आखिर कहां से चुनाव लड़ेंगे मायावती के भतीजे?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि मायावती के भतीजे आखिर कहां से चुनाव लड़ेंगे! लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बहुजन समाज पार्टी नई रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी में उत्तराधिकार पर फैसला हो चुका है और अब मायावती के बाद आकाश आनंद नए सर्वेसर्वा बन चुके हैं। नई रणनीति के तहत फैसला किया गया है कि पार्टी के जो प्रमुख चेहरे हैं, वह सभी लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरें। इसी क्रम में आकाश आनंद के लिए भी सेफ सीट की तलाश की जा रही है। मोटे तौर पर तीन सीटों पर चर्चाएं शुरू हुई हैं। एक अम्बेडकरनगर की सीट है, जहां से मायावती जीतती रही हैं। वहीं इसके अलावा सहारनपुर और बिजनौर लोकसभा सीट को लेकर भी चर्चाएं हैं। आकाश आनंद के लिए तीन सीटों पर सबसे ज्यादा चर्चाएं हैं। पहली बिजनौर सीट है। यहां दलित, मुस्लिम वोटबैंक निर्णायक भूमिका निभाता र हा है ऐसे में बसपा के लिए ये गठजोड़ पार्टी की राहें आसान कर सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन हुआ था और इस सीट पर बसपा के मलूक नागर ने जीत दर्ज की थी। ये बसपा ही नहीं यूपी के सबसे अमीर सांसद माने जाते हैं। हालांकि मलूक नागर ने 2014 में भी इस सीट से चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली थी। इस सीट की खास बात ये है कि 34 साल पहले 1989 में मायावती ने यहीं से लोकसभा चुनाव में पहली जीत का स्वाद चखा था। उत्तराधिकारी के तौर पर आकाश आनंद के लिए ये सीट इसी लिए ज्यादा मुफीद मानी जा रही है।

बिजनौर लोकसभा सीट पर मुस्लिम वोटर ही यहां के प्रत्याशी का भविष्य तय करते आए है। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता 45 प्रतिशत हैं। एससी वोटर करीब 22 फीसदी हैं। इस सीट पर पांच बार कांग्रेस तो तीन बार भाजपा ने जीत दर्ज की। इसी तरह बसपा के साथ रालोद भी यहां से दो बार जीती। सपा यहां से एक बार जीत पाई है। वैसे बसपा के लिए इस बार राहें इतनी आसान भी नहीं रहने वाली क्योंकि समाजवादी पार्टी भी यहां अपनी रणनीति पर काम कर रही है। 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा ने बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली पांच में से चार विधानसभा सीटें अपने नाम की थीं।

दूसरी सीट है सहारनपुर। यहां से हाल ही में बसपा ने अपने सिटिंग सांसद हाजी फजलुर्रमान का टिकट काट दिया है। पार्टी ने यहां से 2017 विधानसभा चुनाव में देवबंद से बसपा प्रत्याशी माजिद अली को लोकसभा प्रभारी घोषित किया गया है। खास बात ये है कि इस सीट पर पहले दावेदारी इमरान मसूद की मानी जा रही थी लेकिन बसपा उन्हें निष्कासित कर चुकी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार फजलुर्रहमान पर जो कार्रवाई हुई, उसमें उनकी सपा प्रमुख अखिलेश यादव से बढ़ती नजदीकी काे कारण माना गया। यहां से आकाश आनंद को उतारकर पार्टी अपनी रणनीति पर आगे बढ़ सकती है। लेकिन बसपा के सामने समाजवादी पार्टी की भी तगड़ी चुनौती रहेगी।

मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर 6 लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। इनके अलावा 3 लाख एससी, डेढ़ लाख गुर्जर और साढ़े 3 लाख के करीब सवर्ण जातियां हैं। पिछले कुछ चुनावों पर गौर करें तो यूपी में समाजवादी पार्टी को कई जगह एकमुश्त मुस्लिम वोट मिलते दिख रहे हैं। ये सीट बसपा ने 2019 में जरूर जीती थी लेकिन उस समय सपा और बसपा का गठबंधन था। दूसरी तरफ भाजपा भी इस सीट पर कमजोर नहीं मानी जाती। फजलुर्रहमान करीब 20 हजार वोट से ही भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा को हरा पाए थे। तीसरी सीट अंबेडकरनगर है। पहले ये अकबरपुर नाम से जानी जाती थी। मायावती ने तीन बार इस सीट से चुनाव जीता। उन्होंने 1998, 1999 और 2004 में अकबरपुर से जीत दर्ज की और दिल्ली पहुंची। बाद में 2009 में भी यहां से बसपा ही जीती। लेकिन 2014 के बाद से बसपा यहां लगातार हार रही है। पूर्वांचल की ये सीट मायावती के दिल के करीब मानी जाती है। चुनावी राजनीति से दूरी बना चुकीं मायावती ने अंबेडकरनगर में एक रैली के दौरान कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो वह अंबेडकरनगर से ही चुनाव लड़ेंगीं। दिल्ली का रास्ता तो यहीं से जाता है। बता दें 1995 में मायावती ने ही फैजाबाद से अलग कर अंबेडकर नगर जिले की स्थापना की थी। अंबेडकरनगर में 25 फीसदी आबादी अनुसूचित की मानी जाती है। यहां 17 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है।

यहां पांडे परिवार का भी अपना रसूख है। 2019 के लोकसभा चुनाव में रितेश पांडे बसपा से जीते थे। उनके पिता राकेश पांडे भी यहां से एक बार सांसद रह चुके हैं। लेकिन 2022 में वह बसपा छोड़ सपा में चले गए और इस समय राकेश पांडे जलालपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं। पिता ने पार्टी छोड़ी तो खामियाजा बेटे को भुगतना पड़ा था और रितेश पांडे को बसपा के संसदीय दल नेता के पद से हाथा धोना पड़ा। उधर सपा भी यहां कमजोर नहीं है। कभी बसपा के कद्दावर नेता रहे लालजी वर्मा और राम अचल राजभर आज अखिलेश यादव के करीबी नेताओं में शुमार हैं। बेंगलुरू में इंडिया गठबंधन की बैठक में भी दोनों नेता दिखाई दिए थे।

एक तरफ तो आकाश आनंद के चुनाव लड़ने की बात सामने आ रही है, वहीं दूसरी तरफ बसपा के सामने अपने ही सांसदों को बचाए रखने की चुनौती है। मायावती ने साफ ऐलान कर दिया है कि बसपा किसी गठबंधन में शामिल नहीं है। पिछले कुछ चुनावों को देखें तो उत्तर प्रदेश में बसपा की हालत काफी खराब है। 2019 लोकसभा चुनावों में भले ही उसने 10 सीटें जीती थीं लेकिन इस में भी सपा से गठजोड़ काे ज्यादा श्रेय मिला। क्योंकि 2014 में बसपा अकेले लड़ी और एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। इसी तरह 2022 के विधानसभा चुनावों में भी अकेले लड़ने वाली बसपा के हाथ सिर्फ एक सीट ही लगी थी।

जाहिर है पार्टी की स्थिति को लेकर संशय के बादल गहराए हैं और कई नेता विरोधी पार्टियों के संपर्क में हैं। इनमें अमरोहा के सांसद दानिश अली भी कांग्रेस के ज्यादा करीब दिख रहे हैं। उन्हें इसी महीने 9 दिसंबर को मायावती निलंबित भी कर चुकी हैं। फजलुर्रहमान का टिकट काटा जा चुका है। अगर आकाश आनंद के लिए बिजनौर सीट का चयन होता है तो मलूक नागर को कहां एडजस्ट किया जाएगा? ये भी बड़ा सवाल है। इसी तरह अंबेडकरनगर के सांसद रितेश पांडे अपने पिता के सपा में चले जाने के कारण दुविधा में हैं। सवाल ये है कि क्या पार्टी उन्हें दोबारा टिकट देगी? इसी तरह लालगंज से सांसद संगीता आजाद और जाैनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव पर भी संशय के बादल गहराए हुए हैं।