Friday, September 20, 2024
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क्या टीएमसी और आम आदमी पार्टी राहुल गांधी को साइडलाइन करना चाहती है?

खबरों की बातें तो टीएमसी और आम आदमी पार्टी राहुल गांधी को साइडलाइन करना चाहती है!राजनीति में अक्सर जो होता दिखता है, वह वास्तव में होता नहीं। जो कहा जाता है, उसका असल मतलब वह होता ही नहीं। असल में कहना तो कुछ और है, लेकिन जानबूझकर कहते कुछ और हैं। सियासत का तो हुनर ही यही है, शब्दों का खेल। शब्द कुछ, भाव कुछ। निगाह कहीं, निशाना कहीं। कई बार कुछ सिर्फ इसलिए कहा जाता है कि कुछ और छिपाना होता है। मंगलवार को विपक्ष के 28 दलों के गठबंधन I.N.D.I.A. की बहुप्रतीक्षित मीटिंग दिल्ली के अशोका होटल में हुई। मीटिंग के दौरान ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने गठबंधन की तरफ से पीएम उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम उछाल दिया। दलील दी कि दलित चेहरा होने की वजह से चुनाव में लाभ मिलेगा। उनके इस सुझाव से एक बार तो बैठक में सभी चौंक गए। हालांकि, खरगे ने अपनी दावेदारी से पल्ला झाड़ लिया। आखिर ऐसा क्या हुआ जो जब तब कांग्रेस को आंखें दिखाने वाली ममता दीदी और दिल्ली के सीएम केजरीवाल अब उसी कांग्रेस के नेता को चुनाव से पहले पीएम कैंडिडेट देखना चाहते हैं? आखिर इस दांव के मायने क्या हैं? कहीं असल रणनीति पीएम उम्मीदवार के लिए राहुल गांधी की दावेदारी का पत्ता साफ करने की तो नहीं? आइए समझते हैं।  मीटिंग से एक दिन पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से मुलाकात करने वालीं ममता बनर्जी ने बैठक के दौरान संयोजक का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि गठबंधन को संयोजक की जरूरत है क्योंकि ऐसा कोई चाहिए जो सभी 28 दलों के साथ समन्वय बनाए। तालमेल रखे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने I.N.D.I.A. गठबंधन के संयोजक के लिए मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का भी सुझाव दे दिया। इस बात का जिक्र करते हुए कि वह दलित समुदाय से आते हैं, जिसका गठबंधन को फायदा भी होगा। दिलचस्प बात ये है कि विपक्षी गठबंधन की बुनियाद रखने वाले, उसके शिल्पकार नीतीश कुमार को शुरुआत से संयोजक पद का दावेदार माना जाता रहा है।

ममता ने खरगे को संयोजक बनाने की बात छेड़ी तो अरविंद केजरीवाल उससे एक कदम आगे बढ़कर कांग्रेस अध्यक्ष को गठबंधन की तरफ से पीएम कैंडिडेट बनाने का ही सुझाव दे दिया। उन्होंने कहा कि खरगे को न सिर्फ संयोजक बनाया जाए बल्कि उन्हें पीएम पद के लिए विपक्ष की तरफ से चेहरा भी घोषित किया जाए। केजरीवाल ने कहा, ‘मैंने कुछ रिसर्च किया है और मैं पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं कि अगर हम चुनाव में किसी दलित चेहरे के साथ जाएं तो उसका बड़ा फायदा होगा। अबतक कोई दलित प्रधानमंत्री नहीं बन पाया है और इससे हमें काफी मदद मिलेगी, खासकर कर्नाटक में।’ दिल्ली सीएम की इस बात पर ममता ने भी सुर में सुर मिलाए।

संयोजक और पीएम कैंडिडेट के तौर पर अपना नाम बढ़ाए जाने से खरगे असहज हो गए और उन्होंने इससे पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने कहा, ‘सबसे पहली बात तो ये है कि हमें बीजेपी को हराने पर फोकस करना है। पीएम कौन बनेगा इसका फैसला चुनाव बाद लिया जाना चाहिए।’ इस दौरान खरगे ने यह भी जोर देते हुए कहा कि उन्होंने कभी भी किसी भी पद के लिए अपनी जातिगत पृष्ठभूमि का इस्तेमाल नहीं किया। मीटिंग से एक दिन पहले तक ममता बनर्जी यह कहती दिख रही थीं कि गठबंधन की तरफ से पीएम कौन होगा, ये बाद में देखा जाएगा। चुनाव बाद तय किया जाएगा। ऐसे में आखिर ऐसा क्या हुआ कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल कांग्रेस अध्यक्ष को विपक्ष की तरफ से पीएम पद का चेहरा बनाने की पुरजोर वकालत करने लगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि सियासी शतरंज की बिसात पर चली गई इस चाल का निशाना कहीं और है? हो सकता है कि दोनों नेता ये सोच रहे हों कि गांधी परिवार तो पीएम कैंडिडेट के तौर पर राहुल गांधी के ऊपर मल्लिकार्जुन खरगे को तरजीह देने से रहा? इसलिए खरगे का नाम उछालने के पीछे ये रणनीति हो सकती है कि इससे पीएम कैंडिडेट का मामला चुनाव तक टल जाएगा। इससे राहुल गांधी के हाथ से I.N.D.I.A. गठबंधन की तरफ से पीएम पद के लिए चेहरा बनने का मौका फिसल जाएगा।

पीएम पद के लिए दावेदारी की बात करें तो विपक्षी गठबंधन में ‘एक अनार, सौ बीमार’ वाली स्थिति है। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को कहीं न कहीं लगता है कि पीएम पद की दावेदारी पर उसका स्वाभाविक हक बनता है। हर बड़ी पार्टी का नेता खुद को पीएम कैंडिडेट के तौर पर देख रहा है। उन्हें खुद में पीएम मैटेरियल दिखता है। नीतीश की पार्टी जेडीयू उन्हें पीएम कैंडेडेट के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी जब तब अरविंद केजरीवाल को भावी प्रधानमंत्री बताते हुए पोस्टर-बैनर लगाते रहते हैं। ममता बनर्जी की भी नजर पीएम की कुर्सी पर है। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी अखिलेश यादव में भावी प्रधानमंत्री का अक्स देखते हैं। सबकी अपनी महत्वाकांक्षा है। क्षत्रपों की महत्वाकांक्षा उन्हें राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट के तौर पर शायद ही स्वीकार करने देगी। इसीलिए पीएम मोदी के मुकाबले विपक्ष की तरफ से चेहरा कौन होगा, यह तय नहीं हो पा रहा।

ममता और केजरीवाल ने अगर विपक्ष की तरफ से पीएम कैंडिडेट के तौर पर खरगे का नाम इसलिए उछाला है कि इससे राहुल गांधी का पत्ता कट जाएगा और मामला चुनाव बाद तक के लिए टल जाएगा तो ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है। कांग्रेस के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने की है। खरगे गांधी परिवार के बेहद भरोसेमंद हैं। अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के दौरान जिस तरह आखिरी क्षण पर पार्टी हाईकमान को जो आंख दिखाई थी और नाफरमानी की थी, उसके बाद ही खरगे को पार्टी की कमान सौंपी गई। इसी से पता चलता है कि वह गांधी परिवा के कितने करीबी और भरोसेमंद हैं। विदेशी मूल के शोर के बीच सोनिया गांधी ने जिस तरह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया, वैसे ही मौका मिलने पर अगर खरगे को भी बना दें तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी। ऐसे में दीदी और केजरीवाल का पैंतरा फेल हो जाएगा क्योंकि वे तो संभवतः ये सोच रहे होंगे कि खरगे को पीएम कैंडिडेट के तौर पर गांधी परिवार स्वीकार ही नहीं करेगा और चुनाव बाद उनकी पीएम दावेदारी के लिए मैदान खुला रहेगा।

बैठक में एक तरफ ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल संयोजक और पीएम कैंडिडेट के तौर पर खरगे का नाम उछाल रहे थे, दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने सीट शेयरिंग का मुद्दा उठा दिया। उन्होंने कहा कि सीट बंटवारे का मसला जल्द से जल्द फाइनल किया जाना चाहिए। वैसे गठबंधन ने जनवरी मध्य तक सीट शेयरिंग फॉर्म्युले को अंतिम रूप देने का लक्ष्य रखा है।

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