हाल ही में नीतीश कुमार विपक्ष के INDIA गठबंधन के संयोजक नहीं बन पाए! बिहार के सीएम और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने I.N.D.I.A गठबंधन का संयोजक बनने से इनकार कर दिया है। नीतीश ने शनिवार को विपक्षी गठबंधन की वर्चुअल बैठक में साफ कर दिया कि उनकी किसी पद में कोई दिलचस्पी नहीं है। जदयू की ओर से बैठक में नीतीश के अलावा ललन सिंह और प्रदेश के मंत्री संजय झा शामिल हुए थे। कांग्रेस ने नीतीश कुमार को संयोजक बनाने का प्रस्ताव रखा था। इस पर बिहार के सीएम ने कह दिया कि कांग्रेस को ही ब्लॉक का चेयरमैन बनना चाहिए। फिर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्षी गठबंधन का चीफ बनाने पर मुहर लग गई।इसी तरह की स्थिति कई दूसरे राज्यों में भी है। कहीं नीतीश को यह एहसास तो नहीं होने लगा है कि इन्हें साथ लाने में ही बहुत वक्त निकल जाएगा। साथ आने के बाद भी बीजेपी को इन दलों से कितनी टक्कर मिल पाएगी, यह भी कह पाना मुश्किल है। नीतीश के फैसले के बाद अब हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल है। आखिर नीतीश कुमार ने संयोजक बनने से क्यों मना कर दिया? आइए, यहां समझने की कोशिश करते हैं कि यह फैसला लेते हुए उनके मन में क्या बातें हो सकती हैं। नीतीश कुमार राजनीति के पुराने घाघ हैं। अपने कदमों से वह बड़े-बड़ों को कन्फ्यूज कर देते हैं। वह कब क्या कदम उठा जाएं कोई नहीं जानता। नीतीश पाला बदलने के लिए भी जाने जाते हैं। नीतीश ने संयोजक का पद ठुकराकर लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में जाने का विकल्प खुला रखा है। अगर वह ऐसा नहीं करते तो यह ऑप्शन उनके लिए बंद हो जाता। फिर उन पर पूरे गठबंधन को साथ लेकर चलने की मजबूरी बन जाती। अब गठबंधन से जुड़े रहने की मजबूरी से वह मुक्त हो गए हैं।
शुरू से ही विपक्षी गठबंधन के भविष्य को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इस गठबंधन में ऐसे तमाम दल हैं जो आपस में कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। वैचारिक रूप से भी ये हमेशा अलग रहे हैं। बंगाल का ही उदाहरण लेते हैं। राज्य में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों में हमेशा ठनी रही है। इनका आपस में कोई गठजोड़ होना ही टेढ़ी खीर है। इसी तरह की स्थिति कई दूसरे राज्यों में भी है। कहीं नीतीश को यह एहसास तो नहीं होने लगा है कि इन्हें साथ लाने में ही बहुत वक्त निकल जाएगा। साथ आने के बाद भी बीजेपी को इन दलों से कितनी टक्कर मिल पाएगी, यह भी कह पाना मुश्किल है।
बेशक, I.N.D.I.A ब्लॉक की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए किसी चेहरे का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन, नीतीश कुमार का नाम हमेशा इससे जोड़कर देखा जाता है। उनकी पार्टी के कई नेता बार-बार उन्हें पीएम के चेहरे के तौर पर पेश करते रहे हैं। कन्वीनर के पद को ठुकराकर वह कहीं यह संकेत तो नहीं दे रहे कि अब प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश करने से कम कुछ भी काम नहीं करने वाला है। संयोजक पद को ठुकराने के फैसले को तमाम नीतीश कुमार की ओर से अपने अपमान के जवाब के तौर पर भी देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि नीतीश I.N.D.I.A गठबंधन के सहयोगियों के व्यवहार से दुखी थे। इससे पहले हुई बैठक में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने विपक्ष की ओर से पीएम पद के लिए मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव किया था।अपने कदमों से वह बड़े-बड़ों को कन्फ्यूज कर देते हैं। वह कब क्या कदम उठा जाएं कोई नहीं जानता। नीतीश पाला बदलने के लिए भी जाने जाते हैं। नीतीश ने संयोजक का पद ठुकराकर लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए में जाने का विकल्प खुला रखा है। अगर वह ऐसा नहीं करते तो यह ऑप्शन उनके लिए बंद हो जाता। नीतीश के फैसले के बाद अब हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल है। आखिर नीतीश कुमार ने संयोजक बनने से क्यों मना कर दिया? आइए, यहां समझने की कोशिश करते हैं कि यह फैसला लेते हुए उनके मन में क्या बातें हो सकती हैं। नीतीश कुमार राजनीति के पुराने घाघ हैं। अपने कदमों से वह बड़े-बड़ों को कन्फ्यूज कर देते हैं। वह कब क्या कदम उठा जाएं कोई नहीं जानता।फिर उन पर पूरे गठबंधन को साथ लेकर चलने की मजबूरी बन जाती। अब गठबंधन से जुड़े रहने की मजबूरी से वह मुक्त हो गए हैं। यह और बात है कि इसे लेकर कोई सहमति नहीं बनी थी। हालांकि, इसे लेकर जदयू के नेताओं की ओर से आक्रामक प्रतिक्रियाएं आई थीं।