आखिर एनडीए में क्यों शामिल हो गए नीतीश कुमार?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि नीतीश कुमार एनडीए में फिर से शामिल क्यों हो गए! अगस्त, 2022 में राजधानी पटना में बिल्कुल आज ही की तरह नजारा था। मीडियाकर्मी राजभवन के बाहर राजेंद्र चौक पर डेरा जमाए हुए थे। नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया। उसके बाद उन्होंने बताया कि बीजेपी उनकी पार्टी को तोड़ने में लगी थी। इसलिए उन्हें ये फैसला लेना पड़ा। नीतीश कुमार ने उसके बाद आरजेडी के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाई। उन्होंने लोगों को ये एहसास दिलाया कि समाजवादी नेता और समाजवादी विचारधारा आगे बढ़नी चाहिए। इतना ही नहीं सत्ता संभालने के ठीक तीन महीने बाद नीतीश कुमार ने ये भी ऐलान कर दिया कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा। अब युवा ही नेतृत्व करेंगे। जनवरी, 2024 के 26 जनवरी के दिन गांधी मैदान में नीतीश कुमार तेजस्वी यादव से दूरी बनाते दिखे। दिन भर उनके पाला बदलने की अटकलें चलती रही। इस बीच आरजेडी राज्यसभा सांसद मनोज झा का सीधा बयान आया। उसके बाद जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार भी जवाब देने के मूड में आ गए। बिहार की राजनीति में स्टार्टिंग से जेडीयू हमेशा बीजेपी का बड़ा भाई बना रहा। जेडीयू की सीटें ज्यादा रही। जेडीयू हर तरीके से आगे रहा। समय के साथ जेडीयू का कुनबा पिछड़ गया। सीटें कम होती गईं। नीतीश कुमार इसलिए भी नाराज रहने लगे कि 2015 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की सीटें 71 रही। 2020 के विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या मात्र 43 बाद में 45 पर आ गई। वहीं बीजेपी के सीटों की संख्या बढ़ती गई। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें बढ़ कर 74 हो गईं। राजद के बाद दूसरे नंबर की पार्टी बीजेपी हो गई। नीतीश कुमार ने लगे हाथों अपने सहयोगियों और गाहे बगाहे मीडिया से बातचीत में एक और बात बोलने लगे। उन्होंने कहा कि बीजेपी ने साजिश करके चिराग पासवान के जरिए सभी निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार खड़ा करा दिया। इसकी दोषी बीजेपी है। जेडीयू ने वोट काटने का आरोप चिराग पासवान पर लगाया। बीजेपी पर प्रॉक्सी के रूप में काम करने का आरोप लगा। हालांकि, एलजेपी ने सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र में जीत हासिल की।

अंदर की सूत्रों की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक नीतीश कुमार सरकार के निर्माण में बीजेपी की शर्तों से असहज रहे। नीतीश डिप्टी सीएम रेनू देवी और तारकिशोर प्रसाद को लेकर सहज महसूस नहीं करते थे। उनके साथ 13 साल तक डिप्टी सीएम रहे सुशील कुमार मोदी की तरह इन लोगों से उनका तालमेल अच्छा नहीं रहा। जेपी आंदोलन के जमाने से सुशील मोदी से नीतीश का रिश्ता है। दोनों के बीच की घनिष्टता किसी और नेता से ज्यादा है। उस वक्त जेडीयू के नेता आरसीपी सिंह, जो केंद्र में मंत्री थे। उनका उपयोग करके सुशील मोदी को हटा दिया गया। नीतीश कुमार सुशील मोदी के डिप्टी सीएम नहीं बनने से काफी असहज थे। सुशील मोदी हमेशा नीतीश कुमार की मंशा को समझते थे। सुशील मोदी बिहार बीजेपी के उन नेताओं पर लगाम लगाने में सफल हो जाते थे। जो नेता नीतीश के खिलाफ गलत बयानी करते थे। सुशील मोदी हमेशा नीतीश कुमार के पक्ष में खड़े रहते थे।

जेडीयू के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार के कांग्रेस, इंडिया गठबंधन और आरजेडी से मोहभंग होने के कई कारण हैं। इसका सबसे मुख्य कारण है वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में नीतीश द्वारा खुद को असहज महसूस किया जाना। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले जेडीयू के कम से कम सात सांसद बीजेपी के संपर्क में हैं। इन सभी सांसदों का मानना है कि 2019 में उन्हें जीत एनडीए के सामाजिक संयोजन और मेहनत की वजह से मिली। सांसदों को पता है कि आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के साथ मिलकर खड़े होने पर लोगों का ऐसा समर्थन नहीं मिलेगा। जेडीयू के ललन सिंह को छोड़ दिया जाए, तो अधिकांश नेता बीजेपी के साथ गठबंधन बनाने के पक्ष में थे। नीतीश कुमार को ये एहसास हो गया कि यदि उन्होंने कार्रवाई नहीं कि तो पार्टी विभाजित हो जाएगी। उसके बाद उन्होंने पिछले महीने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की जगह खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। कहा जा रहा है कि ललन सिंह की लालू से बढ़ रही नजदीकी भी नीतीश कुमार को पसंद नहीं थी।

दूसरी तरफ जेडीयू ने अपना पिछला इतिहास देखा। जेडीयू 2019 में लोकसभा चुनावों में एनडीए के साथ लड़ी गई 17 सीटों में से 16 पर जीत हासिल की थी। पार्टी की ओर से एक आंतरिक सर्वेक्षण कराया गया। जिसका परिणाम उत्साहजनक नहीं आया। नीतीश कुमार ने अनुमान लगाया कि यदि उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपनी जीत की संभावना देख रही है, तो इसमें हर्ज क्या है। उसके अलावा जेडीयू को ये भी महसूस हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन मोदी की लोकप्रियता को और आगे बढ़ा रहा है। लगे हाथों उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न भी दे दिया। मोदी की जीत में इन सबकी हिस्सेदारी ज्यादा होगी। इस वक्त बीजेपी के साथ रहकर इन सबका थोड़ा बहुत श्रेय भी लिया जा सकता है।

नीतीश कुमार ने बड़े अरमानों के साथ विपक्षी एकता की कवायद शुरू की थी। लेकिन वो सफल नहीं हुई। उन्हें इस गठबंधन में एक महत्वपूर्ण पद की उम्मीद थी। हुआ बिल्कुल उल्टा। इंडिया गठबंधन अपनी-डफली और अपनी राग बजाने लगा। टीएमसी और केजरीवाल की पार्टियों की बेचैनी ने ऐसा होने नहीं दिया। वे लोग अलग राग अलापने लगे। 2017 में महागठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश ने आरजेडी को इसका जिम्मेदार ठहराया था। इस बार कांग्रेस को इसके लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से अपनाया जा रहा अलग रास्ता भी विवाद का कारण बना है। राहुल गांधी द्वारा गठबंधन के बारे में बात करने के बजाय कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू की गई है। ये यात्रा बिल्कुल कांग्रेस की अपनी और अलग यात्रा है। इसलिए जेडीयू को अब महागठबंधन में रहने का कोई कारण नजर नहीं आया। इंडिया गठबंधन एकजुट रहने और मोदी को जवाब देने में पूरी तरह विफल रहा। वैसे में नीतीश ने अपनी पार्टी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए एक व्यवहारिक निर्णय लिया है। जिसका सियासी गलियारों में स्वागत भी हो रहा है।