आखिर क्या है विपक्ष का बिखरने से लेकर एक होने का रास्ता?

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आज हम आपको विपक्ष का बिखरने से लेकर एक होने का रास्ता बताने जा रहे हैं! शनिवार को 17वीं लोकसभा का अंतिम सत्र संपन्न हो गया। अगर पिछले पांच सालों को विपक्ष के नजरिए से देखा जाए तो जून 2019 में बीजेपी की प्रचंड जीत के सामने विपक्ष था तो लेकिन बिखरा-बिखरा सा। पूरी ताकत लगाने के बाद भी प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं पा सकी। इस बीच पांच साल तक लगातार अलग-अलग दलों से लेकर नेताओं की ओर से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश होती रही। कभी बिहार में जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार तो कभी एनसीपी चीफ शरद पवार, कभी टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी तो कभी बीआरएस प्रमुख केसीआर। लेकिन इन पांच सालों में जिन भी बड़े नेताओं की ओर से विपक्षी एकजुटता की कोशिश हुई, उसका अपना घर बिखर गया या उसने खुद ही पाला बदल लिया। नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा बन गए तो पवार के यहां टूट हो गई। वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी टूट गई। जबकि केसीआर भी एनडीए के साथ जाने की तैयारी में हैं। धारा 370, महिला आरक्षण बिल, नई संसद और हाल ही में राम मंदिर का उद्घाटन जैसी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर सवार बीजेपी के सामने विपक्ष बिखरा सा नजर आ रहा है। नीतीश कुमार के जाने के बाद आरएलडी के निकलने की संभावनाओं के बीच इंडिया गठबंधन लगातार कमजोर दिख रहा है। ममता बनर्जी का ‘एकला चलो’ का फैसला और यूपी में अखिलेश और दिल्ली-पंजाब में आप के साथ कांग्रेस की बात न बन पाना कहीं न कहीं कमजोर व बिखरे विपक्ष की बानगी बन रहा है। विपक्षी दल लगातार ईडी, सीबीआई व इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों के इस्तेमाल के जरिए सरकार पर विपक्ष को कमजोर करने का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस महंगाई व रोजगार के मुद्दे पर सरकार को घेर रही है तो वहीं सामाजिक न्याय के तहत छह सामाजिक न्याय की बात करती है, लेकिन बीजेपी ने पीएम मोदी की गारंटीज देकर उसे काउंटर करने की कोशिश की है। हालांकि उत्तर भारत में बीजेपी के प्रभाव को देखते हुए दक्षिण में विपक्ष अपनी रणनीति बनाकर मजबूत दिखने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस, लेफ्ट व डीएमके जैसे दल वहां अपना किला बचाने की कोशिश में लगे हैं। यह बात और है कि बीजेपी अपनी रणनीति व कूटनीति से वहां भी अपने लिए जमीन तलाशने की जद्दोजहद में दिख रही है। चुनाव में 100 दिन से भी कम समय बचने के बावजूद विपक्ष के बीच न ताे अभी तक मुद्दाें पर एकजुटता बन पाई है और न ही सीटों के बंटवारे पर चीजें फाइनल हुई हैं। न तो संयुक्त रणनीति सामने आ पाई है और न ही संयुक्त प्रचार शुरू हुआ है। कह रही है कि इन एजेंसियों के इस्तेमाल से सरकार विपक्षी दलों को डराने या दबाव डालने का काम कर रही है।

17वीं लोकसभा में विपक्षी सांसदों ने संसद में बड़े पैमाने पर निष्कासन और निलंबन देखा। एक तरफ राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाल रहे हैं तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के घटक दलों बदलते रुख और मिजाज से विपक्षी एकजुटता ठंडी पड़ती दिख रही है। इंडिया गठबंधन का प्रमुख दल होने के बावजूद ज्यादातर घटक दल कांग्रेस ने नाराज दिख रहे हैं। कांग्रेस सबको साधने व साथ लेकर चलने में नाराज दिख रही हैं। विपक्ष धर्म व जाति के नाम पर बीजेपी पर समाज को बांटने का आरोप लगाते हुए देश की इकोनमी को लेकर बीजेपी व मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन मोदी सरकार ने आखिरी सत्र के आखिर में यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर कांग्रेस पर पलटवार करने की कोशिश की है।

कांग्रेस महंगाई व रोजगार के मुद्दे पर सरकार को घेर रही है तो वहीं सामाजिक न्याय के तहत छह सामाजिक न्याय की बात करती है, लेकिन बीजेपी ने पीएम मोदी की गारंटीज देकर उसे काउंटर करने की कोशिश की है। हालांकि उत्तर भारत में बीजेपी के प्रभाव को देखते हुए दक्षिण में विपक्ष अपनी रणनीति बनाकर मजबूत दिखने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस, लेफ्ट व डीएमके जैसे दल वहां अपना किला बचाने की कोशिश में लगे हैं। यह बात और है कि बीजेपी अपनी रणनीति व कूटनीति से वहां भी अपने लिए जमीन तलाशने की जद्दोजहद में दिख रही है। चुनाव में 100 दिन से भी कम समय बचने के बावजूद विपक्ष के बीच न ताे अभी तक मुद्दाें पर एकजुटता बन पाई है और न ही सीटों के बंटवारे पर चीजें फाइनल हुई हैं। न तो संयुक्त रणनीति सामने आ पाई है और न ही संयुक्त प्रचार शुरू हुआ है।