क्या गरीबी से निजात पा रहा है भारत?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारत गरीबी से निजात पा रहा है या नहीं! बीते नौ वर्षों में देश के लगभग 24.8 करोड़ लोगों का गरीबी से पीछा छूट गया। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुआयामी गरीबी से मुक्ति पाने के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार ने सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नीति आयोग के दो शीर्ष अधिकारियों ने सोमवार को नई रिसर्च रिपोर्ट जार की। रिसर्च में स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, मातृ स्वास्थ्य और बैंक खातों सहित 12 मापदंडों के आधार पर बहुआयामी गरीबी का आकलन किया गया है। इन कसौटियों के आधार पर तय गरीबों की आबादी 2022-23 में 11.3% तक कम होने का अनुमान है, जो 2019-21 में 15% और 2013-14 में 29.2% थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी से लड़ाई में इस बड़ी जीत की सराहना की। उन्होंने ट्वीट किया, ‘बहुत उत्साहजनक, समावेशी विकास को आगे बढ़ाने और हमारी अर्थव्यवस्था में परिवर्तनकारी बदलावों पर ध्यान देने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हम चौतरफा विकास की दिशा में काम करते रहेंगे और हर भारतीय के लिए समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करेंगे।’

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद और वरिष्ठ सलाहकार योगेश सुरी की तरफ से तैयार पेपर में दावा किया गया है कि अगले वित्त वर्ष 2024-25 तक भारत में गरीब आबादी का प्रतिशत सिंगल डिजिट में आ जाएगा। पेपर लिखने वालों का यह भी दावा है कि भारत 2030 तक अपने सभी आयामों में गरीबी को आधा करने के लक्ष्य से काफी आगे है। पेपर में कहा गया है, ‘एमपीआई बहुआयामी गरीबी सूचकांक के सभी 12 संकेतकों में इस अवधि के दौरान उल्लेखनीय सुधार हुआ है।’

हालांकि इसने कई मापदंडों के अनुमान नहीं बताए, लेकिन कहा गया कि पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत और प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान जैसी पहलों ने मदद की है। इसमें कहा गया, ‘2013-14 से 2022-23 की अवधि के दौरान बहुआयामी गरीबी में गिरावट की दर में तेजी आई है। यह संभव हो पाया है क्योंकि खास तरह के वंचित पहलुओं में सुधार लाने के लिए सरकार ने कई पहल किए हैं और तरह-तरह की योजनाएं लागू की हैं।’ रमेश चंद ने पत्रकारों को बताया कि वित्त वर्ष 2023 तक के नौ वर्षों में कृषि क्षेत्र में वृद्धि किसी अन्य अवधि की तुलना में तेज हुई है।हालांकि, इसने चेतावनी दी कि गरीबी में कमी की गति तब तेज होती है जब स्तर अधिक होते हैं और आगे की गिरावट बाहरी कारकों से भी जुड़ी हो सकती है। इसके अलावा, पेपर में जताए गए अनुमान राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण पर आधारित हैं, जिसके लिए डेटा महामारी से पहले एकत्र किया गया था और ताजा अनुमान महामारी के प्रभाव का सटीक आकलन नहीं कर सकते।

कुल संख्या के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि उत्तर प्रदेश ने 5.9 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला। उसके बाद बिहार का नंबर है जहां के 3.8 करोड़ लोग गरीबी के अभिशाप से मुक्त हुए। पेपर में कहा गया है, ‘यह भी देखा गया है कि जिन राज्यों में गरीबी की घटना अधिक है, उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में गरीबी के अनुपात में अधिक कमी देखी है। इससे यह पता चलता है कि विभिन्न राज्यों में बहुआयामी गरीबी असमानता पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है।’ आपको बता दें कि भारत में आंकड़ों पर बहस चलती रहती है। पिछले साल आई वर्ल्ड बैंक की एक स्टडी के मुताबिक 2011 में 22.5 फीसदी गरीबी थी जो 2019 में घटकर 10.2 फीसदी रह गई। यह आंकड़ा आईएमएफ के डेटा से मेल नहीं खाता है। अमेरिका का जाने माने ब्लॉगर-इकनॉमिस्ट Noah Smith ने World Poverty Clock और The Washington Post के एक चार्ट का हवाला देते हुए एक चार्ट ट्वीट किया है। इसके मुताबिक भारत में छह साल में गरीबी में भारी गिरावट आई है। 2016 में गरीबों की आबादी 12.4 करोड़ थी जो 2022 में 1.5 करोड़ रह गई है। मैं इसका विरोध करने की तैयारी कर रहा था कि तभी स्मिथ ने खुद ही कुछ और चार्ट ट्वीट कर दिए। इनमें अलग-अलग मान्यताओं के हिसाब से गरीबी के अलग-अलग अनुमान लगाए गए थे।

एक लंबे चार्ट में साल 2017 की 2.15 डॉलर की गरीबी रेखा को आधार बनाया गया था। इसके मुताबिक 1993 में देश में गरीबों की संख्या 47.6 फीसदी थी जो 2019 में घटकर 10 फीसदी रह गई है। इस दौरान गरीबी के अनुमान में लगातार गिरावट आई है फिर चाहे सरकार किसी भी पार्टी की रही हो। इसके लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों श्रेय ले सकती हैं। मनमोहन सिंह जब 2004 प्रधानमंत्री बने थे तो देश में गरीबी 39.9 परसेंट थी और 2014 में यह 18.7 फीसदी रह गई। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी गरीबी में गिरावट जारी रही। 2019 में यह 10 फीसदी रह गई।