क्या उत्तर प्रदेश में मायावती का जादू खत्म हो गया है?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या उत्तर प्रदेश में मायावती का जादू खत्म हो गया है या नहीं! कभी यूपी की सियासत का अहम केंद्र रही बसपा और उसकी सुप्रीमो मायावती। लेकिन अब बसपा का सियासी दायरा सिमटता जा रहा है। खुद मायावती बीते आठ साल से किसी सदन की सदस्य नहीं हैं। सहारनपुर में हुई जातीय हिंसा को उठाते हुए उन्होंने 18 जुलाई 2017 में राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। उसके बाद 2019 लोकसभा, 2022 के विधानसभा, अन्य एमएलसी और राज्यसभा के चुनाव रहे हो या फिर अब अगले महीने होने जा रहे लोकसभा चुनाव वह किसी चुनाव में मैदान में नहीं उतरीं।गौतमबुद्ध नगर जिले के गांव बादलपुर में जन्मी मायावती ने नाम सियासत में कई रिकॉर्ड बनाए हैं। इनमें यूपी की सबसे युवा, पहली दलित मुख्यमंत्री के अलावा सबसे अधिक चार बार मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम है। दरअसल, 14 अप्रैल 1984 को बसपा का गठन हुआ। लेकिन मायावती के सियासी सफर की शुरुआत वेस्ट यूपी से हुई। उन्होंने अपना पहला चुनाव 1984 में कैराना सीट से लड़ा और हार गईं।1985 में बिजनौर लोकसभा सीट उपचुनाव लड़कर भी हारी। 1987 में हरिद्वार से उपचुनाव लड़कर भी हारी। मायावती को पहली जीत 1989 के लोकसभा चुनाव में बिजनौर से मिली। वह सांसद बनी। 1996 और 2002 में वह सहारनपुर की हरौड़ा अब सहारनपुर देहात विधानसभा सीट से विधायक बनी और मुख्यमंत्री बनी। आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में बसपा का जनाधार लगातार घटता जा रहा है। मायावती भले ही यह कहें कि गठबंधन से उनकी पार्टी को नुकसान होता है लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन का सबसे ज्यादा फायदा बसपा को ही हुआ था।1996 में बसपा 6 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। तब बसपा को 20.6% फीसदी वोट मिला था। 1998 में बसपा को चार सीटें मिली। वोट प्रतिशत बढ़कर 20.9% हो गया। 1999 में बसपा को 14 सीटें मिली। वोट 22.08% हो गया। 12.88 प्रतिशत वोट मिले और 15 जनवरी 1956 को गौतमबुद्ध नगर के गांव बादलपुर में जन्म, 1977 दिल्ली में शिक्षिका के रूप में करियर की शुरुआत2004 में 19 सीटें हो गई। 24.67% वोट मिला। बसपा ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2009 में रहा। पार्टी को 20 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई और 27.42% वोट मिला। लेकिन 2014 से पार्टी की स्थिति बदलती चली गई।

बीस सांसदों वाली बसपा 2014 में एक भी सांसद नहीं जिता सकी। वोट प्रतिशत भी आठ फीसदी गिरकर 19.77% फीसदी रह गया। 1996 के बाद बसपा का ये सबसे बुरा प्रदर्शन था। साल 2019 में बसपा ने सपा से गठबंधन किया, जिससे उसे फायदा हुआ। ज़ीरो सीटों वाली बसपा ने यूपी में दस सीट जीत ली। इस चुनाव में बसपा को सपा के साथ गठबंधन कर 19.43% ही वोट मिला।इन दस में वेस्ट यूपी की चार सीट सहारनपुर, नगीना, अमरोहा और बिजनौर जीती थी। मेरठ, गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर में दूसरे नंबर पर रही। बता दें कि मायावती को पहली जीत 1989 के लोकसभा चुनाव में बिजनौर से मिली। वह सांसद बनी। 1996 और 2002 में वह सहारनपुर की हरौड़ा अब सहारनपुर देहात विधानसभा सीट से विधायक बनी और मुख्यमंत्री बनी। आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में बसपा का जनाधार लगातार घटता जा रहा है। मायावती भले ही यह कहें कि गठबंधन से उनकी पार्टी को नुकसान होता है लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन का सबसे ज्यादा फायदा बसपा को ही हुआ था।1996 में बसपा 6 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। तब बसपा को 20.6% फीसदी वोट मिला था। 1998 में बसपा को चार सीटें मिली। वोट प्रतिशत बढ़कर 20.9% हो गया। 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा अकेले मैदान में उतरी और उसे सिर्फ 12.88 प्रतिशत वोट मिले और 15 जनवरी 1956 को गौतमबुद्ध नगर के गांव बादलपुर में जन्म, 1977 दिल्ली में शिक्षिका के रूप में करियर की शुरुआत

14 अप्रैल 1984 में बसपा की स्थापना के साथ शिक्षिका की नौकरी छोड़कर राजनीतिक सफर की शुरुआत, अप्रैल 1984 में कैराना से लड़ा पहला विधानसभा चुनाव, 1989 में बसपा ने चुनाव में बीस सांसदों वाली बसपा 2014 में एक भी सांसद नहीं जिता सकी। वोट प्रतिशत भी आठ फीसदी गिरकर 19.77% फीसदी रह गया। 1996 के बाद बसपा का ये सबसे बुरा प्रदर्शन था। साल 2019 में बसपा ने सपा से गठबंधन किया, जिससे उसे फायदा हुआ। ज़ीरो सीटों वाली बसपा ने यूपी में दस सीट जीत ली। इस चुनाव में बसपा को सपा के साथ गठबंधन कर 19.43% ही वोट मिला। 13 सीटें, बिजनौर से जीत कर बनी सांसद 1995 में भाजपा के समर्थन से प्रदेश की पहली बार मुख्यमंत्री बनीवह एक सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी।