एक समय ऐसा था जब रामलाल की मूर्ति को लेकर कांग्रेस में विवाद हुआ था आज वह किस्सा आप जानने वाले हैं! 23 दिसंबर, 1949 की रात को विवादित ढांचे में रामलला की मूर्ति रखे जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यूपी के सीएम गोविंद बल्लभ पंत से इसे हटाने का आदेश दिया। हालांकि विभाजन और दंगों के बाद से तुरंत निकले देश में यह आसान नहीं था। प्रधानमंत्री के आदेश का विरोध न केवल तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर और सिटी मजिस्ट्रेट गुरु दत्त सिंह की ओर से हुआ बल्कि फैजाबाद में कांग्रेस के भीतर से भी हुआ। फैजाबाद के स्थानीय कांग्रेस विधायक बाबा राघव दास, उन लोगों में से थे जिन्होंने मूर्ति हटाने के किसी भी कदम का मुखर विरोध किया, यहां तक कि ऐसा होने पर इस्तीफा देने की धमकी भी दी। बाबा राघव दास ने आचार्य नरेंद्र देव जो फैजाबाद के ही रहने वाले थे और इस क्षेत्र में उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। उनको चुनाव में हराया था। द डिमोलिशन एंड द वर्डिक्ट में पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने लिखा है कि 1950 में जब केंद्र, नेहरू के निर्देश पर, राज्य सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव डाल रहा था तब राघव दास ने धमकी दी कि अगर मूर्ति को हटाया गया तो वह विधानसभा और पार्टी से इस्तीफा दे देंगे। राघव दास वही विधायक थे जिन्होंने उपचुनाव में आचार्य नरेंद्र देव को हराया था। सोशलिस्ट धड़े से 13 विधायकों ने यूपी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उपचुनाव का ऐलान हुआ। उपचुनाव में फैजाबाद सीट पर सबकी नजर थी। यहां से समाजवादी विचारक आचार्य नरेंद्र देव मैदान में थे, जो उन इस्तीफा देने वाले सोशलिस्ट विधायकों में शामिल थे।
1948 के उपचुनाव में मौजूदा विधायक और समाजवादी दिग्गज आचार्य नरेंद्र देव को लगभग 1,300 वोटों के अंतर से हराकर राघव दास ने फैजाबाद सीट जीती थी। नरेंद्र देव के इस्तीफे के बाद राघव दास को खुद यूपी के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने उपचुनाव के लिए चुना था। मुखोपाध्याय की पुस्तक में कहा गया है कि नरेंद्र देव की हार सुनिश्चित करने के लिए, पंत ने खुद अयोध्या में राघव दास के लिए प्रचार किया। चुनाव प्रचार के दौरान कहा गया कि नरेंद्र देव एक नास्तिक हैं जो भगवान राम में विश्वास नहीं करते।
राघव दास ने कसम खाई कि वह वह राम जन्मभूमि को विधर्मियों से मुक्त कराएंगे। उपचुनाव के दौरान अयोध्या में जो पोस्टर लगे उसमें आचार्य नरेंद्र देव को रावण की तरह दिखाया गया और कांग्रेस प्रत्याशी बाबा राघव दास को राम की तरह पेश किया गया। महाराष्ट्र में जन्मे लेकिन राघव दास की कर्मभूमि पूर्वी यूपी थी। देवरिया के बरहज कस्बे में उनका आश्रम है। वैसे बाबा राघव दास की पहचान किसी धार्मिक संत की नहीं बल्कि एक गांधीवादी और समाजसेवक की थी। उन्हें पूर्वांचल का गांधी और संत विनोबा के भूदान आंदोलन का ‘हनुमान’ कहा जाता है। नवनिर्वाचित विधायक शुरू से ही राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ गए। 20 अक्टूबर, 1949 को अयोध्या में रामचरितमानस का नौ दिवसीय अखंड पाठ आयोजित किया गया। भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद बलबीर पुंज द्वारा लिखी गई एक नई किताब, ट्रिस्ट विद अयोध्या में कहा गया है कि लोग उन्हें पूर्वांचल का गांधी भी कहते थे। दरअसल राघव दास में आध्यात्मिक प्रतिभा भी थी। वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया के बरहज के प्रसिद्ध संत योगीराज अनंत महाप्रभु के शिष्य और उत्तराधिकारी थे। राघव दास एक समाज सुधारक भी थे। महाराष्ट्र में पुणे के एक ब्राह्मण परिवार में राघवेंद्र के रूप में जन्मे, राघव दास ने 17 साल की उम्र में घर छोड़ दिया, सत्य की तलाश में पूर्वी उत्तर प्रदेश में घूमते रहे और मौनी बाबा नामक एक तपस्वी से हिंदी सीखी।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुछ शैक्षणिक संस्थान राघव दास के नाम पर हैं। इनमें बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर, बाबा राघव दास इंटर कॉलेज, देवरिया और बाबा राघव दास डिग्री कॉलेज, बरहज शामिल हैं। राघव दास का 1958 में निधन हो गया। आचार्य नरेंद्र देव को हराया था। सोशलिस्ट धड़े से 13 विधायकों ने यूपी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उपचुनाव का ऐलान हुआ। उपचुनाव में फैजाबाद सीट पर सबकी नजर थी। यहां से समाजवादी विचारक आचार्य नरेंद्र देव मैदान में थे, जो उन इस्तीफा देने वाले सोशलिस्ट विधायकों में शामिल थे।12 दिसंबर 1998 को, वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान, राघव दास की जयंती के अवसर पर भारत सरकार की ओर से नेहरू से मुकाबला करने वाले ‘राम भक्त’ कांग्रेस विधायक की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया था।