आखिर उत्तराखंड में क्या है वोटरों के सियासी विचार?

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आज हम आपको बताएंगे कि उत्तराखंड में वोटरों के सियासी विचार आखिर क्या है! पिंडर के किनारे-किनारे बस पहाड़ी रफ्तार से ऊपर चढ़ रही है। बस की खिड़की एक जादुई फ्रेम सी बन गई है। सीन हर पल बदल रहे हैं। कभी कर्णप्रयाग में अलकनंदा में मिलने वाली पिंडर की चुलबुली चाल रोमांच पैदा करती है। दाएं, बाएं, सीधे, फिर दाएं, फिर बाएं.. पिंडर में क्या गजब की मस्ती और नजाकत है। पिंडर खिड़की से हटती है, तो कचनार का पेड़ दिखता है, जो इन दिनों सफेद फूलों का गुलदस्ता सा बना हुआ है। उफ्फ क्या रूप निखर आया है इस पेड़ का! खिड़की का यह फ्रेम जेहन में बस जाता है। नजर ठिठक जाती है। और आखिरी झलक तक आंखें उसका पीछा करती हैं। खिड़की से सर्र-सर्र अंदर घुसती हवा के साथ सड़क के किनारे स्कूल जाते बच्चे, पीठ पर घास के अपने से दोगुना बोझ उठाए महिलाएं, पलायन के बाद खंडहर हो चुका घर, जिसकी दीवार पर पिछले चुनाव का बीजेपी का कमल निशान अभी भी मौजूद है… सब दिख रहे हैं, मिट रहे हैं। बस की खिड़की मानो सिनेमा का पर्दा बन गया है। इस पहाड़ी राज्य का हर रूप,रंग, संघर्ष इसमें दिख रहा है। और इस लाइव फिल्म में जो चीज कुछ अंतराल के बाद आपसे बार-बार टकराती है, वह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा। ऋषिकेश से ऊपर श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग और फिर पिंडर के किनारे किनारे नारायणबगड़, थराली, देवाल और ल्वजंग तक सड़क किनारे सिर्फ पीएम मोदी के सोलो टाइप होर्डिंग लगे हैं। बीजेपी प्रत्याशियों के चेहरे उसमें नहीं हैं। उनका कहीं कोई जिक्र नहीं है। कांग्रेस का एक भी बैनर-होर्डिंग वोटिंग से हफ्तेभर पहले तक खड़ा नहीं है। हां, कभी-कभार कांग्रेस के किसी जुझारू कार्यकर्ता का अपने घर के ऊपर लगाया पार्टी का झंडा जरूर दिख जाता है। उत्तराखंड की पांच सीटों पर चुनावी हवा किस ओर बह रही है, पौड़ी गढ़वाल और टिहरी लोकसभा सीट से गुजरती इस बस की खिड़की सब कुछ दिखा रही है। समझा रही है।

