आज हम आपको सुरंग खोदने वाले रैट माइनर की कहानी सुनाने वाले हैं! भारत के जितने भी वर्कर या मजदूर हैं उनके सैलरी को लेकर कोई भेदभाव न हो जिससे वो आगे परेशान न हों या दिक्कतें न आएं। उन लोगों को इतनी सैलरी दी जाए कि उनकी परेशानियां दूर हों। आज कल कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें टेंडर मिल रहे हैं वो क्या करते हैं कि काम करवाते हैं और पैसे रोक लेते हैं। कभी आधे दे दिए कभी नहीं दिए। ऐसे में बेचारा मजदूर भटकता रहता है। वह किसी से कुछ कह ही नहीं पाता है। वो ऐसे ही तंग हो जाता है उसकी फैमिली भी परेशान हो जाती है। ये दर्द है उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग मजदूरों को निकालने में अहम भूमिका निभाने वाले रैट माइनर मुन्ना कुरैशी का। मुन्ना कुरैशी ने पीएम मोदी से अपील की है कि मजदूरों की सुविधा की जाए। पूरे भारत के मजदूरों के बारे में सोचा जाए। मुन्ना ने कहा कि मेरे काम में जो परेशानी है वो तो हैं। इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में मुन्ना ने कहा कि मेरे जीवन में पहले कभी इतनी खुशी नहीं मिली जितनी आज मिल रही है। उन्होंने कहा कि मैं कभी नहीं रोता मगर इस खुशी ने मुझे रुला दिया। मैं तीन बार रोया। बता दें कि मजदूरों को बचाने के काम में रैट माइनर्स ने सुरंग का निर्माण करा रही कंपनी से अपने काम की ऐवज में कोई पैसे नहीं लिए। एक अन्य रैट माइनर देवेंद्र ने इसे अपने जीवन का सबसे सुकून देने वाला काम बताया था। देवेंद्र का कहना था कि पूरे देश को हमारे से उम्मीद थी और हम लोगों को किसी भी तरह से निराश नहीं करना चाहते थे।
सिलक्यारा टनल हादसे में मजदूरों को निकालने की कहानी अपने बच्चों से शेयर करने के सवाल पर मुन्ना ने अलग ही जवाब दिया। मुन्ना ने कहा कि मैं अपने बच्चों को बचाव की कहानी नहीं बताऊंगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि वे रैट माइनिंग के करीब पहुंचें। ये चीजें मैं उन्हें दिखाना नहीं चाहता। उन्होंने कहा कि हर मां बाप चाहता है कि उनका बेटा पढ़े-लिए और डॉक्टर या इंजीनियर बनें। मुन्ना ने कहा कि मैं बस यही कहूंगा कि किसी की जिंदगी बचाना बहुत बड़ा पुण्य का काम है। उन्होंने कहा कि सुरंग में जो 41 लोग फंसे थे उनके पीछे मां-बाप, भाई-बहन उनका पूरा परिवार था।
इससे पहले सिलक्यारा सुरंग में करीब 17 दिन तक फंसे रहे सभी 41 श्रमिकों मंगलवार को सकुशल बाहर निकाले गए थे। इन्हें निकालने में विभिन्न एजेंसियों के संयुक्त बचाव अभियान के तहत निकालने में सफलता पाई थी। मजदूरों के बाहर निकलने पर वहां खुशी का माहौल बन गया था। चारधाम यात्रा मार्ग पर निर्माणाधीन साढ़े चार किलोमीटर लंबी सिलक्यारा—बड़कोट सुरंग के 12 नवंबर को एक हिस्सा ढहने से मजदूर उसमें फंस गए थे। ऐसे में बचाव दल में रैटमाइनर्स ने देवदूत बनकर इन मजदूरों को बाहर निकालने के काम में सफलता पाई।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में दीपावली के दिन अंधेरी सुरंग में फंसे मजदूरों को निकलने के लिए एनडीआरएफ, सेना के जवान सहित अनेक एजेंसियां रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी थी। यही नहीं अमेरिका की ऑगर मशीन का भी प्रयोग किया गया। इसके बाद जब मजदूरों तक रेस्क्यू टीमें 25 नवंबर तक नहीं पहुंच सकी तो रैट माइनर्स को बुलाया गया। बुलंदशहर के रैट माइनर देवेंद्र ने बताया कि उत्तराखंड सरकार और रेस्क्यू टीम ने बुलंदशहर के गांव अख्तियारपुर निवासी रैट माइनर्स देवेंद्र और मोनू सगे भाई, अंकुर, जतिन और सौरभ सगे भाई को उत्तर कांशी बुलाया। जहां 6 रैट माइनर्स यूपी से और 6 रैट माइनर्स दिल्ली से थे।12 सदस्यीय रैट माइनर्स का दल 26 नवंबर को सुरंग में प्रवेश कर गया। दूसरी तरफ अब इस दल ने योगी सरकार से पक्के मकान की उम्मीद जताई है। 12 रैट माइनर्स की टीम ने 3 दिन तक अपनी जिंदगी दांव पर लगाकर खुदाई की। 18 मीटर खुदाई करने के बाद अंधेरी टनल में फंसे 41 मजदूरों तक पहुंच सके। रेस्क्यू टीमों ने एक-एक करके टनल में फंसे सभी लोगो को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। रैट माइनर्स का दल सुरक्षित है। सभी को एक कैंप में ठहराया गया है।
उत्तराखंड की अंधेरी टनल में रैट माइनिंग करने गए बुलंदशहर के रैट माइनर देवेंद्र ने बताया कि चूहे की तरह खुदाई करनी होती है। आगे बढ़ना भी है, कुदाल से खोदी गई मिट्टी बाहर भेजनी भी है और खुद को भी सुरक्षित रखना है। रैट माइनिंग खतरों से भरा होता है। देवेंद्र ने बताया कि पहले एक मोटा पाइप डाला जाता है, इसके अंदर रैट माइनर्स को भेजा जाता है फिर रैट माइनर्स हाथ की कुदाल से सावधानी पूर्वक अंदर ही अंदर खुदाई करते है। रेल की पटरी की तरह लाइन बिछाकर उस पर तस्ले रखकर मिट्टी बाहर खींची जाती है। साथ-साथ पाइप को जैक की मदद से लगातार अंदर की तरफ बढ़ाया जाता है। सिलक्यारा टनल में 18 मीटर तक खुदाई की गई थी।
बुलंदशहर के रैट माइनर्स देवेंद्र और उसके भाई मोनू ने फोन पर बताया कि गांव में कच्चा घर है। उन्होंने मीडिया के माध्यम से योगी सरकार से पक्का घर बनवाने की मांग की है। उत्तराखंड की अंधेरी टनल ऑपरेशन की सफलता के बाद बुलंदशहर के रैट माइनर्स ने फोन पर परिजनों से बात की। रैट माइनर देवेंद्र की मां मायावती ने बताया कि उसने अपनी कुशलता फोन पर बताई। शीघ्र ही घर लौटने की बात कही। मोनू की बहन धर्मवती ने बताया कि वह जब बुलंदशहर आएंगे तो उनका ढोल के साथ स्वागत किया जाएगा। मोनू ने बताया कि 18 मीटर सुरंग खोदने के बाद मजदूरों को निकाला जा सका। रैट माइनर अंकुर के चचेरे भाई मनोज गौतम ने बताया कि उत्तराखंड से 1 दिसंबर को बुलंदशहर आने को बात कही है।
उत्तराखंड में टनल रेस्क्यू ऑपरेशन की कमांडिंग कर रही टीम की तरफ से जब बुलंदशहर के परफेक्ट रैट माइनर्स को बुलाने की खबर आई तो परिजन भावुक हो गए। परिजनों को समझ नहीं आ रहा था कि 41 जिंदगी बचाने के चक्कर में कहीं उनके बेटे की जिंदगी न चली जाए। फिर भी 41 जिंदगियां बचाने के लिए अख्तियारपुर गांव के तीन परिवारों ने अपने पांच लालों को उत्तराखंड भेज दिया। अब ऑपरेशन टनल की सफलता के बाद परिवारों में खुशी का माहौल है। बुलंदशहर के रैट माइनर देवेंद्र ने फोन पर बताया कि वह पिछले 9 साल से रैट माइनिंग का काम कर रहा है। रैट माइनिंग का काम अपने गुरु मुन्ना से सीखा था। मुन्ना ने गांव के कई युवकों को रैट माइनिंग सिखाई थी। सभी माइनिंग में परफेक्ट है। पूर्व में भी कई स्थानों पर रैट माइनिंग का कार्य कर सफलता प्राप्त कर चुके है।