जाते हैं क्योंकि बाजार में चलने वाले हर दूसरे मोटर वाहन में उन्हीं की कंपनी का बना ब्रेक शू लगा है। कुलदीप सिंह राठी का जन्म तो किसान परिवार में हुआ था। लेकिन उनके पिता दिल्ली स्थित केंद्र सरकार के एक दफ्तर में काम करते थे। इसलिए उनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई। पढ़ने में वे शुरू से ही अच्छे थे। तभी तो ग्रेजुएशन में उनका दाखिला डीयू के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हो गया। वहां से सन 1970 में उन्होंने इकोनोमिक्स आनर्स की उपाधि ली। इसके बाद डीयू के ही दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के एमए इकोनोमिक्स कोर्स में दाखिला ले लिया।
वह एमए में पढ़ ही रहे थे कि उनके पिता की तबियत खराब हो गई। वे रोहतक के एक अस्पताल में भर्ती थे। उनकी सेवा के लिए वह रोहतक पहुंच गए। वहां उनके पिता ने यूपीएससी का एक विज्ञापन दिखाया। वह विज्ञापन था केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल में असिस्टेंट कमांडेंट की परीक्षा का। उनके पिता ने कहा कि इसमें फॉर्म भर कर परीक्षा पास कर के दिखाए। इसके बाद उनके पिता गोलोकवासी हो गए। पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए राठी ने एमए की पढ़ाई छोड़ कर यूपीएसी की परीक्षा दी और पहले ही प्रयास में सफल रहे। उनका चयन सीआरपी में असिस्टेंट कमांडेंट के लिए हुआ। माउंट आबू में ट्रेनिंग पूरी की, तीन साल तक काम किया। पर मन नहीं लगा तो इस्तीफा दे कर वापस लौट आए। नौकरी छोड़ते वक्त उनकी जेब में 500 रुपये थे।
क्लास वन जॉब छोड़ कर राठी ने दिल्ली में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में ठेकेदारी शुरू कर दी। इस क्षेत्र में उनका अनुभव नहीं था, इसलिए उनको क्लास 5 का ठेकेदार बनाया गया। जेब में 500 रुपये थे और पहला काम उन्हें एक हजार रुपये का मिला। वह देश के ब्रेक किंग माने जाते हैं क्योंकि बाजार में चलने वाले हर दूसरे मोटर वाहन में उन्हीं की कंपनी का बना ब्रेक शू लगा है। कुलदीप सिंह राठी का जन्म तो किसान परिवार में हुआ था। लेकिन उनके पिता दिल्ली स्थित केंद्र सरकार के एक दफ्तर में काम करते थे। इसलिए उनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में ही हुई। पढ़ने में वे शुरू से ही अच्छे थे। तभी तो ग्रेजुएशन में उनका दाखिला डीयू के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हो गया। वहां से सन 1970 में उन्होंने इकोनोमिक्स आनर्स की उपाधि ली। इसके बाद डीयू के ही दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के एमए इकोनोमिक्स कोर्स में दाखिला ले लिया।उन्होंने इसे एक महीने में पूरा किया और उन्हें 100 रुपये की बचत हुई। उन्हें सीपीडब्ल्यूडी से जो भी काम मिलता, वह तेजी से पूरा करते। इस वजह से उनकी चर्चा बड़े अधिकारियों के बीच होने लगी। उन्होंने यहां भी मेहनत की और चार साल में ही क्लास फाइव से क्लास वन ठेकेदार बन गए।
कुलदीप सिंह राठी को आज भारत का ब्रेक किंग कहा जाता है। टू-व्हीलर मार्केट में उनकी बाजार हिस्सेदारी 50 फीसदी से भी ज्यादा है। यही नहीं, वह कार से लेकर कमर्शियल वीकल का भी ब्रेक शू बनाने लगे हैं। इसके साथ ही वह कार के ढेर सारे पार्ट-पुर्जे बनाते हैं। इलेक्ट्रिक वीकल के साजो-सामान बनाते हैं। उनकी कंपनी एएसके ऑटो का पिछले साल रेवेन्यू 25,551.47 मिलियन रुपये रहा था। इस समय उनके देश के कई राज्यों में 17 मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट हैं। बीते 18 साल से वह ब्रेक शू मार्केट के लीडर हैं। उनके बनाए सामानों का निर्यात अमेरिका और यूरोप के देश समेत दुनिया के 12 देशों में होता है। अगले सप्ताह उनकी कंपनी का आईपीओ भी आ रहा है।