सूरज ढलने से पहले बस देवाल ब्लॉक के आखिरी गांव वांण में उतार चुकी है। हवा में कुछ ठंडक है। रूपकुंड घाटी का करीब 200 परिवारों वाला यह गांव बेहद खास है। रूपकुंड का रहस्यमय रास्ता यहीं से होकर गुजरता है। बख्तावर सिंह बिष्ट गांव के अपने आंगन में बैठे हैं। गरीबी रेखा से नीचे का जीवन काट रहे हैं। कुछ बकरियां हैं। थोड़ी खेती है। गुजारे लायक आमदनी में जिंदगी की गड्डी चल रही है। मैंने सवाल किया- किसकी हवा चल रही है गांव में? मोदी की… वह मुस्कुराते हुए जवाब देते हैं। मोदी ही क्यों? वह फिर मुस्कुराते हुए दोहरा देते हैं- विश्वास है जनता का। और यहां से बीजेपी का प्रत्याशी कौन है? वह कहते हैं- नहीं पता। क्या प्रत्याशी से फर्क नहीं पड़ता? वही तो आपके प्रतिनिधि रहेंगे संसद में। आपके सुख-दुख वही तो समझेंगे… बख्तावर सिंह इस सवाल पर उलझ जाते हैं। बस मासूम मुस्कान से बात खत्म कर देते हैं। वांण गांव के बाजार की चाय की दुकान पर चुनाव की चर्चा छेड़ते हुए फिर प्रत्याशी वाला सवाल पूछता हूं। न किसी को बीजेपी उम्मीदवार अनिल बलूनी का पता है, न कांग्रेस के प्रत्याशी गणेश गोदियाल का। चुनाव में आखिर आपके लिए बड़ा मुद्दा क्या है? किसी से भी पूछ लीजिए शिकायतों-तकलीफों की पोटली खुल जाती है। इसमें बरसात में हर साल बह जाने वाली वांण से ल्वजंग की सड़क है, जो अभी तक पक्की नहीं हो पाई है। स्कूल और आयुर्वेदिक अस्पताल है, जिसमें बकौल गांववालों के कोई डॉक्टर नहीं है। एक ब्लड टेस्ट के लिए कई किलोमीटर दूर कर्णप्रयाग तक जाने की बेबसी है। और बीजेपी के स्थानीय नेताओं से तमाम शिकायतें हैं। लेकिन मोदी पर यकीन दिखता है। गजब करिश्मा है! इंदिरा का दौर भी ऐसा ही रहा होगा शायद! इस आखिरी गांव में मोदी का वह कद दिखता, जो विपक्ष को चुनाव प्रचार में हताशा के गर्त में धकेल गया है। धामी सरकार और स्थानीय नेताओं से भारी नाराजगी के बाद भी कमल से मोहभंग वाली स्थिति नहीं दिखती है। वजह बस मोदी हैं। पर क्या पीएम मोदी अपने प्रति इस अटूट आस्था को समझते होंगे? और क्या बीजेपी को भी इस बात का अहसास होगा कि भविष्य में मोदी के चेहरे के बिना यह खफा वोटर उसके साथ क्या बर्ताव करने वाला है?

बस वापसी में पिंडर के किनारे-किनारे ऋषिकेश की तरफ नीचे उतर रही है। नंदादेवी वालों की यह प्राइवेट बस इस पूरे इलाके लिए सस्ते सफर का एकमात्र साधन है। सुबह साढ़े 5 बजे चलकर शाम 7 बजे हरिद्वार पहुंचाती है। यह बस छूटी, तो लगभग दोगुने किराए में आप आगे पहुंच पाएंगे। यह बस सबका ख्याल रखती है। कोई भी हाथ दे, उसके लिए रुकती है। सबको साथ लेकर चलती है। मन में ख्याल आता है कि यह बस चुनाव लड़े तो बंपर बहुमत से जीत जाए। वांण से ल्वजंग की सड़क बस नाम भर की है। किसी तरह पहाड़ को काटकर गाड़ी चलने लायक बना दिया गया है। सड़क कई जगह इतनी खतरनाक ढंग से टूटी है कि कई फीट नीचे की खाई देखकर शरीर कांप जाता है। थराली तक सड़क की हालत देखकर गडकरी याद आते हैं। एक्सप्रेस-वे वाले देश में सड़कें ऐसी भी हैं, यह देखना हो तो यहां आना चाहिए।

फिर वे नेताओं-सरकारों से अपनी शिकायतों का पिटारा खोलने लगते हैं। चुनाव होते हैं, तो सब आते हैं, हमें वोट दो। जब कुर्सी मिल जाती है, तो सब भूल जाते हैं। चाहे कांग्रेस हो, या फिर कोई और हो। इस सड़क की ही हालत देखिए। आप तो आखिरी गांव वांण से आ रहे हो। जमीनी हकीकत पता चल गई होगी आपको। मैं हामी भरता हूं। लेकिन उनसे हुई बातचीत आभास दिला रही है कि यह गुस्सा बस दूध के उबाल जैसा ही है। 19 अप्रैल तक शायद ठंडा हो जाएगा। इस इसी बीच फिर खिड़की के फ्रेम में पीएम मोदी नजर आ जाते हैं। इस बार वे नई संसद में सेंगोल उठाए हुए हैं। बैनर पर लाइन लिखी है- एक भारत, श्रेष्ठ भारत।