वर्तमान में भारत का नजरिया चीन के प्रति सख्त हो चुका है! भारत की तरफ से हाल ही में अपनी चीन से सटी सीमा पर 10 हजार सैनिकों की तैनाती की खबर आई थी है। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में चीन के साथ लगी अपनी 532 किलोमीटर लंबी सीमा की सुरक्षा के लिए यह कदम उठाया है। भारत के इस कदम पर चीन की तीखी प्रतिक्रिया आई है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा है कि सीमा पर सैन्य तैनाती बढ़ाने का भारत का कदम स्थिति को सामान्य करने के दोनों देशों के प्रयासों के लिए बिल्कुल उलट है। भारत के इस कदम को सीमा पर अपनी स्थिति मजबूत करने के साथ ही चीन पर दबाव बनाने के कदम के रूप में भी देखा जा रहा है। हालांकि, सैनिकों की तैनाती को लेकर आधिकारिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की गई थी। भारत ने चीन के साथ सीमा विवाद शुरू होने और गलवान में हिंसा के बाद चीन को लेकर अपनी रणनीति को अधिक आक्रामक किया है। भारत के विदेश मंत्री देश के साथ ही विदेशी दौरों पर भी चीन को आईना दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। दूसरी तरफ भारत की तरफ से लगातार सैन्य साजो सामान के साथ ही मॉर्डन हथियारों की खरीद को बढ़ाया गया है। इसके अलावा सीमावर्ती क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत किया गया है। इसमें भारत किसी भी तरह से चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बैकफुट पर नजर नहीं आ रहा है। भारत खुले रूप से चीन पर यथास्थिति को बदलने की बात कहता रहा है। हालांकि, दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने को लेकर लगातार सैन्य स्तर की वार्ता चल रही है। ऐसे में भारत की रणनीति चीनी दबाव को कुंद करने की है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 2020 में सीमाओं पर हिंसा के लिए चीन को फिर जिम्मेदार ठहराया। विदेश मंत्री ने अपने हाल के जापान के दो दिन के दौरे पर कहा कि चीन ने भारत के साथ लंबे समय से कायम लिखित समझौतों का पालन नहीं किया। जयशंकर ने कहा कि हिंद-प्रशांत में एक बहुत बड़ा शक्ति परिवर्तन वास्तविकता है। उन्होंने कहा कि जब क्षमताओं और प्रभाव तथा संभवतः महत्वाकांक्षाओं में बहुत बड़े बदलाव होते हैं, तो सभी महत्वाकांक्षाएं और रणनीतिक परिणाम भी जुड़े होते हैं। जयशंकर ने कहा कि अब, यह कोई मुद्दा नहीं है कि आपको यह पसंद है या आपको यह पसंद नहीं है। वहां एक वास्तविकता है, आपको उस वास्तविकता से निपटना होगा। विदेश मंत्री ने कहा कि आदर्श रूप से, हम मानते हैं कि हर कोई कहेगा, ठीक है, चीजें बदल रही हैं, लेकिन इसे जितना संभव हो उतना स्थिर रखना चाहिए। जयशंकर ने कहा कि दुर्भाग्य से, हमने चीन के मामले में पिछले दशक में ऐसा नहीं देखा है। उदाहरण के लिए, 1975 से 2020 के बीच, 45 साल में सीमा पर कोई हिंसा नहीं हुई और 2020 में हालात बदल गए।
जयशंकर ने एक सवाल पर कहा कि हम कई चीजों पर असहमत हो सकते हैं, लेकिन जब कोई देश किसी पड़ोसी के साथ लिखित समझौतों का पालन नहीं करता है, तो मुझे लगता है… तब रिश्ते की स्थिरता पर सवालिया निशान खड़ा हो जाता है और ईमानदारी से कहूं तो इरादों पर सवाल उठता है। इससे पहले पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से जारी सैन्य टकराव के बीच जयशंकर ने दिल्ली में कहा था कि चीन को सीमा प्रबंधन समझौतों का पालन करना चाहिए। उनका कहना था कि भारत-चीन संबंधों में सुधार के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति होनी चाहिए। अंततः भारत और चीन के बीच संबंधों में संतुलन होना चाहिए। जयशंकर ने चीन से निपटने को लेकर एक व्यापक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि भारत ने अतीत में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का उतना प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया, जितना वह कर सकता था।
जापान में ही विदेश मंत्री ने कहा कि आजादी मिलने के तुंरत बाद, हमने आक्रमण देखा, हमारी सीमाओं में बदलाव की कोशिश हुई और बल्कि आज भी भारत के कुछ हिस्सों पर एक अन्य देश का कब्जा है, लेकिन हमने इस पर दुनिया को यह कहते नहीं देखा कि चलो हम सभी भारत का साथ दें। जयशंकर ने यह भी कहा था कि आज हमें बताया जा रहा है कि यह सिद्धांतों का मामला है। काश, मैं यह सिद्धांत पिछले 80 वर्ष में देखता। मैंने इन सिद्धांतों को मनमाने ढंग से इस्तेमाल करते हुए देखा है। उन्होंने कहा कि मैं कहूंगा कि हमारे साथ अन्याय किया गया। मैं इसकी पैरवी नहीं कर रहा हूं कि हर किसी के साथ ऐसा किया जाना चाहिए। हमारा रुख बहुत स्पष्ट रहा है।एलएसी के पास पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद 5 मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा हो गया था। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के संबंधों में काफी गिरावट आई। यह कई दशकों में दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था। भारत लगातार कहता रहा है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति नहीं होगी तब तक चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते।