क्या बीजेपी का 400 पार वाला सपना हो पाएगा पूरा?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बीजेपी का 400 पार वाला सपना पूरा हो पाएगा या नहीं! बिहार में जेडीयू और उत्तर प्रदेश में आरएलडी एनडीए का हिस्सा हो गए हैं। एनडीए की अगुवा बीजेपी अब ओडिशा में बीजेडी और आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ गठबंधन करने जा रही है। इसके साथ ही, अटल-आडवाणी युग का पुराना समूह फिर से आकार ले रहा है। हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए-I की सरकार बनी तो उसकी नींव सहयोगी 24 दलों पर ही टिकी थी। अब स्थितियां वैसी नहीं हैं। अब ये सहयोगी सरकार की नींव नहीं बल्कि मीनारें बनेंगे। भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनावों में 400 से अधिक सीटों के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन सहयोगियों की जरूरत है। हालांकि बीजेपी को 2014 के आम चुनावों में 182 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला था, लेकिन उसने गठबंधन धर्म का पालन किया और एसएडी, टीडीपी और शिव सेना जैसे गठबंधन दलों के सदस्यों को शामिल किया। लेकिन कुछ ही महीनों में यह स्पष्ट हो गया कि एनडीए के इन सहयोगियों के पास मोदी सरकार के लिए कुछ नहीं है और विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगियों के बीच दरारें दिखाई दीं।एनडीए संयोजक का पद कई सालों तक जेडीयू के पास रहा और जॉर्ज फर्नांडिस के बाद शरद यादव ने यह भूमिका निभाई थी। हालांकि, 2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ संबंध तोड़ लिए तो यह पद खाली हो गया। तब समन्वय की जिम्मेदारी बीजेपी ने अपने कंधों पर ही उठा ली। टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने संयोजक की भूमिका में आने की थोड़ी कोशिश की, लेकिन भाजपा ने उन्हें आसानी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बीजेपी को 370 का आंकड़ा पार करने के लिए लंबे समय से खोए कुछ सहयोगियों को वापस लाने की जरूरत महसूस हुई है। इसीलिए नए सहयोगियों की तलाश हो रही तो विरोधी दलों के नेताओं को भी लुभाया जा रहा है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पूर्व सहयोगियों के साथ संबंधों का नवीनीकरण सरकार बनाने के लिए है, फिर भी यह एक बहुत ही सहजीवी संबंध है। आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बीजेपी की राजनीतिक मौजूदगी या तो कमजोर है या वह दूसरी भूमिका निभाती है।टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और बीजेडी के शीर्ष नेता नवीन पटनायक, दोनों ही बीजेपी के साथ गठबंधन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं। टीडीपी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा थी, हालांकि वह सरकार में शामिल नहीं हुई और लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए समझौता कर लिया। फिर 2014 में टीडीपी नरेंद्र मोदी सरकार का हिस्सा बन गई। चूंकि आंध्र प्रदेश में भाजपा की शायद ही कोई राजनीतिक उपस्थिति है, इसलिए गठबंधन से दोनों पार्टियों को मदद मिलती है।

कंधमाल जिले में 2008 के दंगों के बाद बीजद ने एनडीए छोड़ दिया था, जिसमें कथित हिंदुत्व समर्थकों ने ईसाइयों पर हमला किया था। गठबंधन बचाने की शीर्ष नेताओं की कई कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक नहीं माने। ओडिशा के तटीय और आदिवासी क्षेत्रों में बीजद की मौजूदगी आज भी काफी मजबूत है। 2019 के आम चुनाव में बीजेपी 21 में से 8 सीटें जीतने में कामयाब रही। भाजपा-बीजद गठबंधन से भगवा पार्टी को लोकसभा में और पटनायक को विधानसभा चुनाव में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश और ओडिशा में विधानसभा चुनाव आम चुनाव के साथ ही होंगे।

कथित तौर पर शिरोमणि अकाली दल एसएडी के साथ बैक चैनल बातचीत भी चल रही है और चूंकि इस बार किसान आंदोलन को 2020-21 के विरोध प्रदर्शनों जैसी ताकत नहीं मिल पाई, इसलिए दोनों दलों के बीच पंजाब में 13 लोकसभा सीटों के लिए सहमति बनने की संभावना है। महाराष्ट्र में शिवसेना से अलग हुआ धड़ा भाजपा और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के साथ गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहा है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू एनडीए में वापस आ गई है और इससे आम चुनाव में बिहार में बीजेपी को काफी फायदा होगा। कर्नाटक में जेडीएस पिछली एनडीए सरकार का हिस्सा नहीं था, वो भी एनडीए में शामिल हो गया है। छोटी पार्टियों में बीजेपी पहले ही आरएलडी के साथ गठबंधन कर चुकी है तो तमिल मनीला कांग्रेस मूपनार एनडीए का हिस्सा है, जबकि एआईएडीएमके का ओ पनीरसेल्वम गुट इसमें शामिल होने का इच्छुक है।

पूर्व सहयोगियों के साथ इन गठजोड़ और अन्य दलों से जीतने योग्य नेताओं को लुभाने का उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाना है।  2014 में स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ ऐसा व्यवहार किया था जैसे वह पार्टी से बाहर हो। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में बीजेपी इन सहयोगियों के साथ गठबंधन धर्म का कितना पालन करेगी।