वर्तमान में इजरायल और हमास के युद्ध ने कई राज खोल दिए हैं! 2022 की शुरुआत में UNSC काउंटर-टेररिज्म कमिटी का अध्यक्ष था तो मुझे UN की एक अन्य बैठक में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। जैसी कि परंपरा है, हमने सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों के अनुमोदन के लिए एक मसौदा भाषण प्रसारित किया, जिसमें आतंक के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ शब्द था। आश्चर्यजनक रूप से, कुछ पश्चिमी UNSC सदस्य देशों ने ‘जीरो टॉलरेंस’ पर आपत्ति जताई और इसे हटाने की मांग की। मैंने उनसे पूछा: किस मामले में, आप कितना आतंकवाद सहन करने को तैयार हैं? इसके जवाब में उन्होंने तर्क दिया कि आतंक के लिए ‘जीरो टॉलरेंस’ का मतलब है कि देश मानवाधिकारों और मानवीय कानून की परवाह किए बिना आतंक के खिलाफ युद्ध छेड़ सकते हैं, जिसका उल्लंघन किसी भी कीमत पर नहीं किया जा सकता है। यूक्रेन युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने आम नागरिकों की हत्या को लेकर रूस की लानत-मलानत की। अब 7 अक्टूबर को हमास के आतंकी हमले के बाद जब इजरायल ने गाजा में आतंक के खिलाफ अंधाधुंध जंग छेड़ रखी है तब पश्चिम ने तेजी से रुख में बदलाव किया है। उसने इजरायल के आतंक के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावे का खुलकर समर्थन किया है। वे मूकदर्शक बनकर खड़े हैं जब गाजा में करीब 5,000 फिलिस्तीनी बच्चे मारे गए हैं (मलबे के नीचे दबे सैकड़ों अन्य गिनती भी शामिल नहीं)। जिसे UN महासचिव एंटोनियो गुतरेस ने “बच्चों का कब्रिस्तान” बताया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद नागरिकों की हत्या की निंदा की है। आतंक के लिए शून्य सहिष्णुता की बात हो रही लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून और नागरिकों की सुरक्षा की कोई फिक्र नहीं।
लेकिन देशों पर कहीं और कुछ कार्रवाई दिखाने का दबाव है। UNSC ने 14 नवंबर को एक प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसमें मानवीय उद्देश्यों की एक श्रृंखला के लिए “तत्काल और विस्तारित मानवीय विराम और गलियारे” का आह्वान किया गया था। लेकिन हत्याओं को रोकने का कोई आह्वान नहीं था। प्रस्ताव की भावना पर जाएं तो गाजा में नागरिकों के लिए पानी, भोजन, ईंधन और दवाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनकी अंधाधुंध हत्या को रोकना अभी प्राथमिकता में नहीं है।
इजरायल ने इस कमजोर प्रस्ताव तक को खारिज कर दिया। वे तो गाजा में दक्षिण की तरफ से अपने ग्राउंडर ऑपरेशन का विस्तार करने जा रहे हैं। इजरायल पर अगर किसी देश का कोई प्रभाव है तो वह अमेरिका है। लेकिन अमेरिका भी यह सुनिश्चित कर रहा है कि इजरायल गाजा में जो करना चाहता है, उसे करने के लिए उसे पर्याप्त समय मिले। यानी हमास और उसके ठिकानों का हर कीमत पर खात्मा। यही वजह है कि अरब देशों और ग्लोबल साउथ की तरफ से संघर्षविराम की अपील को खारिज कर दिया गया।
इजरायल की कार्रवाई के पुरजोर समर्थन और गाजा में मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ने से बढ़े दबाव के बीच संतुलन साधने के लिए अमेरिका ने टू-स्टेट सलूशन की बात करना शुरू कर दिया है। यह एक ऐसी शब्दावली है जो हाल के समय में पश्चिमी देशों और यहां तक कि अरब देशों के शब्दकोश से भी गायब हो चुका था।
दिलचस्प बात ये है कि अमेरिका ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में आए उस प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था जिसमें इजरायल को वेस्ट बैंक और ईस्ट यरूशलम में बस्तियां बसाने से रोकने को कहा गया था। दरअसल इजरायली बस्तियां ही टू-स्टेट सलूशन को हासिल करने की राह में सबसे बड़ी और कठिन बाधा है। धुआंधार नई बस्तियों के विस्तार से इस साल 7 अक्टूबर के आतंकी हमले से पहले तक वेस्ट बैंक में 250 फिलिस्तीनियों को जान गांवानी पड़ी थी। यह भी विडंबना है कि अमेरिका ने 2016 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 2334 प्रस्ताव को पास होने दिया जिसमें इजरायली सेटलमेंट्स की निंदा की गई थी और उन्हें गैरकानूनी बताया था। अब उन्होंने चुनावी साल से पहले घरेलू दबाव के आगे झुककर रुख बदल लिया है। इजरायल की तरफ से बस्तियां बसाने को लेकर मुस्लिमों के साथ-साथ ईसाइयों में भी रोष बढ़ रहा है। यरूशलम में ईसाइयों को लगता है कि अवैध बस्तियों के जरिए ओल्ड यरुशलम में उनकी जमीन पर कब्जा हो रहा है और वे वजूद के संकट का सामना कर रहे हैं।
पश्चिमी देश अभी जिस चुनौती का सामना कर रहे हैं वह हैं इस्लामोफोबियां का बढ़ता शोर और इस्लामी जिहादी आतंकवाद। अमेरिका में हो रह घरेलू विरोध प्रदर्शन यहूदी विरोधी या इस्लामोफोबिया की भावना को हवा दे रहे हैं। यूएस ने तो 1 नवंबर को ऐलान किया कि वह इस्लामोफोबिया को काउंटर करने के लिए पहली बार यूएस नैशनल स्ट्रैट्जी तैयार करेगा।
अमेरिका और यूरोप दोनों ही दक्षिणपंथ के उभार का सामना कर रही है। यही वजह है कि यूरोपीय देशों ने एक तरफ तो यूक्रेन को लेकर रूस की बिना लागलपेट के निंदा की लेकिन दूसरी तरफ गाजा युद्ध पर क्या कहना है, इसे लेकर काफी कन्फ्यूज दिख रहे हैं।
गाजा में आक्रामक कार्रवाई एशिया और अफ्रीका में इस्लामी जिहादियों और दूसरे आतंकी संगठनों को उकसाएगी। उनके पास पहले ही तालिबान के रूप में एक मॉडल है कि कैसे ऐसे संगठन किसी देश की सत्ता में भी आ सकते हैं। हमास के ठिकानों पर बमबारी से हो सकता है कि दूसरे इस्लामी जिहादी आतंकी समूह कमजोर हों लेकिन गाजा पर बमबारी से फिलिस्तीनी राष्ट्र की संकल्पना का देर-सबेर साकार होना सुनिश्चित हो सकता है।