यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या एलन मस्क के प्रयोग से इंसानी दिमाग पर मशीनों का राज होगा या नहीं! एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक ने हाल ही में पहली बार किसी इंसान के दिमाग में ‘टेलीपैथी’ नाम का एक नया उपकरण लगाया है। इससे पहले भी ऐसे प्रयास हो चुके हैं, लेकिन न्यूरालिंक की टेक्नोलॉजी काफी अलग है। आमतौर पर इम्प्लांट की ऐसी कोशिशें दिमाग के ऊपर उपकरण फिट करने के लिए होती थीं। लेकिन न्यूरालिंक का ये चिप सीधे दिमाग के अंदर जाता है। ये चिप बहुत पतले तारों का इस्तेमाल करता है जो दिमाग की अलग-अलग कोशिकाओं से जुड़ सकते हैं। इससे भविष्य में हमें अपने दिमाग से ही मोबाइल फोन और कंप्यूटर चलाने में मदद मिल सकती है। खासकर, ये उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है जो अपने हाथों का इस्तेमाल नहीं कर पाते। हालांकि, न्यूरालिंक का असली मकसद इंसानों और कंप्यूटरों को एक-दूसरे से जोड़ना है। यानी भविष्य में हम सोचकर ही चीजों को कंट्रोल कर सकेंगे, ये मानो साइंस फिक्शन की फिल्मों जैसा लगता है। लेकिन अभी इसे लेकर काफी सवाल भी हैं। मसलन, कहीं इस टेक्नॉलजी का गलत इस्तेमाल तो नहीं होने लग सकता है? फिलहाल, ये टेक्नॉलजी शुरुआती दौर में है और इसके दूरगामी असर को समझने के लिए अभी और वक्त लगेगा।
अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तरक्की करता रहे जैसा कि कहा जा रहा है, तो न्यूरालिंक जैसे उपकरण इंसानों को पूरी तरह बदलकर रख सकते हैं। कल्पना कीजिए, हम सीधे ड्रोन, सेल्फ-ड्राइविंग कारों को भी अपने दिमाग से कंट्रोल कर सकेंगे। सुपर कंप्यूटर जैसा शतरंज खेल पाएंगे या प्रोटीन संरचना जैसे जटिल वैज्ञानिक प्रयोगों की देखरेख कर सकेंगे।
ऐसा करना भी बहुत मुश्किल नहीं है, क्योंकि आज की तकनीक भी काफी हद तक ये कर सकती है। हम बिना तार के मोबाइल और लैपटॉप चलाते हैं, उनकी बैटरी भी बिना किसी तार के चार्ज करने की तकनीक पहले से मौजूद है ही। ऐसे में ये कल्पना करना मुश्किल नहीं कि भविष्य में हमारे दिमाग में लगा एक चिप आसपास के उपकरणों को कंट्रोल कर सकेगा और उसे बिना तार के ही चार्ज किया जा सकेगा। लेकिन ये टेक्नोलॉजी अभी पूरी तरह तैयार नहीं है। न्यूरालिंक का कहना है कि वो 2024 में 11 लोगों पर ये चिप लगाएगा और इससे इस तकनीक को और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। इंसानों पर प्रयोग से पहले उन्होंने बंदरों पर टेस्ट किया था। यानी ये माना जा सकता है कि ये सर्जरी मेडिकल रूप से सुरक्षित है।
हालांकि, इस टेक्नोलॉजी के कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। जैसे अगर किसी का दिमाग हैक हो जाए तो काफी खतरनाक हो सकता है। लेकिन कुल मिलाकर, ये डिवाइस दिव्यांग लोगों की जिंदगी को आसान बना सकते हैं, इसलिए इस पर रिसर्च जरूरी है। मगर ये टेक्नोलॉजी कुछ सवाल खड़े करती है, खासकर नैतिकता के लिहाज से।
न्यूरालिंक जैसी टेक्नोलॉजी को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं: सुपर इंटेलिजेंस वाला AI: सबसे पहला सवाल ये है कि क्या सचमुच आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इतना ज्यादा उन्नत हो जाएगा कि वो इंसानों से भी ज्यादा तेज दिमाग वाला बन जाएगा? अभी तो ये सिर्फ एक अनुमान है। ये बेशक कई कामों में इंसानों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। लेकिन क्या AI ही सामान्य बुद्धि जनरल इंटेलिजेंस में तब्दील हो जाएगा और इंसानों से ज्यादा जनरल इंटेलिजेंस वाल हो जाएगा? फिलहाल तो ये कहना मुश्किल है। इंसान और AI का मेल: दूसरा सवाल ये है कि क्या मेडिकल साइंस और न्यूरोलॉजी इतनी तरक्की कर पाएंगे कि इंसान और AI का मानसिक रूप से जुड़ाव हो सकेगा? तकनीकी तौर पर कंप्यूटरों को आपस में जोड़ना संभव है, क्योंकि हमारा दिमाग भी एक तरह का कंप्यूटर ही है। लेकिन इसमें दिमाग और शरीर से जुड़ी कई दिक्कतें आ सकती हैं। इसका पता लगाने के लिए अभी और रिसर्च करनी होगी।
तीसरा सवाल ये है कि अगर दिमाग में चिप लगा ली जाए तो क्या इंसान और भी ज्यादा बुद्धिमान बन जाएगा? क्या वो AI से भी ज्यादा समझदार हो पाएगा, या फिर इंसानी भावनाओं और व्यवहार को ज्यादा गहराई से समझ सकेगा? ताकत का ट्रांसफर? चौथा सवाल ये है कि क्या ये सुपर बुद्धिमान इंसान AI और बाकी इंसानों के बीच नैतिक मध्यस्थता कर पाएगा? या अगर जरूरत पड़ी तो क्या वो AI को काबू में रख पाएगा? ये सभी सवाल इसलिए जरूरी हैं क्योंकि न्यूरालिंक जैसी टेक्नोलॉजी भविष्य में काफी बदलाव ला सकती है। इसलिए इस पर गंभीरता से सोचना और रिसर्च करना जरूरी है। यहां तक कि अगर सब कुछ न्यूरालिंक के हिसाब से हो भी जाए, तब भी कई नैतिक सवाल उठते हैं।क्या ये सही है कि हम किसी के दिमाग में चिप लगाकर उसे ‘साइबर वंडर वूमन’ या ‘साइबर कैप्टन मार्वल’ बना दें? क्या ये गारंटी है कि ऐसा इंसान नैतिक होगा या ‘इंसानियत’ की तरफ खड़ा होगा?