Wednesday, February 12, 2025
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क्या राजीव गांधी ने खोली थी राम मंदिर की राह?

एक समय ऐसा था जब राजीव गांधी ने ही राम मंदिर की राह खोली थी! अयोध्या में बने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की घड़ी ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है, सियासी दलों में इसे लेकर घमासान मचा हुआ है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए निमंत्रण पत्र बांटे जा रहे हैं। उद्यमी, व्यवसायी, नेता, समाजसेवी, राजनीति जैसे समाज के विभिन्न तबकों के लोगों को न्योता भेजा जा रहा है। राजनीति तो पानी की तरह है, जहां स्कोप मिला, वहीं पसर गई। इसलिए समाज का कोई अंग, आचार-व्यवहार और यहां तक कि रिश्ते भी राजनीति से अब अछूते नहीं बचे हैं। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होनी है, तो भाजपा विरोधी सभी दल इस चिंता से दुबले हुए जा रहे हैं कि मंदिर निर्माण का श्रेय भाजपा लेना चाहती है। इसलिए प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण मिलने पर कुछ दलों ने जाने से साफ मना कर दिया, तो कुछ ऊहापोह की स्थिति में हैं। सबसे ज्यादा ऊहापोह की स्थिति कांग्रेस में है। उस कांग्रेस में, जिसके नेता राजीव गांधी ने राम मंदिर के शिलान्यास की पहल की। बात 1988 की है। भारी बहुमत से बनी राजीव गांधी की सरकार पर बोफोर्स तोप घोटाले में रिश्वतखोरी के आरोप पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने लगाए थे। तब वीपी सिंह राजीव गांधी की सरकार में वित्त मंत्री थे। कांग्रेस की इससे भारी बदनामी हुई और इस बात का खतरा खड़ा हो गया कि अगला चुनाव कांग्रेस जीत भी पाएगी या नहीं। राजीव के करीबियों ने उन्हें सुझाव दिया कि राम मंदिर का शिलान्यास करा देना चाहिए। इससे भाजपा के उभार को रोका जा सकता है। तब संसद में भाजपा दो सदस्यों वाली पार्टी थी।

यह दस्तावेजी सच है कि राजीव गांधी की सरकार ने ही शिलान्यास की इजात दी, लेकिन इसका फायदा कांग्रेस नहीं उठा सकी। चुनाव 1989 के नवंबर में होने थे। इस बीच विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) और साधु-संतों ने 9 नवंबर 1989 की तारीख शिलान्यास के लिए तय कर दी। बहरहाल, शिलान्यास और चुनाव प्रचार अभियान में कांग्रेस ने मंदिर के शिलान्यास को मुद्दा नहीं बनाया, लेकिन भाजपा ने इसे अपनी कामायाबी मानी। नवंबर में ही मंदिर के बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आना था। विहिप की कोशिश थी कि फैसला आने से पहले ही शिलान्यस कर देना चाहिए। यही वजह थी कि शिलान्यास की तारीख 9 नवंबर तय हुई। विहिप ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच के आदेश के पहले ही स्थितियों को भांपते हुए तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने विश्व हिन्दू परिषद को शिलान्यास की इजाजत दे दी। केंद्र सरकार की सहमति से कोर्ट का फैसला आने के पहले ही विवादित स्थल के बाहर शिलान्यास हो गया। सात घन फुट का गड्ढा खोद कर आधारशिला रख दी गई। आधार शिला के पत्थर बिछाने वालों में अनुसूचित जाति से आने वाले बिहार के कामेश्वर चौपाल भी शामिल थे। यह कहा जाए कि उन्होंने मंदिर की नींव की पहली ईंट रखी तो अनुचित नहीं होगा।

उसके बाद भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सितंबर से अक्टूबर 1990 तक राम रथयात्रा निकाली। रथयात्रा के बहाने भाजपा ने हिन्दुत्व को हवा दी। बिहार में तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी की रथयात्रा रोक दी और उन्हें गिरफ्तार करा दिया। भाजपा को इससे भी हिन्दू समाज की सहानुभूति मिली। भाजपा अगर लोकसभा में सिर्फ दो सदस्यों से बढ़ कर आज 300 सीटों के पार गई है तो इसमें राम और उनकी जन्मस्थली अयोध्या की बड़ी भूमिका है।

नरेंद्र मोदी की सरकार ने जिस तन्मयता से राम मंदिर का निर्माण कराया और 2024 के लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी की है, उससे विरोधी दलों के कान खड़े हो गए हैं। विरोधी दल समझ नहीं पा रहे कि वे मुस्लिम समुदाय के एकमुश्त तकरीबन 20 प्रतिशत वोटों की तिलांजलि दे दें या भाजपा की तरह इस दलील के साथ अवसर का लाभ उठाएं कि राजीव गांधी की सरकार ने ही मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी थी। प्रसंगवश यह उल्लेख भी जरूरी है कि राजीव गांधी ने वृंदावन जाकर इस बाबत देवरहा बाबा से सलाह मांगी थी। बाबा के कहने पर ही उन्होंने आधारशिला रखने की छूट दी थी।

प्राण प्रतिष्ठा समारोह का न्योता मिलने के बाद सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी ने जाने से साफ मना कर दिया है। नीतीश कुमार और लालू यादव की ओर से भी अभी तक कोई संकेत नहीं मिला है। बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को छोड़ कर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने चुप्पी साध ली है। भाजपा विरोधी अन्य दल भी साफ-साफ कुछ नहीं बोल रहे। कांग्रेस यहां भी राजीव गांधी की तरह चूकती नजर आ रही है। शिलान्यास की छूट दी राजीव गांधी की सरकार ने, लेकिन उसे वह सियासी लाभ का मुद्दा नहीं बना पाए। कांग्रेस की दुर्गति का दौर तभी से शुरू हुआ और अभी तक जारी है। कांग्रेस चाहती तो जनता को यह बता कर अपना झंडा बुलंद कर सकती थी कि प्राण प्रतिष्ठा भले नरेंद्र मोदी की सरकार की देखरेख में हो रही है, पर आधारशिला रखने की छूट उसके ही नेता राजीव गांधी ने दी थी।

कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि वह गलतियों से सीखती नहीं। भाजपा की नकल करने में उसे संकोच नहीं होता। राहुल गांधी मंदिरों में जाते हैं। खुद को ब्राह्मण साबित करने की पूरी कोशिश करते हैं। अपने को ब्राह्मण कुल का साबित करने के लिए जनेऊधारी बन जाते हैं। यानी भाजपा के हिन्दुत्व की नकल करने में वे संकोच नहीं करते। ममता बनर्जी भी हिन्दुत्व के प्रति आकर्षण जताने के लिए चंडी पाठ करने लगती हैं। पर, मुद्दों को भुनाने की कला में विरोधी दल भाजपा की तरह कामयाब नहीं होते। अयोध्या में हो रहे 22 जनवरी के आयोजन में अगर विरोधी दल सहभागी नहीं बनते तो इसका संकेत साफ है कि वे भाजपा की राह आसान कर रहे हैं। भाजपा उन्हें हिन्दू विरोधी करार देने की पूरी कोशिश करेगी।

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