क्या जनविश्वास रैली से तेजस्वी यादव का बढ़ गया है मान?

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वर्तमान में जनविश्वास रैली से तेजस्वी यादव का मान बढ़ चुका है! राष्ट्रीय जनता दल राजद की रविवार को पटना में हुई रैली को इंडी अलायंस के प्रमुख राजनीतिक दलों का न सिर्फ पूरा समर्थन मिला, बल्कि बड़े नेताओं ने शिरकत भी की। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी के अलावा भाकपा के डी राजा, माकपा के सीताराम येचुरी, सीपीआई एमएल के दीपांकर भट्टाचार्य और समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव भी पहुंचे थे। राजनीति से सरोकार रखने वाले लालू परिवार के पांच सदस्य भी मंच पर मौजूद थे। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी पूर्व सीएम राबड़ी देवी, बेटी मीसा भारती के अलावा दोनों बेटे- तेजस्वी और तेज प्रताप तो रैली के आयोजक ही थे। 20 फरवरी से एक मार्च तक बिहार में जन विश्वास यात्रा के बाद तेजस्वी ने तीन मार्च को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जन विश्वास रैली का आयोजन किया था। रैली में उमड़ी भारी भीड़ से तेजस्वी यादव का उत्साह तो यकीनन बढ़ा होगा। साथ ही पस्त पड़े इंडी अलायंस के नेताओं को भी रैली की भीड़ से ऑक्सीजन मिला होगा। लालू यादव भी अपने दौर में तरह-तरह नामों से रैलियां करते रहे हैं, लेकिन वर्षों बाद आरजेडी की शायद इतनी शानदार रैली पहली बार हुई है। रैली की सफलता का श्रेय सीधे-सीधे तेजस्वी यादव को ही जाएगा, क्योंकि इसके लिए उन्होंने बिहार में 10 दिनों का पहले तूफानी दौरा किया। रैली उन्हीं की योजना-परिकल्पना थी। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर रैली में आए लोगों को भाड़े की भीड़ बताते हैं। ऐसा होता भी है, इसलिए प्रशांत के आकलन को एकबारगी खारिज नहीं किया जा सकता है। पर, राजनीति में दशक से भी कम का सफर तय करने वाले तेजस्वी इतनी भीड़ अगर अपने दम पर जुटा पाए तो इसे कमतर आंकने की बात बेमानी लगती है।

रैली को मंच पर मौजूद तमाम नेताओं ने संबोधित किया। उम्रदराज और अनुभवी नेता भी उनमें शामिल थे। पीएम नरेंद्र मोदी की आलोचना में सबने अपनी ऊर्जा जाया की, लेकिन तेजस्वी अपने 17 महीने के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाते-बताते रहे। जनता का आशीर्वाद मिलने पर बिहार में रोजगार की भरमार के सपने दिखाते रहे। नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होने पर उन्होंने तंज तो किया, लेकिन शब्दों की मर्यादा का ख्याल रखा। मल्लिकार्जुन खरगे की तरह उनकी जुबान से न नीतीश कुमार के लिए जहर बुझे शब्द निकले और न नरेंद्र मोदी की कटु आलोचना गूंजी। खरगे के निशाने पर तो नीतीश नहीं थे, लेकिन मोदी को खरगे ने झूठों का सरदार कह दिया। तेजस्वी ने मोदी की आलोचना में भी नीतीश को ही निशाने पर रखा। उन्होंने कहा कि मोदी जी कई तरह की गारंटी दे रहे हैं। पर, क्या वे चाचा नीतीश कुमार के न पलटने की गारंटी दे सकते हैं!

पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपने भाषण में रोजगार का उल्लेख खूब किया। यानी 17 महीने नीतीश के साथ उपमुख्यमंत्री रहने की वजह से रोजगार सृजन की दिशा में उन्होंने जो काम किया, उसे ही गिनाया। इसी को आधार बना कर उन्होंने जनता से आशीर्वाद भी मांगा। तेजस्वी की पूरी कवायद से एक संकेत साफ निकल कर सामने आया कि उन्हें दिल्ली की बजाय बिहार की अधिक चिंता है। रैली की भीड़ भी यही बोलती रही कि तेजस्वी मने नौकरी। तेजस्वी ने 10 लाख सरकारी नौकरी का जो वादा 2020 के विधानसभा चुनाव में किया था, उस पर सरकार में रहते कैसे उसे उसी नीतीश कुमार से पूरा कराया, जिसे तब नीतीश ने यह कह कर मजाक उड़ाया था कि इसके लिए पैसे कहां से लाएंगे। बिहार में अगले साल विधानसभा का भी चुनाव होना है। इसलिए अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनाव को उसका पूर्वाभ्यास माना जा सकता है। 2019 में बिहार की 40 में 39 सीटें एनडीए ने नरेंद्र मोदी के नाम पर जीत ली। हालांकि साल भर बाद यानी 2020 के असेंबली चुनाव में उस तरह की उत्साहजनक कामयाबी एनडीए को नहीं मिली। हां, सरकार बनाने का बहुमत जरूर मिल गया था। तब तेजस्वी के महागठबंधन की उपलब्धि भी कम नहीं थी। अपनी मेहनत से महागठबंधन ने 110 सीटें जीत ली थीं। महज 12-13 विधायकों की कमी से वे सरकार बनाने से चूक गए। बाद में अपने कौशल से तेजस्वी ने एआईएमआईएम के चार विधायक झटक कर महागठबंधन विधायकों की संख्या 114 तक पहुंचा दी। हालांकि कांग्रेस और आरजेडी के सात विधायकों ने हाल ही में पाला बदल लिया है। खैर, तेजस्वी ने नौकरी के मामले में जो लकीर खींची है, उससे तो यही लगता है कि अब बिहार की चुनावी लड़ाई इसके ही इर्द-गिर्द घूमेगी। ऐसा हुआ तो तेजस्वी की तपस्या रंग ला सकती है।