आखिर लंबे समय के बाद वापस एनडीए में क्यों लौट रहे हैं पटनायक?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर लंबे समय के बाद पटनायक एनडीए में वापस क्यों लौट रहे हैं! लोकसभा चुनाव में एनडीए के 400 पार का नारा देने के बाद बीजेपी ने सभी पत्ते खोल दिए हैं। एनडीए के कुनबे में पुराने बिछड़े सहयोगियों को शामिल किया जा रहा है। बिहार में नीतीश कुमार के बाद ओडिशा में नवीन पटनायक से भी दोबारा दोस्ती हो गई है। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से भी बातचीत चल रही है, जो कृषि कानून के विरोध में कुनबा छोड़कर चले गए थे। इन चुनावी दोस्ती में ओडिशा की गलबहियां गजब की है, जहां 25 साल से सत्ता में बीजेडी 15 साल बाद फिर से गठबंधन में लौट रही है। 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजू जनता दल ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था। इसके बाद बीजेपी ने ओडिशा में विपक्ष की भूमिका बखूबी निभाई। 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर ओडिशा की कुल 21 में से 8 सीटें जीती थीं। बीजेडी को 12 सीटों पर जीत मिली थी। एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। विधानसभा में भी बीजेपी के 23 विधायक हैं। फिर लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी-बीजेडी क्यों साथ आई? 15 साल पहले बीजू जनता दल एनडीए से अलग हो गया। इसके बाद बीजेपी और बीजेडी आमने-सामने आ गए। नवीन पटनायक केंद्र की कांग्रेस सरकार के साथ भी नरम रुख बनाए रखा। 2014 में नरेंद्र मोदी के उत्थान के बाद बीजेपी ने ओडिशा में आक्रमक रणनीति बनाई और कांग्रेस को विपक्ष से बेदखल कर दिया। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने अकेले 8 सीटें जीतकर अपनी ताकत का एहसास कराया। इस चुनावी जंग के बीच नवीन पटनायक मंझे हुए राजनेता की तरह केंद्र से रिश्ते बनाए रखे। उन्होंने नरेंद्र मोदी को संसद में नोटबंदी, कश्मीर से 370 हटाने के विधेयक, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, जीएसटी बिल और दिल्ली अधिनियम बिल पर समर्थन दिया था। सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर जब विपक्षी पार्टियां नरेंद्र मोदी से सबूत मांग रही थी, तब बीजेडी ने खुले तौर पर सरकार को समर्थन दिया। 2017 और 2022 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेडी के सांसद ने एनडीए के प्रत्याशियों को वोट दिया। हालांकि इसके बाद भी ओडिशा में दोनों दलों ने दूरी बनाए रखी।

2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने खुद के लिए 370 सीट और 50 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इस टारगेट को हासिल करने के लिए बीजेपी दो स्तर से प्लानिंग की है। पहला, बीजेपी खुद ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दूसरा वोटों के विभाजन रोकने के लिए राज्यों में क्षेत्रीय दलों से समझौता किया है। बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, असम, आंध्रप्रदेश में बीजेपी ने नए दोस्त चुन भी लिए। ओडिशा में भी उन्होंने पुराने पार्टनर से दोस्ती की, जिसके साथ उनका पुराना अनुभव शानदार रहा है।दोनों पार्टियों के बीच 11 साल तक गठबंधन रहा और ओडिशा में उनका दबदबा रहा। हर चुनाव में करीब 50 फीसदी वोट गठबंधन ने हासिल किए। 1998 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल एक साथ लड़े थे। बीजेडी ने 12 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 पर जीत हासिल की। उनका वोट शेयर कुल मिलाकर 48.7 प्रतिशत था। बीजेडी को 27.5 और भाजपा का 21.2 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद दोनों दलों की ताकत बढ़ती गई। लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक का असर नजर आया तो विधानसभा में नवीन पटनायक बाजी जीतते रहे। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 32.49 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजू जनता दल ने 44.71 प्रतिशत वोट हासिल किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 38.4 प्रतिशत वोट मिले थे और 12 सीटें जीतने वाली बीजेडी 42.8 प्रतिशत वोट मिले थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बीजेडी सुप्रीमो नवीन पटनायक के संबंध मधुर ही रहे हैं। पिछले 10 साल में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे का सम्मान रखा। इसका असर यह रहा कि नवीन पटनायक ओडिशा में बिना टेंशन शासन चलाते रहे। अब 25 साल के शासन के बाद राज्य में एंटी इकंबेंसी का असर हो सकता है, इसलिए बीजेडी ने समझौते के बाद राज्य के मजबूत विपक्ष को अपने पाले में कर लिया है। सीएम नवीन पटनायक के विश्वासपात्र पूर्व आईएएस अधिकारी वीके पांडियन ने भाजपा के केंद्रीय नेताओं के साथ साथ डील पर चर्चा की। 2019 में ही ओडिशा विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। सूत्रों के अनुसार, अब दोनों दलों ने समझौते का फॉर्मूला बनाया है, इसके तहत बीजेपी ओडिशा में 12 और बीजू जनता दल 9 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। विधानसभा में कुल 147 सीटें हैं, जिनमें 100 सीटों पर बीजेडी चुनाव लड़ेगी और भाजपा सिर्फ 47 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। इस फॉर्मूले से अगर जीत मिली तो राज्यसभा में भी दोनों दलों को फायदा हो सकता है।