Monday, December 23, 2024
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आखिर क्यों बढ़ रहा है रुपए और डॉलर का विवाद?

वर्तमान में रुपए और डॉलर का विवाद बढ़ता ही जा रहा है! अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ का मानना है कि जब डॉलर मजबूत होने के कारण लगभग हर मुद्रा कमजोर हो रही थी, तब भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई ने रुपये को स्थिर रखने के लिए जरूरत से ज्यादा कोशिश की। लेकिन आरबीआई, आईएमएफ की रिपोर्ट से असहमत है। आईएमएफ हर साल देश की आर्थिक स्थिति का आकलन करता है। तो चलिए समझते हैं कि आखिर मामला क्या है? आईएमएफ का सिद्धांत है कि देशों को बाजार में विनिमय दर को बदलने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। हालांकि, अचानक ज्यादा उठापटक हो तो उसे नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप ठीक है। दिसंबर 2022 से अक्टूबर 2023 के बीच आरबीआई की विदेशी मुद्रा नीति का आकलन करते हुए आईएमएफ ने पाया कि रुपया-डॉलर की दर बहुत कम बदली, मानो कि किसी ने उसे स्थिर कर रखा हो। इससे आईएमएफ का मानना है कि भारत का विदेशी मुद्रा प्रबंधन ‘उतार-चढ़ाव’ से ‘स्थिर’ हो गया है। आईएमएफ की तरफ से यह मधुर शब्दों में संकेत है कि आरबीआई ने दर को प्रभावित करने की जो कोशिशें कीं, वो आईएमएफ के खाता-बही के लिए सही नहीं है।

आईएमएफ का यह निष्कर्ष कि आरबीआई का हस्तक्षेप ठीक नहीं था, मुख्य रूप से विदेशी मुद्रा भंडार फॉरेक्स रिजर्व या फॉरेक्स रिजर्व पर निर्भर करता है। सरल शब्दों में, किसी देश के पास जितना ज्यादा भंडार होगा, आईएमएफ के तर्क के अनुसार उसे एक्सचेंज रेट को अपने ‘आदर्श’ स्तर पर बनाए रखने की उतनी कम जरूरत होती है। 2022 की पहली छमाही में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2021 के ऐतिहासिक उच्च स्तर से कम हो गया था। लेकिन इसके बाद के महीनों में भंडार बढ़ गया और यही बात आईएमएफ के लिए बहुत अहम थी। आईएमएफ विस्तार से बताता है कि उसने विदेशी मुद्रा का स्तर क्यों ‘एहतियाती उपायों’ के लिए पर्याप्त समझा। उसने कहा कि 2022 के अंत तक भारत के भंडार अल्पकालिक ऋण शॉर्ट टर्म डेट के लगभग 198% और लगभग सात महीने के आयात को कवर कर सकते थे। आईएमएफ के विचार में यह एक सुरक्षित स्थिति है। इसलिए, आईएमएफ का कहना है कि दिसंबर 2022-अक्टूबर 2023 के दौरान रुपया-डॉलर का एक्सचेंज रेट का कम बदलना दिखाता है कि आरबीआई का हस्तक्षेप ‘बाजार की उथल-पुथल’ को नियंत्रित करने से आगे बढ़ गया था।

आईएमएफ ने आरोप लगाया था कि रुपये को स्थिर रखने के लिए आरबीआई ने जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप किया, हालांकि आरबीआई इससे पूरी तरह असहमत है। आरबीआई का कहना है कि आईएमएफ ने सिर्फ 6-8 महीनों का डेटा देखकर अपनी राय बनाई है और इससे ज्यादा समय का आंकड़ा देखने पर उसकी चिंता बिल्कुल बेमतलब साबित होगी। आरबीआई के मुताबिक, अगर पिछले 2-5 साल का डेटा देखें तो आईएमएफ की बात हवा-हवाई साबित होगी। आरबीआई ने एक्सचेंज रेट को ‘स्थिर’ कहने पर भी सवाल उठाया है। अपने बचाव में आरबीआई ने बड़ी तस्वीर देखने की बात कही है। आरबीआई ने बताया कि वो अपने विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप के बारे में बहुत ही स्पष्ट तरीके से जानकारी देता है, जैसा कि आईएमएफ के ही खास नियमों एसडीडीएस विशेष डेटा प्रसार मानक की मांग होती है। इसका मतलब है कि आरबीआई डेटा छिपा नहीं रहा है और रुपये को किसी खास स्तर पर लाने की कोशिश नहीं कर रहा है। सबसे अहम बात, आरबीआई का कहना है कि 2023 में रुपये की स्थिरता भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था और विदेशी व्यापार के बेहतर होने का सबूत है। भारत का चालू खाता घाटा कम हो गया है और विदेशी निवेश फिर से बढ़ रहा है। 15 दिसंबर तक भारत के पास $607 अरब का विदेशी मुद्रा भंडार है।

आईएमएफ को चिंता इस बात की थी कि आरबीआई रुपये को एक खास दायरे में रखने की कोशिश कर रहा है जो उसकी राय में सही नहीं है। आरबीआई का मानना है कि एक बड़े देश के केंद्रीय बैंक के रूप में और विकासशील अर्थव्यवस्था की देखभाल करते हुए उसकी जिम्मेदारी है कि एक, वो रुपये में बहुत बड़े बदलावों को रोकने की कोशिश करे और दो, कभी भी रुपये को मजबूरन किसी खास स्तर पर न लाए।

जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ाता है, जैसा कि उसने 2022 और 2023 में महंगाई से लड़ने के लिए किया था तो विदेशी पोर्टफोलियो पूंजी – जो दुनियाभर में बेहतर रिटर्न की तलाश में घूमती है – विकासशील देशों से बाहर निकल जाती है क्योंकि अमेरिकी सरकारी बॉन्ड अमेरिकी ब्याज दर बढ़ने पर आकर्षक निवेश बन जाते हैं। जब विदेशी पूंजी अचानक बाहर निकलती है तो उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं तेजी से कमजोर हो जाती हैं। यह विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए नीतिगत विकल्पों को बेहद जटिल बना सकता है। पहले अमेरिका ने भारत को करेंसी हेरफेर करने वाला देश घोषित किया था। वॉशिंगटन का तर्क था कि विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप का उद्देश्य ‘अनुचित व्यापार लाभ’ प्राप्त करना था, जिसका अर्थ है कि एक्सचेंज रेट को जानबूझकर कम रखना ताकि अमेरिका को भारतीय निर्यात सस्ता हो और भारत को अमेरिकी निर्यात महंगा हो। लेकिन 2022 में भारत को उस सूची से हटा दिया गया था।

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