यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब विपक्षी एकता टूट जाएगी या नहीं! देश में लोकसभा चुनाव में अधिक समय नहीं रहा गया है। केंद्र सरकार की तरफ से अंतरिम बजट आ चुका है। अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम भी खत्म हो चुका है। अब इंतजार है लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा का। दूसरी तरफ सत्ता की हैटट्रिक लगाने की तैयारी में लगी बीजेपी नीत एनडीए गठबंधन के सामने मुकाबला कितना कड़ा है? विपक्षी दलों की तरफ से मोदी को कितनी मजबूत टक्कर मिलेगी। चुनाव से पहले इंडिया में मची उथल-पुथल के बाद यह सवाल मौजू है। विपक्षी दलों की तरफ से केंद्र के अंतरिम बजट पर पहली बार एक सुर में होने के बावजूद विपक्ष पूरी तरह बिखरा नजर आ रहा है। 28 दलों वाले इंडिया गठबंधन में चुनाव से पहले साथियों के छिटकने का सिलसिला शुरू हो चुका है। पिछले साल दिसंबर से ही कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों में सीटों के बंटवारें पर सहमति को लेकर बातचीत चल रही है। करीब 50 दिन बीतने के बाद भी अभी तक ठोस रूप से कुछ भी जनता के सामने नहीं आया है। वहीं, इंडिया गठबंधन के संयोजक की रेस में शामिल रहे प्रमुख चेहरे और बिहार के सीएम नीतीश कुमार पाला बदल चुके हैं। इससे एनडीए को कितनी मजबूती मिलेगी इस सवाल से कही अधिक अहम है कि इंडिया गठबंधन को कितनी बड़ी चोट पहुंची हैं। कांग्रेस भले ही इसके असर को कमतर करके आंक रही हो लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे मोदी के खिलाफ लड़ाई में बड़ा झटका मान रहे हैं।
इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है। ऐसे में गठबंधन का हिस्सेदार 28 दलों के बीच उसकी जिम्मेदारी काफी अहम है। कांग्रेस के सामने दिल्ली, पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल में दुविधा की स्थिति है। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की क्षेत्रीय इकाइयां गठबंधन पर मानसिक रूप से तैयार ही नहीं हो पा रही हैं। पंजाब में आम आदमी पार्टी की तरफ से सभी सीटों पर चुनाव लड़ने तक की बात भी कह दी गई। वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भी एकला लड़ो की बात कह चुकी हैं। अभी ये दो दलों की तरफ से असहमति के सुर निकल ही रहे थे कि इंडिया गठबंधन के लिए महाराष्ट्र से भी अच्छी खबर नहीं आ रही है। महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी में शामिल प्रकाश अंबेडकर ने साफ कह दिया है कि इंडिया गठबंधन लगभग खत्म हो चुका है। प्रकाश का कहना है कि राज्य में सीटों के बंटवारे पर शिवसेना और एनसीपी से बातचीत हो रही है। कांग्रेस से कोई बातचीत ही नहीं है।
बीजेपी की स्थिति इस समय समुद्र में एक बड़े जहाज के रूप में दिख रही है। मोदी सरकार किसान सम्मान निधि, मुफ्त अनाज योजना, पीएम आवास योजना, मुद्रा लोन जैसी अपनी कल्याणकारी योजनाओं के साथ मजबूती से ताल ठोक रही है। वहीं, बिहार जैसे बड़े राज्य में इंडिया गठबंधन पूरी तरह से बिखरा नजर आ रहा है। नीतीश कुमार खुद इस बात को कह चुके हैं कि इंडिया गठबंधन बिल्कुल स्लो चल रहा है। कांग्रेस भले ही यह कह रही हो कि इंडिया गठबंधन को मकसद मोदी को सत्ता से हटाना है लेकिन जमीनी स्तर पर यह दूर की कौड़ी नजर आ रही है। विपक्ष महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर भी सरकार को अभी तक घेरने में पूरी तरह से नाकाम रहा है। इंडिया गठबंधन की तरफ से अभी तक संयुक्त रैली या प्रचार अभियान को लेकर भी स्थिति साफ नहीं हो पा रही है। करीब 50 दिन बीतने के बाद भी अभी तक ठोस रूप से कुछ भी जनता के सामने नहीं आया है। वहीं, इंडिया गठबंधन के संयोजक की रेस में शामिल रहे प्रमुख चेहरे और बिहार के सीएम नीतीश कुमार पाला बदल चुके हैं। इससे एनडीए को कितनी मजबूती मिलेगी इस सवाल से कही अधिक अहम है कि इंडिया गठबंधन को कितनी बड़ी चोट पहुंची हैं। कांग्रेस भले ही इसके असर को कमतर करके आंक रही हो लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे मोदी के खिलाफ लड़ाई में बड़ा झटका मान रहे हैं।राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार जहां तक आम चुनाव में लोगों के बीच प्रमुख मुद्दे और परेसप्शन की लड़ाई है इसमें कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन पूरी तरह से पिछड़ता नजर आ रहा है। ऐसे में इंडिया गठबंधन मोदी से मुकाबला कैसे कर पाएगा ये तो आने वाला समय ही तय करेगा।