क्या वर्तमान में ग्लोबल साउथ को बड़ी भूमिका मिलने का हो रहा है विरोध?

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वर्तमान में ग्लोबल साउथ को बड़ी भूमिका मिलने का विरोध किया जा रहा है! भारत ने ग्लोबल साउथ के देशों से आर्थिक उथल-पुथल के समय होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में काम करने को कहा है। अपने बेबाक और स्पष्ट बोल के लिए जाने जाने वाले जयशंकर ने कहा कि कोविड-19 का दौर बुनियादी आवश्यकताओं के लिए दूर-दराज के भौगोलिक क्षेत्रों पर निर्भरता के खतरों की याद दिलाता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत की मेजबानी में आयोजित वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के दूसरे संस्करण को संबोधित करते हुए यह बात कही। जयशंकर ने भारत की जी20 अध्यक्षता की उपलब्धियों का भी जिक्र किया और बताया कि कैसे इसने ग्लोबल साउथ या विकासशील देशों के सामने आने वाली चुनौतियों को हल करने का काम किया है। जयशंकर ने कहा, ‘ दिल्ली घोषणापत्र को ग्लोबल साउथ की वास्तविक और गंभीर चिंताओं पर जी20 का ध्यान वापस लाने के लिए याद किया जाएगा।’ उन्होंने कहा कि घोषणापत्र मजबूत, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के संबंध में एक “व्यापक संदेश है।

विदेश मंत्री ने कोई विशिष्ट संदर्भ दिए बिना कहा कि मौजूदा समय के प्रमुख मुद्दों के समाधान को आकार देने में ‘ग्लोबल साउथ’ की बड़ी भूमिका का विरोध हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘जब हम आगे देखते हैं, सभी के विश्वास के साथ, सभी के विकास का हमारा दृष्टिकोण साकार होने से बहुत दूर है। जब बदलाव प्राकृतिक नियम है तो हमारे समय के प्रमुख मुद्दों के समाधान को आकार देने में ग्लोबल साउथ की बड़ी भूमिका का विरोध हो रहा है।’ जयशंकर ने कहा कि वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट हमारी व्यक्तिगत चिंताओं से अवगत कराने और उभरती विश्व व्यवस्था के लिए हमारे साझा हितों को पेश करने के लिहाज से काफी प्रभावशाली हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘हमें आर्थिक उथल-पुथल से मुकाबला करने को लेकर अपनी कमजोरियों को दूर करने के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में भी काम करने की जरूरत है। कोविड युग बुनियादी जरूरतों के लिए दूर-दराज के इलाकों पर निर्भरता के खतरों की याद दिलाता है।’

उन्होंने कहा कि हमें न केवल उत्पादन को उदार बनाने और विविधता लाने की जरूरत है, बल्कि लचीली और विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला बनाने और स्थानीय समाधानों को बढ़ावा देने की भी जरूरत है। तभी ग्लोबल साउथ अपना भविष्य सुरक्षित कर सकता है। जयशंकर ने नई दिल्ली में हुए जी20 शिखर सम्मेलन में स्थायी सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ के शामिल होने का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, ‘शायद, हमारी जी20 अध्यक्षता का सबसे संतोषजनक परिणाम अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करना था। ऐसा करके, हमने अफ्रीका के 1.4 अरब लोगों को आवाज दी है।’

विदेश मंत्रालय के अनुसार ग्लोबल साउथ समिट में वैश्विक चुनौतियों का सामना करने और समावेशी वर्ल्ड ऑर्डर बनाने की कोशिशों पर फोकस होगा। इस सम्मेलन में 10 सेशन होंगे। इसमें व्यापार, एनर्जी और क्लाइमेट फाइनेंस जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। समिट की शुरुआत और अंतिम सेशन की अध्यक्षता प्रधानमंत्री मोदी करेंगे। भारत की अध्यक्षता में सितंबर में G20 में स्थायी सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ को शामिल किया गया था। यह घटना इस लिहाज से अहम थी कि 1999 में बने G20 समूह का यह पहला विस्तार था। भारत ने अफ्रीकी संघ को सदस्य के तौर पर शामिल करवाने के लिए लगातार प्रयास भी किए थे। इसकी वजह थी कि अफ्रीकी महाद्वीप को सही प्रतिनिधित्व मिल सके।

ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है, जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित देशों के रूप में जाना जाता है। ये देश मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं। इनमें से कई देश 1960 और 1970 के दशक तक पश्चिमी यूरोपीय औपनिवेशिक का हिस्सा रह चुके हैं। ग्लोबल साउथ दुनिया की 85 फीसदी से अधिक आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी के लगभग 40 फीसदी का प्रतिनिधित्व करता है।

भारत को पूरी दुनिया में ग्लोबल साउथ का नेता माना जाता है। भारत वैश्विक मंज पर ग्लोबल साउथ की आवाज बन चुका है। जनवरी 2023 में भारत ने पहली बार वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी की। दूसरी तरफ चीन ग्लोबल साउथ के नेता के तौर पर भारत को हटाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है। ऐसे में भारत अगर दूसरी बार ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी कर रहा है तो चीन का फ्यूज उड़ना तय है। शीत युद्ध की समाप्ति तक चीन ग्लोबल साउथ के सदस्य देश था। इसके बाद चीन ने आर्थिक रूप से खूब तरक्की की। ऐसे में चीन ग्लोबल साउथ का सदस्य नहीं है। हालांकि, वह खुद को ग्लोबल साउथ के नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाता रहा है।