क्या बिहार के कैबिनेट में है जातीय आधार?

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वर्तमान में बिहार के कैबिनेट में जातीय आधार है! आगामी राजनीति की सुध लेते बिहार में एनडीए की सरकार बनी। जातीय तुष्टिकरण के साथ-साथ राजद नेता तेजस्वी यादव के ए-टू-जेड समीकरण को भी ध्वस्त करने के सूत्र भी तलाश लिए गए। सीएम नीतीश कुमार के साथ शपथ लेने वालों में 8 मंत्रियों से ये स्पष्ट हो गया कि एनडीए आगामी चुनाव में किन ‘जातीय वीर’ के साथ चुनाव में उतरने जा रही है। हालांकि, आगे आने वाली मंत्रियों की सूची से बाकी बचे जातीय समीकरण को भी तुष्ट किए जाने के संकेत मिलने लगे हैं। रविवार की शाम सीएम समेत 9 मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें नीतीश कुमार के साथ 2 उपमुख्यमंत्री और 6 कैबिनेट मंत्री शामिल हैं। बीजेपी से सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा डिप्टी सीएम होंगे। इसके अलावा प्रेम कुमार शामिल हैं। जदयू से विजय चौधरी, विजेंद्र यादव और श्रवण कुमार ने शपथ ली। जबिक हम से जीतन राम मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन और निर्दलीय सुमित सिंह मंत्री बने।

एनडीए के मंत्रिपरिषद की जो पहली तस्वीर आई है, उसमें बिहार के प्रमुख और आक्रामक जातियों की झलक दिख गई। ऐसा लगा कि एनडीए के रणनीतिकार तेजस्वी के ए-टू-जेड फॉर्मूला को शिकस्त देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इस मंत्रिपरिषद पर ध्यान दें तो सबसे ज्यादा जोर लव-कुश समीकरण पर दिया गया है। सीएम नीतीश कुमार के साथ डिप्टी सी-एम सम्राट चौधरी और जदयू के श्रवण कुमार लव-कुश समीकरण को पुष्ट करते देख रहे हैं। ऐसे भी राज्य के सबसे बड़ी आबादी यादव के 14 प्रतिशत वोट के विरुद्ध लव-कुश समीकरण से ही एनडीए राजद को मात देते रही है।

अब यादव जाति को तटस्थ करने के लिए जदयू नेता विजेंद्र यादव को मंत्री बनाया गया। वोटिंग टेंडेंसी को लेकर बिहार की सबसे आक्रामक जाति को एनडीए से जोड़ने के लिए दो-दो भूमिहार को मंत्री बनाया है। भाजपा ने तो भूमिहार नेता विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बना दिया और जदयू की तरफ से विजय चौधरी को भी मंत्री बनाया गया। अतिपिछड़ा जाति के लिए भाजपा ने कहार जाति के प्रेम कुमार को भी मंत्री बनाया है। एनडीए के रणनीतिकार ने बड़ी चालाकी से सरकार के भविष्य का भी ख्याल रखा।बीजेपी नेतृत्व के फलसफे पर भाजपा की राजनीति के सुर बदलने आगे। अटल आडवाणी को सॉफ्ट नेताओं के विरुद्ध नरेंद्र मोदी के हाथ भाजपा और देश का नेतृत्व आया। इस धरातल पर नरेंद्र मोदी के प्राथमिकता वाले नेताओं में न नीतीश कुमार थे और न ही सुशील मोदी।

 ऐसा इसलिए कि राजद जिस मैजिक नंबर के पीछे भाग रही थी, उसके आंकड़ों में हम के चार विधायक और निर्दलीय विधायक सुमित कुमार को भी शामिल किया जा रहा था। एनडीए ने राजद नेतृत्व के उस मंसूबे को ध्वस्त किया और साथ ही दलित और राजपूत जाति को भी संतुष्ट करने में सफलता पाई। बता दें कि सम्राट चौधरी हार्ड कोर नेता माने जाते हैं। विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनते ही सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार को मेमोरी लॉस सीएम बताया। नीतीश को हमेशा कहते रहे हैं कि वो बिहार संभालने लायक नहीं हैं। वे डरपोक नेता हैं। यहां तक कि 2023 में सिर पर भगवा रंग का मुरेठा बांधते यह कसम भी खाई कि नीतीश कुमार के पद से हटने के बाद ही वह मुरैठ खोलेंगे। उधर, भाजपा ने नीतीश कुमार का इंतज़ाम सदन के बाहर भी कर दिया है। नरेंद्र मोदी के हनुमान चिराग पासवान ने खुलेआम कहा कि नीतीश कुमार से मेरी व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है। पर नरेंद्र मोदी नीत नीतियों को वह फलीभूत होने नहीं देंगे तो उन्हें चिराग पासवान का विरोध झेलना होगा। 

 

बिहार मंत्रिपरिषद की ये अंतिम तस्वीर नहीं है। आने वाले मंत्रियों की सूची में ब्राह्मण, वैश्य, अन्य पिछड़ी जातियां, दलित और मुस्लिम कोटे को भी तुष्ट किया जाएगा। तेज तर्रार नेताओं को सीएम नीतीश कुमार के अगल-बगल खड़ा किया है। याद होगा विधान सभा अध्यक्ष रहते विजय सिन्हा ने सीएम नीतीश कुमार से टकराहट भरी भाषा के साथ सवाल जवाब किया था। मसला लखीसराय का था। एक गिरफ्तारी को लेकर तब वे दोनों आमने-सामने हो गए थे। ये वही विजय सिन्हा हैं जिन्होंने नीतीश को मेंटल, बंधुआ मजदूर तक कहा था।पिछली एनडीए सरकार के कई मंत्री अभी आगामी सूची के लिए इंतजाररत हैं। मिली जानकारी के अनुसार आने वाले मंत्रियों की सूची हर संभव जातीय तुष्टिकरण की पुष्ट तस्वीर भी परोसने जा रही है।