आज हम आपको ज्ञानवापी पर 1991 के केस के बारे में जानकारी देने वाले हैं! इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर मंगलवार को बड़ा फैसला दिया। हाई कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई के योग्य माना है। वाराणसी कोर्ट को दिए गए आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 6 माह में याचिका पर सुनवाई के आदेश दिए हैं। दरअसल, वर्ष 1991 में आदि विश्वेश्वर महादेव की ओर से उनके मित्रों ने एक याचिका दायर की थी। वाराणसी कोर्ट में दायर याचिका में ज्ञानवापी परिसर पर हिंदुओं का दावा किया गया था। इसमें कहा गया था कि आदि विश्वेश्वर महादेव मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। इसलिए, इसे हिंदुओं को वापस दे दिया जाए। हिंदू पक्ष ने पूजा- पाठ की मंजूरी मांगी थी। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट चला गया। 1991 में पारित किए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए मस्जिद किसी प्रकार के दावे और केस की पोषणीयता पर सवाल खड़े किए गए। पिछले 32 वर्षों से इस केस पर सुनवाई होगी या नहीं, यह मामला झूलता रहा। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की सुनवाई का आदेश जारी कर मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका दिया है। इस आदेश के तहत वाराणसी कोर्ट में अब 1991 के केस का ट्रायल शुरू होगा। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर की ओर से 15 अक्टूबर 1991 को पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे डॉ. रामरंग शर्मा ने वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा- पाठ का अधिकार देने की मांग की गई। पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और डॉ. रामरंग शर्मा की ओर से दायर याचिका पर मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई है। केस में देवता ‘स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर’ के नाम पर भक्तों ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई।
याचिका में कहा गया है कि इस मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ध्वस्त करा दिया था। हिंदू पक्ष ने मांग की कि उन्हें अपने मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए। अपने पक्ष में उन्होंने तर्क दिया कि पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम 1991 मस्जिद पर लागू नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पुराने विश्वेश्वर मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। इस केस के तीनों याचिकाकर्ताओं की मृत्यु हो चुकी है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में पांच याचिकाओं पर सुनवाई चल रही थी। 8 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया था। मंगलवार को याचिका पर फैसला आया। हाई कोर्ट में दायर दो याचिका सिविल वाद की पोषणीयता और तीन याचिका ASI सर्वे आदेश के खिलाफ थी। दो याचिकाओं में 1991 में वाराणसी की जिला अदालत में दायर मूल वाद की पोषणीयता को चुनौती दी गई थी। वहीं, तीन याचिकाओं में अदालत के परिसर के सर्वे आदेश को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट के आदेश के बाद वाराणसी कोर्ट में हिंदू पक्ष की याचिका पर अब सुनवाई हो सकेगी। 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी कोर्ट में आदि विश्वेश्वर महादेव के मित्रों की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद पर दावा का केस दर्ज कराया गया। इसके बाद मामला कोर्ट की तारीखों में उलझ गया।
हिंदू पक्ष की दलील पर सात साल बाद ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन ने जवाबी आवेदन दिया। इसमें मामले को खारिज करने की मांग इस आधार की गई। इसके 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के प्रावधानों के अधीन आने का दावा किया गया। इसके बाद मामला करीब 21 सालों तक कोर्ट में झूलता रहा। स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वकील विजय शंकर रस्तोगी ने दिसंबर 2019 में वाराणसी जिला अदालत में अपील की। याचिकाकर्ता ने पूरे ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र का पुरातत्व सर्वेक्षण कराने की मांग की। उनका कहना था कि 1998 में साइट का धार्मिक चरित्र निर्धारित करने के लिए पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र से सबूत जुटाने का आदेश दिया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत का निर्णय स्थगित कर दिया। बाबरी मस्जिद- राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ठीक एक महीने बाद यह याचिका दायर की गई।
वाराणसी कोर्ट ने अप्रैल 2021 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को परिसर का सर्वे कराने और उसके नतीजों को कोर्ट के सामने रखने का आदेश दिया। यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया। इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट में हुई। हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद एसआई सर्वे पर अंतरिम रोक लगा दी।
पूरे मामले में गर्मी तब आई जब लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नंदी की दैनिक पूजा-अर्चना करने की अनुमति मांगी। इतना ही नहीं उन्होंने मांग की कि मुस्लिम पक्ष को विवादित ज्ञानवापी क्षेत्र में मौजूद मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने से रोका जाए। इन पांच महिलाओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए वाराणसी के सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर और उसके आसापास, श्रृंगार गौरी मंदिर की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया। वकीलों की एक टीम की देखरेख में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी शुरू हुई। मसाजिद कमेटी ने इसका विरोध किया। परिणाम यह हुआ कि सर्वे को बीच में ही रोकना पड़ा। 21 जुलाई को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का आदेश दिया था। चार अगस्त तक रिपोर्ट देने को कहा। मामला सुप्रीम कोर्ट और फिर हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट के आदेश के बाद 4 अगस्त से सर्वे की प्रक्रिया विधिवत तरीके से शुरू हुई।
एएसआई ने साइंटिफिक सर्वे के आदेश को वाराणसी जिला कोर्ट में पेश किया। इसके बाद जिला कोर्ट ने 21 दिसंबर को अगली सुनवाई की तारीख निर्धारित की। इस दिन पक्षकारों को एएसआई सर्वे की रिपोर्ट दिए जाने पर अहम सुनवाई होगी। मुस्लिम पक्ष की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद केस में दायर पांचों याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। इन याचिकाओं में 1991 के ज्ञानवापी केस की पोषणीयता को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए वाराणसी कोर्ट को छह माह में मामले की सुनवाई कर आदेश जारी करने को कहा है। वहीं, एएसआई सर्वे की प्रक्रिया पर रोक लगाने संबंधी याचिका को भी हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया।