अगर आप फर्जी तरीके से सिम खरीदने हैं तो आपको अब सजा होगी! आज हम आपको इन्हीं नियमों के बारे में जानकारी देने वाले हैं! देश में मोबाइल रखने वाले सभी लोगों के लिए ये खबर बेहद अहम है। सरकार ने 138 साल पुराने टेलीग्राफ अधिनियम को खत्म कर नया कानून ले आई है। लोकसभा में बुधवार को दूरसंचार विधेयक 2023 को मंजूरी मिल गई है। इस विधेयक के अनुसार, फर्जी सिम लेने पर तीन साल की जेल और 50 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। इस बिल में स्पेक्ट्रम संबंधी प्रावधान शामिल किए गए हैं और शिकायत के समाधान को डिजिटल प्रणाली से जोड़ा गया है। इसके पारित होने के साथ ही पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 सहित दो कानून निरस्त हो जाएंगे। इस कानून के पास होने के बाद दूरसंचार के क्षेत्र में कई चीजें बदल जाएंगी। दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि अब कोई भी धोखाधड़ी से सिम प्राप्त नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि दूरसंचार नेटवर्क की सुरक्षा को लेकर भी इसमें कानूनी रूपरेखा प्रदान की गई है। आइए जानते हैं कि नए कानून से क्या-क्या बदल जाएंगे।इस कानून के पास होने के बाद दूरसंचार के क्षेत्र में कई चीजें बदल जाएंगी। दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि अब कोई भी धोखाधड़ी से सिम प्राप्त नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि दूरसंचार नेटवर्क की सुरक्षा को लेकर भी इसमें कानूनी रूपरेखा प्रदान की गई है। आइए जानते हैं कि नए कानून से क्या-क्या बदल जाएंगे।
विधेयक के अनुसार, यदि कोई राष्ट्रीय सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के हित के खिलाफ किसी भी तरह से काम करता है और अवैध रूप से दूरसंचार उपकरणों का उपयोग करता है, तो उसे तीन साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है या दो करोड़ रुपये तक का जुर्माना लग सकता है या दोनों सजा दी जा सकती हैं। विधेयक में कहा गया है कि यदि केंद्र सरकार उचित समझती है तो ऐसे व्यक्ति की दूरसंचार सेवा निलंबित या समाप्त भी कर सकती है। नए बिल में राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में सरकार को ये अधिकार देता है कि वो अस्थायी रूप से दूरसंचार सेवाओं को नियंत्रण में लेने की अनुमति देने और उपग्रह स्पेक्ट्रम के लिए नीलामी नहीं बल्कि प्रशासनिक प्रणाली अपनाने का प्रावधान किया गया है।
विधेयक में कहा गया है कि जो कोई भी महत्वपूर्ण दूरसंचार बुनियादी ढांचे के अलावा दूरसंचार नेटवर्क को नुकसान पहुंचाने पर उसपर 50 लाख रुपये तक जुर्माने लग सकता है। बिल में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत कोई भी अधिकारी किसी भी इमारत, वाहन, जहाज, विमान या स्थान की तलाशी ले सकता है, जहां उसे कोई अनधिकृत दूरसंचार नेटवर्क या दूरसंचार उपकरण या रेडियो उपकरण रखने या छिपाये जाने का भरोसा हो। विधेयक के अनुसार, अधिकृत व्यक्ति इस तरह के उपकरण को अपने कब्जे में ले सकता है।
बता दे कि सरकार ने 138 साल पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम को बदलने से संबंधित टेलिकॉम बिल-2023 को सोमवार को लोकसभा में पेश किया। इसमें प्रावधान है कि राष्ट्रीय सुरक्षा यानी किसी इमरजेंसी पर सरकार टेलिकॉम सेवाओं, या किसी मोबाइल नेटवर्क को अस्थायी तौर पर अपने कंट्रोल में ले सकती है या उसे सस्पेंड कर सकती है। टेलिकॉम कंपनियों को सिम कार्ड जारी करने से पहले अनिवार्य रूप से उपभोक्ताओं की बायोमेट्रिक पहचान करनी होगी। टेलिकॉम बिल-2023 केंद्र सरकार को आपदा या पब्लिक इमरजेंसी के दौरान देश में किसी भी टेली कम्युनिकेशन सर्विस या नेटवर्क को अस्थायी कब्जा करने की अनुमति देता है। ऐसे में सरकार को किसी भी या सभी टेली कम्युनिकेशन सर्विस या नेटवर्क को संभालने, बैन करने या सस्पेंड करने की परमिशन मिली है। बिल में साफ लिखा है कि कि डिजास्टर मैनेजमेंट या इमरजेंसी की घटना पर केंद्र सरकार या राज्य सरकार या इन दोनों की ओर से अधिकृत कोई अधिकारी किसी भी टेली कम्युनिकेशन सर्विस या नेटवर्क पर अस्थायी कब्जा ले सकता है या फिर एक ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था दे सकते हैं जिसके तहत पब्लिक इमरजेंसी के तहत यूज़र तक रिस्पॉन्स और रिकवरी पहुंच सके। बिल के मुताबिक किसी पब्लिक इमरजेंसी में किसी भी मेसेज के ट्रांसमिशन को रोका जा सकता है। सरकार टेली कम्युनिकेशन्स नेटवर्क और सर्विस की साइबर सिक्यॉरिटी को लेकर कदम उठा सकती है। ये कदम ट्रैफिक डेटा के कलेक्शन और विश्लेषण से भी जुड़ा हो सकता है। हालांकि बिल में ये भी लिखा है कि बिल में कहा गया है कि मान्यता प्राप्त मीडियाकर्मियों के मेसेज को तब तक नहीं रोका जाएगा, जब तक कि उनका ट्रांसमिशन नैशनल सिक्योरिटी क्लॉज के तहत बैन न हो।
साइबर तकनीक मामलों के एक्सपर्ट विराग गुप्ता कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में कई बार कहा है कि सार्वजनिक संपत्तियों का आवंटन नीलामी के आधार पर ही होना चाहिए। मगर, लेकिन सैटेलाइट बेस्ड कम्युनिकेशन्स में गैर नीलामी रूट से से लेवल प्लेइंग फील्ड पर असर पड़ेगा। इसमें विदेशी कंपनियों को फायदा हो सकता है। इसके साथ सवाल ये भी है कि एक बार लागू होने पर सैटलाइट कम्युनिकेशन पर सरकार का कंट्रोल कितना रहेगा ये भी देखने वाली बात है। संचार भले ही केंद्र के पास है, लेकिन इससे कानून व्यवस्था भी प्रभावित होती है, तो इसे लेकर राज्यों से परामर्श क्यों नहीं लिया गया, जो संघीय ढांचे हिसाब से सही नहीं है। इसके साथ ट्राई एक्ट 1997 और इलेक्ट्रिसिटी एक्ट को भी छुआ गया है, जो संघीय ढांचे की भावना के विपरीत है।