क्या है ज्ञानवापी मस्जिद का सच सामने लाने वाली GPR टेक्निक?

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आज हम आपको ज्ञानवापी मस्जिद का सच सामने वाली GPR टेक्निक के बारे में जानकारी देने वाले हैं! उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी में हुए ASI के सर्वे के दौरान मंदिर या मस्जिद के सच को सामने लाने में ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार टेक्निक काफी अहम साबित हुई। मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर होने के पुख्‍ता सबूत इसी तकनीक के जरिए सामने आए हैं। सर्वे में मिली मूर्तियां, खंडित धार्मिक चिह्न, सजावटी ईंटे, दैवीय युगल, चौखट के अवशेष सहित अन्‍य 250 सामग्रियां को प्रमाण के रूप में ASI ने जिलाधिकारी की सुपुर्दगी में कोषागार में जमा कराया है। यह सामग्रियां हिंदू पक्ष के लिए अहम प्रमाण हैं। ASI ने 839 पेज की वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट में कहा है कि ज्ञानवापी परिसर में मौजूद ढांचा मस्जिद से पहले वहां हिंदू मंदिर था। रिपोर्ट में इस बात का कई बार जिक्र है। आर्किटेक्‍ट, स्‍ट्रक्‍चर, बनावट और वर्तमान ढांचा स्‍पष्‍ट तौर पर हिंदू मंदिर का भग्‍नावशेष है। एक अवशेष ऐसा मिला है, जिस पर तीन अलग-अलग भाषाओं में श्‍लोकों के साथ जनार्दन, रुद्र और उमेश्‍वर के नाम लिखे हैं। एक ऐसा स्‍थान भी मिला है जहां ‘महामुक्ति मंडप’ लिखा है।

सर्वे में 34 अवशेष और भग्‍नावेष और 32 ऐसे साक्ष्‍य मिले हैं , जो पूरी तरह दावा कर रहे हैं कि ज्ञानवापी में मस्जिद से पहले हिंदू मंदिर था और वर्तमान ढांचा यानी मस्जिद 17 वीं शताब्‍दी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो पहले स्‍ट्रक्‍चर हिंदू मंदिर था, उसे 17वीं शताब्‍दी में तोड़े जाने के बाद उसके पिलर और अन्‍य सामग्री का इस्‍तेमाल मस्जिद बनाने में किया गया। ASI सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद की पूरी पश्चिमी दीवार हिंदू मंदिर का हिस्‍सा है। यह आड़े हॉरिजेंटल सांचों से सुसज्जित है। दीवार से जुड़ा केंद्रीय कक्ष अभी भी अपरिवर्तित है, जबकि बाहर के दो कक्षों में बदलाव कर दिया गया है। ज्ञानवापी स्थित चबूतरे के पूर्वी भाग में तहखाने को बनाते समय पहले के मंदिर के स्‍तंभों का उपयोग किया गया। एक स्‍तंभ ऐसा मिला है, जिसे घंटियों से सजाया गया है। चारों तरफ दीपक रखने के लिए जगह बनी है।सर्वे रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ज्ञानवापी के एक तहखाने में दो मीटर चौड़ा कुआं है, जिसे ढका गया है। मंदिर के केंद्रीय कक्ष को मोटी और मजबूत दीवारों वाली चिनाई से बंद किया गया है। मंदिर के केंद्रीय कक्ष का मुख्‍य प्रवेश द्वार पश्चिम से था, जिसे दीवार खड़ी कर अवरुद्ध कर दिया गया था।

ASI के अनुसार, ज्ञानवापी में मौजूद संरचना मस्जिद में प्रयुक्‍त स्‍तंभों और भित्ति स्‍तंभों का व्‍यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से अध्‍ययन किया गया। मस्जिद के सहन के निर्माण के लिए पहले से मौजूद मंदिर के स्‍तंभों सहित अन्‍य सामग्री का थोड़े से संशोधनों के साथ उपयोग किया गया। मस्जिद के गलियारे में स्‍तंभों के अध्‍ययन से पता चलता है कि वे मूल रूपसे पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का हिस्‍सा थे। मौजूदा संरचना में उनके फिर से उपयोग के लिए कमल पदक के दोनों ओर उकेरी गई आकृतियों को खराब कर दिया गया और कोनों से पत्‍थरों के द्रव्‍यमान को हटाने के बाद उस स्‍थान को पुष्‍प डिजाइन से सजाया गया। ऐसे स्‍तंभ पश्चिमी कक्ष की उत्तरी और दक्षिणी दीवार पर मौजूद है।

सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि ज्ञानवापी के तहखानों में मूर्तिकला के अवशेष मिले हैं।

हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और नक्‍काशीदार वस्‍तुशिल्‍प तहखाने में मिट्टी के नीचे दबे मिले। स्‍वास्तिक चिह्न और नागदेवता के निशान भी मिले हैं। चौकोर अरघा मिला है, जिसे शिवलिंग का बताया जा रहा है। चतुर्भुज मूर्ति, जनेऊधारी तथा भगवान विष्‍णु की मूर्ति भी मिली है। तहखाने में शेर के रूप में नरसिंह भगवान की तस्‍वीर भी मिली। एक कमरे के अंदर मिले अरबी-फारसी शिलालेख में उल्‍लेख है कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके कई साक्ष्‍य वर्तमान ढांचे के अंदर भी मौजूद हैं। अधिवक्‍ता हिंदू पक्ष विष्‍णु जैन ने कहा कि ASI सर्वे रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि ज्ञानवापी पहले मंदिर था। औरंगजेब के समय में हिंदू मंदिर की संरचना को ढहा दिया गया। इसके बाद मंदिरों के अवशेषों और खंभों का उपयोग मस्जिद बनाने में किया गया। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमिटी के अधिवक्ता एखलाक अहमद ने कहा कि जो भी मूर्तियां और अन्‍य साक्ष्‍य मिलने का दावा किया जा रहा है, वह मस्जिद के अंदर नहीं मिली है। मस्जिद परिसर में पांच किराएदार थे जो मूर्तियां बनाते थे और मलबा पीछे की तरफ फेंक देते थे। कोई ऐसी मूर्ति नहीं मिली है, जिसे कहा जाए कि ये भगवान शिव की मूर्ति है। जहां तक सर्वे रिपोर्ट का सवाल है तो पूरी पढ़ने के बाद आपत्ति दाखिल करेंगे।