क्या बिहार में जीत जातिगत आधारित होगी ?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बिहार में जीत जातिगत आधारित होगी या नहीं! क्या बिहार में इस बार राजनीतिक दल लोकसभा का चुनाव कुछ अलग तरीके से लड़ रहे हैं। आखिर क्यों पुराने समीकरण इस बार नहीं दिखाई पड़ रहे जैसा पहले के चुनावों में दिखता था। बीजेपी की ओर से इस बार बिहार में ऐसा क्या किया गया है कि विपक्षी दल खासकर आरजेडी की ओर से जाति जनगणना पर पहले वाला जोर नहीं दिखाई पड़ रहा। आरजेडी की रणनीति में भी इस बार सिर्फ M और Y समीकरण ही नहीं है। 19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग है और अब तक हुए चुनाव प्रचार और टिकटों के बंटवारे को देखा जाए तो यह तस्वीर साफ है कि चुनाव भले ही लोकसभा का है लेकिन हर सीट के लिए अलग समीकरण खासकर जातिगत समीकरण। बिहार में इस बार पिछड़ा बनाम अगड़ा के व्यापक ढांचे में जाति वैसे शामिल नहीं है जैसा कि हाल तक बिहार में समझा जाता था। जो पैटर्न दिखाई पड़ रहा है उससे ऐसा लगता है कि एक चुनावी क्षेत्र से दूसरे चुनावी क्षेत्र तक जाते-जाते जाति वाला समीकरण कुछ अलग तरीके से चल रहा है। बिहार में जाति वाले मिथक को तोड़ने का प्रयास बीजेपी की ओर से एक दशक पहले ही शुरू हो गया था। पारंपरिक जातिगत आधिपत्य को तोड़ने की क्षमता का एहसास करने वाली बीजेपी ने एक दशक पहले व्यक्तिगत समूहों तक अपनी पहुंच शुरू की थी। देखा जाए तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के साथ-साथ बीजेपी के सहयोगी उपेन्द्र कुशवाहा दोनों कुशवाहों का प्रतिनिधित्व करते हैं, तो कुर्मियों को जद (यू) के नीतीश कुमार के माध्यम से एक छतरी के नीचे लाया गया है। एलजेपी (रामविलास) नेता चिराग पासवान के जरिए दुसाध जाति जबकि मुसहरों का प्रतिनिधित्व एनडीए के सहयोगी और बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी कर रहे हैं।

लंबे समय से बिहार में लालू यादव की पार्टी आरजेडी केवल दो समूह मुसलमानों और यादवों के साथ जाती रही है। अब आरजेडी की मजबूरी कहें या उसकी रणनीति जिसके बाद MY समीकरण में बदलाव आया है। बिहार की बदली सियासत को तेजस्वी के इस बयान से भी समझा जा सकता है। तेजस्वी यादव ने कुछ दिनों पहले कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि आरजेडी MY(मुस्लिम-यादव ) की पार्टी है। मैं कहता हूं MY के साथ ही आरजेडी BAAP की भी पार्टी है। तेजस्वी यादव ने कहा कि BAAP का अर्थ है B से बहुजन, A से अगड़ा (अगड़ी जाति), A से आधी आबादी (महिला), और P Poor यानी गरीब।

तेजस्वी अब वह कहते हैं कि हम ए टु जेड पार्टी हैं। मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी और मल्लाहों के बीच उसके आधार का इंडिया गठबंधन में प्रवेश एक बोनस है, साथ ही ओबीसी और दलित समर्थन भी है जो राजद की सहयोगी सीपीआई (एमएल) भी है। इन जातीय गणनाओं के बीच चर्चा में आने वाले एकमात्र राष्ट्रीय नेता मोदी हैं। राजद की उम्मीदवार सूची भी उसके नए दृष्टिकोण को दर्शाती है, जिसमें जाति समूहों के कई नाम शामिल हैं जिन पर भाजपा की नजर है। उदाहरण के लिए, पार्टी जिन 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उनमें से चार पर कुशवाहा जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। पहले चरण में राजद के कुशवाहा उम्मीदवार औरंगाबाद में अभय कुमार कुशवाहा और नवादा में श्रवण कुशवाहा हैं। गया से, एक आरक्षित सीट पर राजद ने कुमार सर्वजीत पासवान को मैदान में उतारा है, इस उम्मीद में कि वह कुछ पासवान वोटों को आरजेडी की ओर खीचेंगे और इसे एमवाई समीकरण में जोड़ देंगे। मांझी गया से पिछले तीन लोकसभा चुनाव हारे हैं। इस बार, उन्हें उम्मीद है कि वे भाजपा के पारंपरिक उच्च जाति के वोटों के साथ-साथ अपने मुसहर वोटों और पासवान वोटों का एक बड़ा हिस्सा भी जोड़ लेंगे।

माना जाता है कि गया में पासवान और मुसहर दलितों के दो सबसे बड़े समूह हैं, जिनकी लगभग 30% आबादी है। बिहार की चौथी सीट औरंगाबाद में 19 अप्रैल को मतदान है, जहां आरजेडी ने लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। पहले बीजेपी के लिए आसान सीट के रूप में इसे देखा जा रहा था, उसने अपने तीन बार के सांसद सुशील कुमार सिंह को उतारा है। सुशील सिंह जो कि एक राजपूत हैं वहीं राजद से अभय कुमार कुशवाह हैं। यादवों के अलावा कुशवाहों की भी महत्वपूर्ण उपस्थिति है, हालांकि राजपूत वोटर्स की संख्या अधिक है। पहले चरण के साथ शुरू यह लड़ाई आगे के चरणों में और दिलचस्प होगी।