भारत की जीडीपी में किस प्रधानमंत्री का कितना रहा है हाथ?

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आज हम आपको बताएंगे कि भारत की जीडीपी में किस प्रधानमंत्री का कितना हाथ रहा! जब जुलाई-सितंबर तिमाही 2023-24 का असली जीडीपी आंकड़ा आया तो 7.6% की वृद्धि दर को ‘सुखद आश्चर्य’ के रूप में देखा गया। 2022-23 के लिए बताई गई 7.2% की वृद्धि भी ऐसी ही थी। पिछले 33 वर्षों से एशिया की अर्थव्यवस्थाओं का अनुमान लगाने वाले एक अर्थशास्त्री के रूप में मुझे केवल यही हैरानी होती है कि हर साल भारत की विकास दर के लिए सर्वसम्मति 6.5% के आसपास ही क्यों बनती है। फिर साल खत्म होने के बाद और जब वित्तीय वर्ष के अंत के लगभग तीन साल बाद ‘अंतिम’ अनुमान जारी किया जाता है, तो ‘आश्चर्यजनक’ बढ़त दर्ज की जाती है। भारत अब तेज रफ्तार से विकास के रास्ते पर चल चुका है जिसे अधिकांश अर्थशास्त्री स्वीकार करने में हिचकते हैं। 2003-04 और 2007-08 के बीच, वास्तविक जीडीपी औसतन 7.9% वार्षिक गति से बढ़ी। 2008-09 में वैश्विक मंदी ने मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के दौरान औसत वृद्धि को 6.9% तक नीचे ला दिया। उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान औसत वार्षिक वृद्धि और कम होकर 6.7% हो गई। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल के दौरान भारत की वास्तविक जीडीपी औसतन 7.4% वार्षिक गति से बढ़ी, जो किसी भी प्रधानमंत्री के कार्यकाल की सबसे तेज गति है।

मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों ने बड़े जमीनी बदलाव लाए। इनमें जीएसटी लाकर पूरे देश को सिंगल मार्केट में तब्दील करना, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड आईबीसी के जरिए कर्ज देने वाले संस्थानों के अधिकारों को मजबूत करना, जैम यानी जनधन-आधार-मोबाइल की त्रिशक्ति के जरिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण डीबीटी और तेजी से बुनियादी ढांचे में सुधार आदि शामिल हैं। इस तरह, 2018-19 तक के 15 वर्षों में भारत की औसत वार्षिक वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 7% थी। वहीं, 1998-99 से 2018-19 तक के 21 वर्षों में भारत की वास्तविक जीडीपी विकास दर औसतन 6.7% प्रति वर्ष आंकी गई। जनवरी 2020 में कोविड-19 का प्रकोप ऐसे समय में आया जब वैश्विक विकास पहले से ही धीमा हो रहा था। इस कारण भारत की वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 2019-20 में घटकर 3.9% हो गई। वैश्विक महामारी एक सदी में आने वाली आर्थिक आपदा है और इसे निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक संभावित वृद्धि के किसी भी विश्लेषण से बाहर रखा जाना चाहिए।

अप्रैल 2021 से सितंबर 2023 तक पिछले ढाई सालों में भारत की वास्तविक जीडीपी ग्रोथ औसतन 8.1% वार्षिक रही है। क्या हमें अब यह स्वीकार नहीं करना चाहिए कि यह – या कम से कम पिछले साढ़े नौ साल में से साढ़े सात साल का 7.5% औसत वार्षिक विकास, भारत की नई रफ्तार या संभावित विकास दर है? अतिरिक्त आर्थिक सुधार दुनिया के लीडिंग डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का सफल रोलआउट और ट्रांसपोर्टेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारी सुधार पिछले दशक की तुलना में हाईवे निर्माण की गति दोगुनी, हवाई अड्डों और शहरी रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की संख्या दोगुनी और बंदरगाहों की कार्यकुशलता में भारी वृद्धि निश्चित रूप से उत्पादकता बढ़ा रही है। और वे सुधार, कॉर्पोरेट टैक्स दरों में वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी स्तरों तक कटौती के साथ प्रॉडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव पीएलआई निवेश के लिए प्रोत्साहन को बढ़ावा दे रहे हैं। पिछले छह तिमाहियों में से प्रत्येक में भारत का वास्तविक सकल निश्चित पूंजी निर्माण लगातार साल-दर-साल 8% या उससे अधिक दर से बढ़ा है। जब अधिक पूंजी लगाई जाती है तो स्वाभाविक रूप से उत्पादकता को बढ़ावा मिलता है। इसलिए मोदी के भारत में 7.5% की वृद्धि को न्यू नॉर्मलल के रूप में स्वीकार करने का समय आ गया है।

अतीत में 7% से अधिक वृद्धि के अन्य दौर भी रहे हैं। अप्रैल 1994 और मार्च 1997 के बीच भारत का वास्तविक जीडीपी सालाना 7.3% बढ़ी। फिर एशिया में वित्तीय संकट आया। इस कारण विकास अनिवार्य रूप से धीमा हो गया। बाहरी उठापटक से भारत को बेअसर रखने और ब्रेकनेक क्रेडिट ग्रोथ से कमजोर हुई वित्तीय प्रणाली को मजबूत बनाने को समर्पित थे। वाजपेयी ने 2001-02 से 2003-04 तक तीन सालों में करेंट अकाउंट सरप्लस वस्तुओं और सेवाओं के आयात से ज्यादा निर्यात दिया और अपने छह वर्षों के कार्यकाल के दौरान औसत वार्षिक वास्तविक जीडीपी विकास 5.9% रहा, जो उस समय तक किसी भी भारतीय पीएम के कार्यकाल में दर्ज की गई सबसे तेज गति थी।

हालांकि, मोदी के शासन में किसी भी वर्ष में चालू खाता घाटा जीडीपी के 2.1% से अधिक नहीं हुआ है और इस साल 1% से भी कम होने की संभावना है। नतीजतन, विदेशी कर्ज अब जीडीपी के 18% से कम है। जून 2014 से अक्टूबर 2023 के बीच सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति औसतन 5% सालाना रही है और किसी भी महीने में 7.6% से अधिक नहीं हुई है। मई 2014 में ‘ट्विन बैलेंश शीट क्राइसिस’ से घिरा वित्तीय क्षेत्र साफ-सुथरा और मजबूत हुआ है। इसलिए, मैक्रोइकॉनॉमिक और वित्तीय स्थिरता का मतलब है कि मोदी युग में 7.5% की वृद्धि की ये नई रफ्तार आगे आने वाले और तेज विकास का संकेत है। अब समय है कि आर्थिक भविष्यवक्ता उस हकीकत को स्वीकार करें जो उनके सामने खड़ी है।