आखिर बीजेपी में क्यों नहीं ले पाए कमलनाथ एंट्री?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि कमलनाथ बीजेपी में एंट्री क्यों नहीं ले पाए! आखिरकार, न कोई आया और न कोई गया। कमलनाथ प्रकरण मध्य प्रदेश की सबसे नाटकीय राजनीतिक घटनाओं में से एक था, जो अंजाम तक नहीं पहुंचा। नौ बार के सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्य में भगवा लहर के सामने खड़े एकमात्र मजबूत कांग्रेसी दिग्गज अपने बेटे नकुल को साथ लेकर भाजपा में शामिल होने वाले थे। तब मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास कुछ खास नहीं बच जाता। हालांकि, उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी। लेकिन बेतुकेपन के इस रंगमंच पर कब, क्या हो जाए, कोई नहीं बता सकता। कमलनाथ ने पत्रकारों से सवाल को एक ही पंक्ति के जवाब से निपटा दिया, ‘आप इतने उत्साहित क्यों हैं?’ ऐसे में केवल एक ही बात निश्चित है कि 29 सीटों वाले मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले कभी भी, कुछ भी हो सकता है। मध्य प्रदेश कांग्रेस ढहती दीवारों का एक जर्जर भवन भर है। ‘वो कैसे कर सकते हैं? वो इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे हैं।’ कमलनाथ के लिए आज ऐसा कहने वालों ने लगभग ठीक चार साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में कहा था, ‘वो आखिर ऐसा कैसे कर सकते हैं, वो तो राहुल गांधी के करीबी दोस्त हैं?’ सिंधिया को बनाए रखने के लिए कांग्रेसियों का दिल नहीं पसीजा। नाथ के लिए फिलहाल काफी-खींचतान हुई। यह भी संभव है कि बीजेपी ने ही जोर नहीं लगाया हो।

नाथ के भाजपा में जाने से कांग्रेस पर सिंधिया की बगावत के मुकाबले कहीं ज्यादा असर पड़ेगा। कमलनाथ अगर भाजपाई हो जाते तो उन्हें गद्दार कहकर खारिज नहीं किया जा सकता था। उनका जाना एक ‘सेनापति’ की नाराजगी होती जिसने पराजित सेना से पीछा छुड़ा लिया। लेकिन ऐसे हालात बने कैसे? दिसंबर में कांग्रेस के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद उनकी जगह युवा जीतू पटवारी को लाए जाने पर कमलनाथ की प्रतिक्रिया थी? उनकी प्रतिक्रिया क्या बेटे नकुल के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए थी? 6 फरवरी को नकुलनाथ ने पारिवारिक लोकसभा क्षेत्र छिंदवाड़ा से खुद को उम्मीदवार घोषित कर दिया। कमलनाथ तुरंत बेटे के समर्थन में आ गए। उन्होंने कहा, ‘जैसे ही एआईसीसी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करेगी, नकुल की उम्मीदवारी तय हो जाएगी।’ यह सिर्फ जानकारी देने जैसा नहीं था कि कांग्रेस पार्टी छिंदवाड़ा से नकुल को उम्मीदवार बनाएगी, बल्कि यह दावेदारी थी।

8 से 18 फरवरी के बीच जो कुछ हुआ वह किनारे बैठकर समुद्र की गहराइयों का अंदाजा लेने जैसा था। प्रदेश कांग्रेस के लीगल हेड बीजेपी में शामिल हो गए। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ, दोनों के करीबी और एमपी कांग्रेस के कोषाध्यक्ष के राज्यसभा के लिए नामित होने से पहले कई दिनों तक चर्चा चलती रही कि कमलनाथ राज्यसभा भेजे जा सकते हैं। पांच दिन बाद छिंदवाड़ा में दर्जनों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बीजेपी का दामन थाम लिया।

16 फरवरी को मध्य प्रदेश के बीजेपी चीफ ने घोषणा की कि पार्टी के दरवाजे नाथ पिता-पुत्र के लिए खुले हैं, और अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से बहिष्कार से कई कांग्रेसी अपनी पार्टी से ‘आहत’ हैं। नकुल ने अपने सोशल मीडिया से कांग्रेस का लोगो हटा दिया। 18 फरवरी को जब पिता-पुत्र की जोड़ी दिल्ली पहुंची तो यह अभी नहीं तो कभी नहीं वाला क्षण था। क्या यह सिर्फ संयोग था? उनके खेमे ने ‘मान-सम्मान’ को ठेस पहुंचाने का राग अलापा। कमलनाथ वरिष्ठ अफवाहों को खारिज कर सकते थे। इसके बजाय, उन्होंने जंगल की आग को फैलने दिया। लेकिन इस आग की लपटें फिलहाल शांत दिख रही हैं। इसका साफ मतलब है कि कांग्रेसियों के लिए दरवाजे खुले होने की घोषणा के बावजूद भाजपा ने नाथ पिता-पुत्र के प्रति गर्मजोशी नहीं दिखाई। कैलाश विजयवर्गीय ने दो टूक कहा कि बीजेपी को नाथ की जरूरत नहीं है। 21 फरवरी को जब यह सीएम मोहन यादव छिंदवाड़ा आए तो नकुल ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इसके तुरंत बाद सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो गए। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कांग्रेस का एक वर्ग फिर से मजबूत स्थिति में आ गया है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश को 29-0 से जीतने का संकल्प लिया है। 2023 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के अगले दिन, कमलनाथ बेटे नकुल के साथ शिवराज सिंह चौहान के दरवाजे पर पहुंचे। विडंबना यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के तुरंत बाद सिंधिया ने एक शाम अपनी कार चौहान के आवास की ओर मोड़ दी थी। एक साल बाद वो बीजेपी के खेमे में चले गए।

भाजपा के लिए नाथ कोई बड़ी उपलब्धि नहीं हो सकते हैं, लेकिन एक बहुत मूल्यवान व्यक्ति जरूर हैं क्योंकि वो इंदिरा युग के कांग्रेस नेताओं में से आखिरी हैं। हालांकि, बीजेपी को नाथ को लेकर अपने सिख मतदाताओं को समझाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि 1984 के दंगों की छाया अभी भी उन्हें परेशान करती है। क्या भाजपा अपने सबसे बड़े समर्थन आधारों में से एक को नाराज करने का जोखिम उठा सकती है, खासकर जब किसान फिर से मैदान में उतर गए हैं?

बीजेपी के लिए नाथ संपत्ति के बजाय बोझ भी साबित हो सकते हैं। कमलनाथ को राजभवन भी नहीं भेजा जा सकता है। वैसे भी, भाजपा मध्य प्रदेश में अपने दिग्गजों की लगातार बढ़ती संख्या, विशेषकर कांग्रेस से आए नेताओं की महत्वाकांक्षाओं से जूझ रही है। फिर सिंधिया के साथ नाथ का समीकरण भी देखना होगा। 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की जीत को राहुल गांधी ने ‘उत्साह पर अनुभव की जीत’ समझकर सीएम की कुर्सी कमलनाथ को सौंप दी तो ग्वालियर के वंशज सिंधिया निराश हो गए।

राज्यसभा सीट को लेकर कोने में धकेल दिए गए सिंधिया ने आखिर कह ही दिया, ‘अब बहुत हो गया।’ जुलाई 2020 में अपने सहयोगियों को शिवराज के नेतृत्व वाली भाजपा कैबिनेट में विभागों का बड़ा हिस्सा दिलाने के बाद सिंधिया दहाड़े, ‘कमलनाथ और दिग्विजय सुनो, टाइगर जिंदा है।’ तब नाथ ने उन्हें ‘पेपर टाइगर’, ‘सर्कस टाइगर’ कहकर उनका मजाक उड़ाया था। यदि अनुभव और उत्साह एक ही खेमे में वापस आ गए, तो भाजपा को यह भी लग सकता है कि ये कांग्रेसी क्षत्रप उनके यहां भी दो ध्रुव न बन जाएं।क्या तूफान खत्म हो गया है? किसी लिहाज से नहीं। राहुल गांधी की यात्रा 2 मार्च को एमपी पहुंचने की उम्मीद है। कमल नाथ प्रकरण अभी खत्म नहीं हुआ है।