Friday, May 9, 2025
HomeIndian Newsक्या जाति पर चुनाव नहीं लड़ेगी भाजपा?

क्या जाति पर चुनाव नहीं लड़ेगी भाजपा?

भाजपा इस बार जाति पर चुनाव नहीं लड़ पाएगी! पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से बने माहौल ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भी स्टेज सेट कर दिया है। इन राज्यों के नतीजे आने के बाद तो चर्चा सिर्फ 2024 की होगी। विधानसभा चुनाव के नतीजों के प्रिज्म में 2024 की व्याख्याओं, भविष्यवाणियों, अनुमानों, अटकलों का दौर चलेगा। इन 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव की अहमियत इसी से समझी जा सकती है। इन चुनावों में जो मुद्दा सबसे ज्यादा गरम है, वह है जातिगत जनगणना का। विपक्ष इस मुद्दे पर हमलावर है। कभी कास्ट सेंसस की विरोधी रही कांग्रेस ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ का नारा बुलंद कर रही है। अपने चुनावी वादों की पोटली में राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की ‘गारंटी’ दे रही है। बिहार में जाति जनगणना हो चुकी है। तमाम क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में भी इसकी मांग कर रहे हैं। विपक्ष खासकर कांग्रेस लगातार ये पूछ रही है कि बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर कास्ट सेंसस का विरोध क्यों कर रही है। विपक्ष को भी पता है कि ओबीसी वोट बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत और लगातार दो बार केंद्र में उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार के सूत्रधार हैं। इसलिए विपक्ष को कास्ट सेंसस में बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत को कमजोर करने का बड़ा हथियार नजर आ रहा है। बीजेपी ने भी आक्रामक विपक्ष की इस रणनीति को भांप लिया है और कास्ट सेंसस पर अब उसका रुख नरम हुआ है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि बीजेपी ने कभी भी कास्ट सेंसस का विरोध नहीं किया है, वह बस जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती। विपक्ष को घेरते हुए उन्होंने यह भी कहा कि हम राष्ट्रीय पार्टी हैं, हम कभी कास्ट सेंसस पर वोट की राजनीति नहीं करेंगे। कांग्रेस पर कास्ट सेंसस के बहाने ‘बांटो और राज करो’ की राजनीति करने का आरोप लगाने वाली बीजेपी अब खुद कहने के लिए मजबूर हुई है कि वह कभी भी कास्ट सेंसस के विरोध में नहीं रही। छत्तीसगढ़ के लिए पार्टी के मैनिफेस्टो को जारी करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि बीजेपी ने कभी भी जातिगत जनगणना के विचार का विरोध नहीं किया लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पार्टी जल्दबाजी में कोई फैसला करे। इस पर बहुत सोचसमझकर फैसला लिया जाएगा। शाह ने कहा कि ‘सभी से राय मशवरे’ के बाद पार्टी कास्ट सेंसस पर ‘उचित फैसला’ करेगी। उन्होंने कहा, ‘हम एक राष्ट्रीय पार्टी हैं और हम इस मुद्दे पर वोट की राजनीति नहीं करते।’ कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के लिए जिन 17 गारंटियों का चुनावी वादा किया है, उसमें कास्ट सेंसस कराना भी शामिल है। इस पर शाह ने कहा कि इस आधार पर चुनाव लड़ना सही नहीं है।

जाति भारतीय राजनीति की कड़वी हकीकत है। कई क्षेत्रीय दलों का तो वजूद ही सिर्फ जाति की राजनीति पर टिका है। जातियों में सबसे बड़ा शेयर ओबीसी का है। यही वजह है कि ओबीसी वोट 2024 के लिए काफी अहम हैं। हर राजनीतिक दल ज्यादा से ज्यादा ओबीसी वोट को अपने पाले में खींचने की जुगत में हैं क्योंकि ये उनके लिए सत्ता की सीढ़ी का काम कर सकती हैं। देश की कुल आबादी में करीब आधा तो सिर्फ ओबीसी हैं। नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के मुताबिक, देश की कुल आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 42 प्रतिशत है और मंडल कमिशन के मुताबिक ये आंकड़ा 52 प्रतिशत है। यह आंकड़ा ही ये बताने के लिए काफी है कि राजनीतिक दलों में ओबीसी को लुभाने की होड़ क्यों मची रहती है।

बिहार में कास्ट सेंसस के बाद अब अन्य राज्यों से भी इसकी मांग जोर पकड़ रही है। कांग्रेस तो राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना का वादा कर रही है। राहुल गांधी के तेवर काफी आक्रामक हैं। वह चुनावी मंचों से बार-बार ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ की बात कर रहे हैं। केंद्र सरकार की टॉप ब्यूरोक्रेसी में ओबीसी के बेहद कम प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठा रहे हैं। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी तो यूपी में ‘पीडीए’ पिछड़े, दलित और अल्पसंख्य यात्रा निकालकर जातिगत समीकरण साधने की बिसात बिछा रहे हैं। सपा मुखिया तो भारतीय क्रिकेट टीम की वर्ल्ड कप में जीत तक में ‘पीडीए’ एंगल तलाशने से नहीं चूक रहे। वैसे भी तमाम क्षेत्रीय पार्टियों की तो पूरी राजनीति ही जाति के ईर्द-गिर्द घूमती हैं। वर्षों से कुछ खास जातियों और अल्पसंख्यक वोटों पर ही उनका पूरा सियासी समीकरण टिका हुआ है।

बीजेपी की नजर केंद्र की सत्ता में हैटट्रिक लगाने पर है। आंकड़े गवाह हैं कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उसकी प्रचंड जीत की कुंजी कहीं न कहीं ओबीसी वोट के हाथ में थी। सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक, 1996 में बीजेपी को महज 19 प्रतिशत ओबीसी वोट मिले थे लेकिन 2014 में यह बढ़कर 34 प्रतिशत और 2019 में तो 44 प्रतिशत पर जा पहुंचा। पिछड़ा वर्ग पर कभी कांग्रेस की मजबूत पकड़ हुआ करती थी लेकिन मंडल पॉलिटिक्स ने उसकी पकड़ को बेहद कमजोर कर दिया। 2014 और 2019 में कांग्रेस को महज 15 प्रतिशत ओबीसी वोट मिले। 90 के दशक के बाद से 2014 के लोकसभा चुनाव तक ओबीसी वोटों में 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी क्षेत्रीय दलों की थी। गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी दलों के खाते में आधे से अधिक ओबीसी वोट जाया करते थे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस तिलिस्म को तोड़ने में कामयाब हुई। पहली बार गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस दलों का ओबीसी वोट में शेयर 50+ प्रतिशत से घटकर 41 प्रतिशत पर आ गया।

पिछले दो चुनावों से बीजेपी की नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी में पैठ मजबूत हुई है। यादव, कुर्मी, जाट, वोक्कालिगा जैसी डॉमिनेंट-ओबीसी जातियों को भी लुभाने में बीजेपी कामयाब हो रही है। 2014 में बीजेजीप को डॉमिनेंट ओबीसी का 30 प्रतिशत वोट मिला था जबकि नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी में उसका वोटशेयर 43 प्रतिशत था। 2019 में ओबीसी पर उसकी पकड़ और मजबूत हुई। पिछले लोकसभा चुनाव में 40 प्रतिशत डॉमिनेंट ओबीसी और 48 प्रतिशत नॉन-डॉमिनेंट ओबीसी ने बीजेपी को वोट दिया।

ऊपर दिए आंकड़े बताते हैं कि किस तरह बीजेपी ने जातियों खासकर ओबीसी को साधने में कामयाबी हासिल की है। अगर वह लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में आना चाहती है तो उसके सामने ओबीसी पर अपनी पकड़ को बरकरार रखने या उसे और मजबूत करने की चुनौती होगी। ओबीसी वोटरों में बीजेपी के दबदबे को खत्म करने के लिए ही विपक्ष कास्ट सेंसस के मुद्दे पर आक्रामक है। उसे भी पता है कि बीजेपी के इस मजबूत स्तंभ को गिराए बिना उनके हाथ सत्ता नहीं आने वाली। आने वाले समय में जाति की राजनीति की धार और तेज होगी।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments