जब नेहरू को राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह ने दी थी चुनौती !

0
157

एक ऐसा समय था जब राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह ने नेहरू को चुनौती दी थी! राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह ने आजादी की लड़ाई में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सहयोग किया। कांग्रेस पार्टी के रामगढ़ अधिवेशन को सफल कराने में भी पूरा साथ दिया। इतना ही नहीं कामाख्या नारायण सिंह ने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपना राज उन्हें समर्पित करने का प्रस्ताव भी दिया। लेकिन देश को आजादी मिलने के कुछ ही महीने पहले उनकी पंडित जवाहर लाल नेहरू से ऐसी अनबन हुई कि जब तक कामाख्या नारायण सिंह जीवित रहे, कांग्रेस पार्टी को रामगढ़ राजा के प्रभाव वाले इलाके में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई। दूसरी तरफ रामगढ़ राजपरिवार के कई सदस्यों को पहले आम चुनाव से लेकर 1970 के दशक तक लगातार सफलता मिलती रही। अलग झारखंड राज्य गठन के बाद भी रामगढ़ राज परिवार के सदस्य सौरभ नारायण सिंह को सफलता मिली। अब भी परिवार के कई सदस्य कांग्रेस और बीजेपी से जुड़ कर सक्रिय में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। झारखंड की राजनीति के पुराने जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार बताते है कि कामाख्या नारायण सिंह आजादी की लड़ाई के अंतिम दौर में एक दिन प. जवाहर लाल नेहरू से मिलने दिल्ली पहुंचे। जिस वक्त राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह प. नेहरू से मिलने पहुंचे, उस वक्त प. नेहरू पार्टी के कुछ अन्य नेताओं के साथ चर्चा में व्यस्त थे, इस कारण राजा रामगढ़ की बातों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दे पाए। इस व्यवहार से कामाख्या नारायण सिंह प. नेहरू पर भड़क गए और उन्होंने प. नेहरू को अपने प्रभाव क्षेत्र में चुनौती देने का ऐलान कर दिया। प. नेहरू के आवास से गुस्से से बाहर निकले कामाख्या नारायण सिंह ने अलग पार्टी बनाने का फैसला लिया। 1946 में कामाख्या नारायण सिंह ने छोटानागपुर-संतालपरगना जनता पार्टी का गठन किया। पहले आम चुनाव में उन्होंने लोकसभा की जगह बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया।

रामगढ़ राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह ने खुद 1951 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक साथ चार सीटों पर जीत हासिल की। कामाख्या नारायण सिंह को अपनी पार्टी छोटानागपुर संताल परगना जनता पार्टी के टिकट पर बगोदर, पतारबार, गोमिया और बड़कागांव विधानसभा सीट से जीत मिली। वहीं उनकी पार्टी के राम नारायण सिंह पहले लोकसभा चुनाव में हजारीबाग पश्चिम सीट से विजयी रहे। जबकि 1957 के लोकसभा चुनाव में छोटानागपुर संताल परगना जनता पार्टी के तीन उम्मीदवार विजयी हुए, जिसमें चतरा से विजया राजे, गिरिडीह से कुरैशी एसए मतिन और हजारीबाग से ललित राजे लक्ष्मी विजयी रहीं। इसके अलावा 1962 के चुनाव में उनकी पार्टी के 7 सांसद हो गए और 50 विधायकों के साथ कामाख्या नारायण सिंह विपक्ष के नेता बने।

1967-68 में बिहार में जब पहली बार गैर कांग्रेस दलों की सरकार बनी, तो इसमें रामगढ़ राजा की बड़ी भूमिका रही। उनके परिवार के ही भाई कुंवर बसंत नारायण सिंह, मां शशांक मंजरी देवी, पत्नी ललिता राजलक्ष्मी और पुत्र टिकैट इंद्र जितेंद्र नारायण सिंह कई बार सांसद और विधायक बने। कामाख्या नारायण सिंह खुद बिहार सरकार में मंत्री रहे। उनके भाई कुंवर बसंत नारायण सिंह और पत्नी ललिता राजलक्ष्मी भी मंत्री बनीं। कामाख्या नारायण सिंह के सहयोग से ही हजारीबाग के कैलाशपति सिंह और रंका के गोपीनाथ सिह बिहार सरकार में मंत्री बने थे।

पुराने हजारीबाग जिले यानी चतरा, हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा, बोकारो और रामगढ़ में तो जिस किसी को भी कामाख्या नारायण सिंह ने चुनाव में खड़ा किया, वे जीतते रहे। आजादी के पहले और बाद में जिस समय कांग्रेस की तूती बोलती थी, कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता कामाख्या नारायण सिंह के खिलाफ कैंप करते, फिर भी ये चुनाव जीत जाते थे। उनका प्रभाव इतना था कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार धनबाद सहित आरा और छपरा से भी चुनाव जीतते थे। 1967 से लेकर 1970 के बीच बिहार की राजनीति में काफी उथल-पुथल रहा। इसी दौरान 6 मई 1970 को कामाख्या नारायण सिंह ने कोलकाता सिथत अपने आवास में अंतिम सासें लीं। उनके निधन को लेकर यह अफवाह उड़ाई कि कामाख्या नारायण सिंह का निधन नहीं हुआ, बल्कि संपत्ति के कई विवादों में उलझने से अपने को बचाने के लिए वे चुपचाप विदेश खिसक गए हैं। उनकी जगह किसी दूसरे मृत व्यक्ति की अंत्येष्टि की गई है। हालांकि यह बेसिर पैर की बात थी।

रामगढ़ राजपरिवार के अंतिम राजा कामाख्या नारायण सिंह की मौत के बाद कुंवर बसंत नारायण सिंह दल-बल के साथ भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए। जिसके कारण इस राष्ट्रीय पार्टी को झारखंड के इलाके में राजनीतिक जमीन की प्राप्ति हुई। बाद में भारतीय जनता पार्टी की इस क्षेत्र में राजनीतिक पकड़ मजबूत हुई। कुंवर बसंत नारायण सिंह खुद कई बार हजारीबाग लोकसभा सीट से के सांसद रहे।