Monday, December 23, 2024
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क्या श्रीलंका के रास्ते पर है मालदीव? होगा कंगाल!

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या मालदीव अब श्रीलंका के रास्ते पर है और क्या वह कंगाल हो सकता है! मालदीव इन दिनों काफी चर्चा में है। पिछले दिनों भारत को आंखे दिखा रहा मालदीव खुद चीन के कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। भारत के खिलाफ बयानबाजी करने वाले मालदीव के मंत्री शायद इस बात को भूल चुके हैं कि उनकी हालत भी श्रीलंका की तरह हो सकती है। मालदीव भी श्रीलंका की तरह चीन के कर्ज में डूबा हुआ है। विश्व बैंक ने भी इसे लेकर चिंता जताई है। मालदीव के कुल कर्ज में अकेले चीन की मौजूदा हिस्सेदारी 37 फीसदी है। माना जा रहा है कि चीन FTA कर्ज की हिस्सेदारी और बढ़ा सकता है, जिसके बाद मालदीव श्रीलंका जैसे संकट में फंस जाएगा। जानकारी के अनुसार, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू चीन यात्रा पर हैं। उन्होंने बीजिंग के साथ मुक्त व्यापार समझौते को फिर से शुरू करने का प्रस्ताव दिया है, लेकिन यह कदम मालदीव को कर्ज के जाल में धकेल सकता है। मालदीव पहले से ही बड़े कर्ज में डूबा हुआ है इसके बाद एक और वह भारत से विवाद कर रहा है, तो दूसरी और कर्ज का बोझ बढ़ाने में लगा हुआ है। कोरोना काल में भारत ने मालदीव की खूब मदद की थी, इसके बाद भी महामारी ने वहां की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। विश्व बैंक ने अपनी अक्टूबर की रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि अगर मालदीव चीन के और करीब जाता है, तो यह देश के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है क्योंकि उस पर पहले से ही बीजिंग का 1.37 बिलियन डॉलर बकाया है। सऊदी अरब और भारत से भी आगे चीन, मालदीव का सबसे बड़ा द्विपक्षीय कर्जदाता है।

मालदीव के पुरानी इबू सोलिह सरकार और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन एफटीए को खत्म करने का विचार कर रहे थे। सोलिह सरकार का मानना था कि समझौते पर पहले हस्ताक्षर नहीं किए जाने चाहिए थे। उन्होंने कहा था कि यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक हो सकता है। इस सौदे में चीन से बिना किसी टैक्स के सामान आयात करने की अनुमति दी गई। मालदीव के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा मछली पालन है, लेकिन पिछली मालदीव सरकार ने आरोप लगाया कि मछुआरों को एफटीए से कोई फायदा नहीं हो रहा है।

इस बीच, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बुधवार को बीजिंग में अपने मालदीव समकक्ष के साथ बातचीत की, जिसके बाद दोनों देशों ने पर्यटन सहयोग सहित 20 प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए और अपने द्विपक्षीय संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक और सहकारी साझेदारी तक बढ़ाया। उन्होंने आपदा प्रबंधन, ब्लू इकॉनमी, डिजिटल अर्थव्यवस्था में निवेश को मजबूत करने और बेल्ट एंड रोड पहल पर समझौतों पर हस्ताक्षर किए। चीन भी मालदीव की आर्थिक मदद करेगा, हालांकि अभी तक राशि का खुलासा नहीं किया गया है। मंगलवार को फुजियान प्रांत में मालदीव बिजनेस फोरम को अपने संबोधन में, मुइजू ने चीन से अपने देश में अधिक पर्यटकों को भेजने के प्रयासों को तेज करने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘कोविड से पहले चीन पर्यटन के लिए हमारा नंबर एक बाजार था, मेरी अपील है कि हम चीन को यह स्थिति फिर से हासिल करने के लिए प्रयास तेज करें।’

बता दें कि भारत और मालदीव के रिश्तों में खटास के बीच राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू चीन की राजकीय यात्रा के लिए रवाना हुए। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आमंत्रण पर मुइज्जू की यह यात्रा हो रही है। मुइज्जू की यह यात्रा बेहद खास है। क्योंकि उन्होंने भारत को छोड़कर चीन को चुना है। दरअसल 2008 में बहुदलीय लोकतंत्र की शुरुआत के बाद यह पहली बार है जब मालदीव का कोई राष्ट्रपति पद संभालने के बाद पहली यात्रा भारत में नहीं कर रहा। मुइज्जू चीन समर्थक और भारत विरोधी नेता माने जाते हैं। लेकिन इस यात्रा से उन्हें क्या मिलेगा? एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भारत के साथ चल रहे तनाव को चीन भुनाने की कोशिश करेगा। मुइज्जू के मंत्रियों की ओर से भारत विरोधी बयान दिए गए हैं, जिसके बाद मालदीव जाने वाले भारतीय टूरिस्ट की संख्या में बड़ी गिरावट हो सकती है। भारतीयों की कम होती संख्या को चीन अपने नागरिकों से भरने की डील भी कर सकता है। यह संभव भी है क्योंकि 2023 में अचानक चीनी टूरिस्ट की संख्या मालदीव में बढ़ी है। 2022 में मालदीव में संख्या के लिहाज से चीन 27वें नंबर पर था, जो 2023 में अचानक तीसरे नंबर पर पहुंच गया है।

इसके अलावा चीन भारी-भरकम निवेश भी मालदीव में कर सकता है। हालांकि जैसा चीन बाकी देशों के साथ करता आया है, वह किसी भी तरह का कर्ज या निवेश अपनी शर्तों पर करेगा। एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि जिस तरह श्रीलंका और पाकिस्तान चीन के कर्ज के नीचे दब गए उसी तरह मालदीव के साथ भी होगा। इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि भारत विरोधी मुइज्जू के कार्यकाल के अंत में मालदीव कर्ज में डूब जाए। हालांकि इस बात की भी चिंता जताई जा रही है कि अगर मालदीव कर्ज में डूबता है तो उसे बचाने के लिए भारत को ही आगे आना पड़ेगा।

मुइज्जू पहले भी कहते रहे हैं कि उनकी सरकार आने के बाद चीन से बेहतर संबंध होंगे। उन्होंने अपना पूरा चुनाव भारत विरोध के साथ लड़ा है। मुइज्जू की इस यात्रा के दौरान चीन और मालदीव के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। मुइज्जू की यात्रा से पहली चीन के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘चीन और मालदीव की पुरानी दोस्ती है। राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से पिछले 52 वर्षों में दोनों देशों ने एक-दूसरे साथ सम्मान का व्यवहार किया है और एक दूसरे का समर्थन किया है।’

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