आज हम आपको बताएंगे कि देश के जजों में कितने जज सवर्ण जाति से है! जजों की नियुक्ति के कॉलिजियम सिस्टम को लेकर सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच जबर्दस्त खींचतान चली। आखिरकार, सरकार ने कॉलिजियम सिस्टम को खत्म करने का फैसला किया और कानून लेकर आई तो सुप्रीम कोर्ट ने उसे रद्द कर दिया। कहा जाता है कि कॉलिजियम सिस्टम के कारण जजों की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद और अपने-पराये की बड़ी पैठ रहती है। सरकार ने वर्ष 2018 से उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्तियों के आंकड़े पेश किए हैं। इसमें कहा गया है कि 76% नियुक्तियां सामान्य श्रेणी में हुई हैं। आंकड़े कहते हैं कि 2018 से लेकर अब तक अलग-अलग हाई कोर्ट में नियुक्त किए गए 650 जजों में से 492 सामान्य श्रेणी से हैं। यह यानी कुल 76% नियुक्तियां अनारक्षित श्रेणी से हुई है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा को बताया कि यह आंकड़ा विभिन्न उच्च न्यायालयों के कॉलेजियमों की तरफ से जजों की नियुक्ति के लिए वकीलों और न्यायिक अधिकारियों की सिफारिशों के दौरान उपलब्ध कराया गया था।
मेघवाल ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में गुरुवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के जजों की नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। मेघवाल ने कहा कि हालांकि केंद्र सरकार के पास उच्च न्यायालयों के जजों में ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व से जुड़ा कोई केंद्रीय डेटा नहीं है, लेकिन नियुक्ति के लिए विचार किए जाने के दौरान सिफारिश करने वाले स्वयं अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि की जानकारी देते हैं। मंत्री ने कहा, ‘2018 से अब तक 650 में से 492 उच्च न्यायालय के जज सामान्य श्रेणी से हैं, 20 एससी से, 12 एसटी से, 77 ओबीसी से जबकि 36 अल्पसंख्यकों से हैं। सामान्य श्रेणी में सिर्फ सवर्णों नहीं, सभी जातियों की हिस्सेदारी होती है। सामान्य श्रेणी दरअसल अनारक्षित श्रेणी होती है जिसमें हर जाति, धर्म, पंथ के प्रतिभागी की समान हिस्सेदारी होती है। इस श्रेणी में किसी वर्ग को विशेष तवज्जो नहीं मिलती। आरक्षण के दायरे में आने वाली जातियों के प्रतिभागी आरक्षित वर्ग के लिए निर्धारित कट ऑफ से ज्यादा अंक प्राप्त करते हैं तो उन्हें जनरल कैटिगरी में शामिल कर लिया जाता है।शेष 13 जजों के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।’
सुप्रीम कोर्ट के जजों के बारे में सरकार ने कहा कि उनके पास उनकी जाति के बारे में कोई जानकारी नहीं है। 8 दिसंबर तक शीर्ष अदालत में 34 जजों के साथ पूर्ण क्षमता थी, जबकि उच्च न्यायालयों में 1,114 स्वीकृत पदों के मुकाबले 790 जज थे। संवैधानिक अदालतों के लिए जजों की नियुक्ति का मार्गदर्शन करने वाले मेमोरेंडम ऑफ प्रसीजर के अनुसार, हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास होता है।
उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को किसी भी पद के खाली होने से छह महीने पहले ही उस पद को भरने के लिए प्रस्ताव शुरू करने की आवश्यकता होती है। कानून मंत्री ने कहा, ‘सरकार मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध कर रही है कि जजों की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजते समय एससी/एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से संबंधित उपयुक्त उम्मीदवारों पर विचार किया जाए, यानी कुल 76% नियुक्तियां अनारक्षित श्रेणी से हुई है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा को बताया कि यह आंकड़ा विभिन्न उच्च न्यायालयों के कॉलेजियमों की तरफ से जजों की नियुक्ति के लिए वकीलों और न्यायिक अधिकारियों की सिफारिशों के दौरान उपलब्ध कराया गया था।ताकि जजों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता सुनिश्चित हो सके।’
ध्यान रहे कि सामान्य श्रेणी में सिर्फ सवर्णों नहीं, सभी जातियों की हिस्सेदारी होती है। सामान्य श्रेणी दरअसल अनारक्षित श्रेणी होती है जिसमें हर जाति, धर्म, पंथ के प्रतिभागी की समान हिस्सेदारी होती है। इस श्रेणी में किसी वर्ग को विशेष तवज्जो नहीं मिलती। आरक्षण के दायरे में आने वाली जातियों के प्रतिभागी आरक्षित वर्ग के लिए निर्धारित कट ऑफ से ज्यादा अंक प्राप्त करते हैं तो उन्हें जनरल कैटिगरी में शामिल कर लिया जाता है। 8 दिसंबर तक शीर्ष अदालत में 34 जजों के साथ पूर्ण क्षमता थी, जबकि उच्च न्यायालयों में 1,114 स्वीकृत पदों के मुकाबले 790 जज थे। संवैधानिक अदालतों के लिए जजों की नियुक्ति का मार्गदर्शन करने वाले मेमोरेंडम ऑफ प्रसीजर के अनुसार, हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के पास होता है।इस तरह आरक्षण प्राप्त जातियों के प्रतिभागियों का जहां आरक्षित कोटे पर एकाधिकार होता है, वहीं उनका अनारक्षित यानी सामान्य श्रेणी की रिक्तियों पर भी समान अधिकार बना रहता है।