Saturday, November 9, 2024
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सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार को कैसे अनुमानित करेगा चुनाव आयोग?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार को चुनाव आयोग कैसे अनुमानित करेगा! एक समय था जब चुनावों के दौरान सड़कों से लेकर गली-मोहल्लों में कार, रिक्शा और ऑटो समेत अन्य गाड़ियों में लाउडस्पीकर लगाकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार अपने-अपने चुनावी चिह्न लगे झंडों के साथ प्रचार करते थे। डिजिटल युग में तेजी से बदलते समय में जहां पारंपरिक तरीके से किए जाने वाले चुनाव प्रचार के तरीकों को थोड़ा कम किया है, वहीं इसकी जगह सोशल मीडिया नाम का प्लैटफॉर्म तेजी से लेता जा रहा है। हर पार्टी और उम्मीदवार अपने-अपने स्तर पर सोशल मीडिया के माध्यम से भी धुआंधार प्रचार करते हैं। सोशल मीडिया के इसी माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले प्रचार और किए जाने वाले खर्चों की निगरानी करना भी चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। इससे निपटने के लिए आयोग इस बार बड़े स्तर पर काम कर रहा है। इस बारे में चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी कहा था कि हर जिले और राज्य स्तर पर बनाए गए कंट्रोल रूम के माध्यम से सोशल मीडिया समेत अन्य तमाम चुनाव प्रचार करने और आचार संहिता उल्लंघन पर निगरानी रखी जाएगी। यह राज्य के सीईओ की निगरानी में होंगी।राजनीतिक पार्टियां और उम्मीदवार सोशल मीडिया के उन तमाम प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं, जिनकी रीच आम आदमी तक बहुत ही आराम और आसानी से होती है।

उसमें लोगों को समझ में आने वाली और कोशिश की जाती है कि उन्हीं की भाषा में प्रचार की सामग्री तैयार की जाए। इसके लिए इंस्टाग्राम, यू ट्यूब, एक्स, फेसबुक, एमएमएस, वट्सऐप, विशेष प्रचार के लिए बनाए जाने वाले ऐप, टीवी, पहले से रिकॉर्ड संदेश, एआई के जरिए भी प्रचार, स्नैपचैट, ई-मेल, वेबसाइट, टीवी पर आने वाली फिल्म, सीरियल समेत न्यूज या अन्य किसी कार्यक्रम के बीच में दिए जाने वाले चुनावी विज्ञापन के अलावा सोशल मीडिया के वह तमाम माध्यम से चुनावी प्रचार किया जाता है।

सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव प्रचार करना भी आदर्श आचार संहिता के दायरे में आता है। अगर कोई राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवार सोशल मीडिया के किसी भी माध्यम से चुनाव प्रचार करता है, तो उसे ऐसा करने से पहले अपने इलाके के संबंधित चुनाव अधिकारी से इसे दिखाकर इसकी इजाजत लेनी होती है। चुनाव अधिकारी के संतुष्ट होने के बाद ही राजनीतिक दल या उम्मीदवार सोशल मीडिया पर किसी भी तरह का चुनाव प्रचार कर सकते हैं।

अगर राजनीतिक पार्टी ऐसा नहीं करती हैं तो उनके खिलाफ आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में कार्रवाई की जा सकती है। सोशल मीडिया पर प्रचार करने के लिए जो भी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार किसी टीम या स्टाफ को हायर करता है तो इसकी जानकारी और खर्चे का ब्यौरा समेत रील बनाने या अन्य प्रचार पर किए जाने वाले खर्चे की जानकारी भी चुनाव अधिकारी को बतानी होती है।

चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया समेत चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन पर निगरानी रखने के लिए देश के तमाम जिलों और स्टेट लेवल पर कंट्रोल रूम बनाए हैं। चुनावी विज्ञापन के अलावा सोशल मीडिया के वह तमाम माध्यम से चुनावी प्रचार किया जाता है।इनमें ना केवल सोशल मीडिया के तमाम प्लैटफार्म बल्कि वेब कास्टिंग, टीवी, 1950 और सी-विजिल के अलावा पीजी सेल पर निगरानी करने के अलावा यहां मिलने वाली शिकायतों के निपटारे के लिए भी काम किया जाता है। इस बारे में चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी कहा था कि हर जिले और राज्य स्तर पर बनाए गए कंट्रोल रूम के माध्यम से सोशल मीडिया समेत अन्य तमाम चुनाव प्रचार करने और आचार संहिता उल्लंघन पर निगरानी रखी जाएगी। यह राज्य के सीईओ की निगरानी में होंगी।

आयोग का कहना है कि इन कंट्रोल रूम में बैठी आयोग की आईटी एक्सपर्ट टीम राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा सोशल मीडिया पर किए जाने वाले चुनावी प्रचार की निगरानी रख रही है। बता दें कि उम्मीदवार अपने-अपने स्तर पर सोशल मीडिया के माध्यम से भी धुआंधार प्रचार करते हैं। सोशल मीडिया के इसी माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले प्रचार और किए जाने वाले खर्चों की निगरानी करना भी चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। इससे निपटने के लिए आयोग इस बार बड़े स्तर पर काम कर रहा है। यह चुनौती से भरा काम है, लेकिन टीम इसे कर रही है।

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