हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल ने नए राज्यों के गठन को देश को कमजोर होना बताया है! यूपी से लेकर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल तक कई राज्यों में पृथक राज्य की मांग रह-रहकर जोर पकड़ती रहती है। दूसरी तरफ तमिलनाडु के गवर्नर आर. एन. रवि ने नए राज्यों के गठन को ‘आइडिया ऑफ भारत’ को कमजोर करने वाला करार दिया है। उन्होंने कहा है कि आजादी के बाद नए राज्यों का गठन ही नहीं होना चाहिए था क्योंकि लोगों ने अपनी पहचान राज्यों से जोड़ना शुरू कर दिया। पटना में जन्मे पूर्व नौकरशाह ने कहा कि नए राज्यों के बनने से एकत्व की भावना और ‘आइडिया ऑफ भारत’ कमजोर हो जाते हैं क्योंकि हमारी सोच संकीर्ण हो जाती है। क्षेत्रीयता की भावना हावी हो जाती है। आर. एन. रवि के इस बयान से ‘नए राज्यों के गठन होने चाहिए या नहीं’ को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। तमिलनाडु के राज्यपाल ने राजभवन में उत्तराखंड के स्थापना दिवस समारोह के लिए आए पहाड़ी राज्य के स्टूडेंट और डेलिगेट्स को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद लोगों ने अपनी पहचान अपने-अपने राज्यों से जोड़ना शुरू कर दिया। गवर्नर ने कहा, ‘स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पूरे देश ने एक होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और पूरे देश में प्रतिरोध दिखा। जब अंग्रेजों ने लोगों को सांप्रदायिक आधार पर बांटना शुरू कर दिया तब पूरे देश के लोगों ने इसके खिलाफ विद्रोह किया। लेकिन जब भारत आजाद हो गया और आधुनिक राज्य विकसित होने लगे तब राजनीति राज्य केंद्रित हो गई। नए राज्यों के गठन के साथ एकत्व की भावना और आइडिया ऑफ भारत कमजोर हुआ ह। हमारे विचार संकीर्ण हो गए। लोगों ने अपने-अपने राज्यों से अपनी पहचान जोड़नी शुरू कर दी।’ इस दौरान उन्होंने तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद का भी जिक्र किया। गवर्नर ने कहा, ‘आज, तमिलनाडु और कर्नाटक कावेरी के पानी के लिए लड़ रहे हैं। 1956 के पहले यह एक ही राज्य था और वे सभी एक साथ खुशी से रह रहे थे।’
तमिलनाडु के गवर्नर ने नए राज्यों के गठन के खिलाफ पुरजोर दलील देकर एक नई बहस छेड़ दी है। संयोग से यूपी समेत कई राज्यों में पृथक राज्य की मांग रह-रहकर जोर पकड़ती रहती है। सियासी लिहाज से सबसे अहम उत्तर प्रदेश को बांटने की लंबे समय से मांग उठती रही है। 2000 में उत्तराखंड इसी से कटकर अलग राज्य बना था। उसके बाद भी सूबे को 4 भागों पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और हरित प्रदेश में बांटने की मांग होती रहती है। 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने तो यूपी को 4 छोटे-छोटे हिस्सों में बांटने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव भी पास कराया था। इसी तरह महाराष्ट्र में भी अलग विदर्भ और सौराष्ट्र की मांग होती रही है। पश्चिम बंगाल में गोरखाबहुल इलाकों में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग होती रही है।राज्यों को पुनर्गठित करने के पक्ष में बड़ी दलील ये दी जाती है कि इससे प्रशासन में सहूलियत होती है। पिछड़े क्षेत्रों को विकास करने का मौका मिलता है। आर्थिक विकास तेजी पकड़ता है। दूसरी तरफ इसके विरोध में दलील दी जाती है कि इससे क्षेत्रीय संघर्ष और तनाव पैदा हो सकती है। क्षेत्रीयतावाद की संकीर्ण भावना हावी हो जाती है जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता को कमजोर कर सकता है। तमिलनाडु के गवर्नर ने भी इस तरफ इशारा किया है। इसके अलावा नए राज्यों के गठन पर काफी सारे पैसे खर्च होते हैं। पैरेंट स्टेट में इस बात का असंतोष हो सकता है कि उससे उसके रिसोर्सेज छीने जा रहे हैं। नए राज्यों के गठन का एक यह भी खतरा है कि किसी राज्य में किसी जाति विशेष या समुदाय विशेष का ही सियासी दबदबा हो जाता है। ये तो रहीं नए राज्य के गठन को लेकर पक्ष और विपक्ष की दी जाती रहीं दलीलों की। लेकिन क्या आजादी के बाद नए राज्यों का गठन ही नहीं होना चाहिए था?
देश जब आजाद हुआ तब 500 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतें थीं। तब प्रशासन के लिहाज से उन्हें ए, बी, सी और डी के रूप में अस्थायी तौर पर 4 श्रेणियों में बांटा गया था। ऐसे में राज्यों का पुनर्गठन बहुत जरूरी था। क्षेत्रीय, भाषायी और आर्थिक आधार पर देश के हर कोने से राज्यों के पुनर्गठन की मांग जोर पकड़ रही थी। इस मांग में सबसे लोकप्रिय आधार भाषा का था। मद्रास प्रेसीडेंसी के तेलुगुभाषी इलाकों में भाषा के आधार पर नए राज्य की मांग सबसे पुरजोर थी। इसे लेकर पोट्टी श्रीरामुलु ने 19 अक्टूबर 1952 को अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी। भूख हड़ताल के 56वें दिन 15 दिसंबर 1952 को उनकी मौत हो गई। इससे बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी और पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुआई वाली तत्कालीन सरकार को राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक आयोग बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। जस्टिस सैयद फजल अली की अध्यक्षता, हृदयनाथ कुंजरू और कवलम माधव पणिक्कर की सदस्यता में तीन सदस्यों वाले राज्य पुनर्गठन आयोग को बनाया गया। राज्य पुनर्गठन आयोग ने 1956 में अपनी सिफारिशें दीं जिसके बाद देश में 14 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए।