आखिर क्या है मध्यप्रदेश के भोजशाला का इतिहास?

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आज हम आपको मध्यप्रदेश के भोजशाला का इतिहास बताने जा रहे हैं! हाईकोर्ट के फैसले के बाद धार जिले स्थित भोजशाला परिसर में गहमागहमी बढ़ गई है। हिंदू संगठन के लोग वहां जश्न मना रहे हैं। वहीं, दूर-दूर से लोग अब भोजशाला को देखने आने लगे हैं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद भोजशाला में पहले की तुलना में गहमागहमी बढ़ गई है। हिंदू संगठन के लोग हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे थे। भोजशाला परिसर का विवाद 800 साल पुराना है। यहां के खंभों पर हिंदू धर्म से जुड़ी आकृतियां हैं। इसके बाद हिंदू पक्ष कहता है कि राजा भोज द्वारा बनवाया गया है, यह भोजशाला है। वहीं, मुस्लिम पक्ष के लोग इस कमाल मौला मस्जिद बताते हैं। उनका कहना है कि हम 800 साल से यहां नमाज पढ़ रहे हैं। हमें हाईकोर्ट के फैसले पर पूर्ण विश्वास है। बनारस के ज्ञानवापी में पूजा का अधिकार दिए जाने के बाद हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट ने हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में अपनी याचिका के बीच अंतरिम आवेदन प्रस्तुत किया था। इसमें धार की भोजशाला में तथ्य और प्रमाणों के लिए ASI भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को सर्वे कराने के निर्देश देने बाबत मांग की थी। 11 मार्च 2022 को इसे लेकर फैसला आ गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि ASI के महानिदेशक या अतिरिक्त महानिदेशक के नेतृत्व में ASI के 5 या 5 से ज्यादा अधिकारियों की एक विशेष समिति बनाए। यह भोजशाला की ऐतिहासिकता का वैज्ञानिक और तकनीकी सर्वे करें। सर्वे पर एक डॉक्यूमेंट रिपोर्ट छह हफ्ते के अंदर अदालत को सौंपे।

मई 2022 में हिंदू संगठन हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की तरफ से एक याचिका लगाईं गई थी, जिसमें भोजशाला को मंदिर बनाए जाने, वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित करने, विधिवत पूजा अर्चना करने और नमाज बंद करने जैसी मांग की गई थी। जिस पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए धार की ऐतिहासिक भोजशाला का ज्ञानवापी की तर्ज पर सर्वे कराने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने सोमवार को इस मुद्दे पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को पांच विशेषज्ञों की टीम बनाने को कहा है। इस टीम को छह सप्ताह में रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपनी होगी। हिन्दू फ्रंट का मानना है कि ASI सर्वेक्षण के दौरान खुदाई में कई मूर्तियां, चिह्न और संकेत ऐसे पाए जाएंगे, जिससे यह साफ हो सकेगा कि यह मस्जिद नहीं बल्कि पूर्णतः मंदिर ही था।

हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस के संयोजक आशीष गोयल ने नवभारत टाइम्स.कॉम से बात करते हुए कहा कि लंबी मेहनत के बाद हमें सफलता मिली है। कोर्ट में हमने सारे साक्ष्य दिए हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सारे पक्षों को नोटिस जारी किया था। सारी पार्टियों ने धीरे-धीरे जवाब दिया था। पांच फरवरी 2024 में हमने एक याचिका लगाई थी कि कोर्ट भोजशाला परिसर की एक साइंटिफिक सर्वे कराए। कोर्ट ने सबकी सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वाग्देवी की मूर्ति ब्रिटिश संग्रहालय में है। इसे लाकर यहां फिर से स्थापित किया जाए। साथ ही अवैध रूप से हो रहे नमाज को बंद किया जाए। कोर्ट ने सर्वे के दौरान फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराने के निर्देश दिए हैं। हमारी मांग है कि हमें 24 घंटे 365 दिन यहां पूजा की अनुमति दी जाए। सर्वे 50 मीटर की परिधि में होगी। इसमें तमाम आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। वहीं, उन्होंने कहा कि यहां साक्ष्य की क्या जरूरत है। मंदिर के खंभों के मूर्तियां बनी हुई है। यहां चांद पीठ और सूर्य पीठ बने हुए हैं। ये चीजें हिंदू और सनातन परंपरा में होती है। ऐसे में यह निश्चित रूप से हिंदू परंपरा का केंद्र रहा है। भोजशाला का हर साक्ष्य अपने आप में बोलता है। भोजाशाल में लगी शिलालेख भी इसकी गवाही देती है। गौरतलब है कि पिछले तीन दशकों से धार की भोजशाला को लेकर कई बार हिंसा की घटनाएं और कर्फ्यू जैसे हालात भी बन चुके हैं। हर साल बसंत पंचमी पर भोजशाला को लेकर दोनों पक्षों के बीच तनाव की स्थिति बनती है। अप्रैल 2003 में कोर्ट के निर्देशों के बाद धार की भोजशाला में प्रति मंगलवार को हिंदू समाज के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। जबकि शुक्रवार को मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति होती है। वसंत पंचमी पर हिंदू समाज को पूरे दिन पूजा-अर्चना की अनुमति होती है।

वहीं, अदालत ने स्मारक अधिनियम, 1958 की धारा 16 पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसका उद्देश्य पूजा स्थलों को दुरुपयोग, प्रदूषण और अपवित्रता से बचाना है। कोर्ट ने इस धारा के तहत इसके प्राथमिक उद्देश्य को समझने के लिए पूजा स्थल के चरित्र को निर्धारित करने के महत्व पर जोर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक पूजा स्थल का चरित्र या प्रकृति निर्धारित नहीं हो जाती, तब तक मंदिर का उद्देश्य रहस्य में डूबा रहता है। कोर्ट का निर्णय इन पवित्र स्थलों के उद्देश्य के बारे में स्थिति स्पष्ट करेगी।

कोर्ट ने माना है कि स्मारक की प्रकृति और चरित्र को समझने और स्पष्ट करने की आवश्यकता है। उसने कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की जिम्मेदारी है कि वह रहस्यों को उजागर करे और स्थल से जुड़े भ्रम को दूर करे। अदालत ने यह भी नोट किया है कि राज्य सरकार और ASI ने चल रहे विवाद और उससे निपटने से जुड़ी चुनौतियों को स्वीकार किया है। अदालत के अनुसार, स्मारक से जुड़ी उलझनों और परस्पर विरोधी कहानियों को सुलझाने का काम अदालत का नहीं, बल्कि ASI का है। अदालत की ये टिप्पणियां संबंधित पक्षों द्वारा प्रस्तुत तर्कों के दौरान की गईं।