क्या उत्तर प्रदेश के मुसलमान हो गए हैं चुप ?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या उत्तर प्रदेश की मुसलमान अब चुप हो गए हैं! आसमान साफ है। तेज धूप की बारिश हो रही है। मेरठ में घंटाघर के एक कोने में पसीने से लथपथ और बेदम लोगों का एक समूह भाजपा के झंडे लहरा रहा है। पार्टी के लिए वोट मांग रहा है। बाहर उठ रहे शोर और जुलूस को देखकर मेटल वर्क्स फैक्ट्री से कर्मियों का एक समूह बाहर निकला। जैसे उन्होंने चुनावी प्रचार कर रहे लोगों की भीड़ देखी, वापस मुड़कर जाने लगा। मुजम्मिल अब्बास नामक लड़के ने कहा कि इस सबसे दूर रहना ही बेहतर है। लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण के चुनाव की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है। यूपी की आठ सीटों पर 19 अप्रैल यानी शुक्रवार को वोटिंग होगी। पश्चिमी यूपी की इन आठ सीटों पर अगर 2019 के रिजल्ट देखें तो स्थिति समझ में आएगी। इस चरण की पांच सीटों पर 2019 में भारतीय जनता पार्टी को हार झेलनी पड़ी थी। सपा-बसपा गठबंधन को तब बड़े स्तर पर सफलता मिली थी। लेकिन, इस बार के चुनाव में सबसे अहम है मुस्लिम मतदाताओं की चुप्पी। राजनीतिक रैलियों से लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट हो या गांव के आसपास चौपाल की चर्चाओं में मुसलमानों की चुप्पी साफ देखी जा रही है। अलीगढ़ में एक कंप्यूटर प्रशिक्षण संस्थान चलाने वाले 38 वर्षीय मो. कामरान कहते हैं कि पिछले वर्षों के विपरीत मुसलमानों को लेकर बहुत अधिक नुक्कड़ बहसें नहीं होती हैं। देवबंद जैसी बड़ी अल्पसंख्यक उपस्थिति वाली जगहों पर भी मुस्लिम वोट बैंक का मुद्दा प्रभावी होता नहीं दिख रहा है। कामरान कहते हैं कि हमारा मनोबल गिरा हुआ है। निसंदेह डर है। कौन जानता है कि इसका गलत अर्थ निकाला जाएगा और पुलिस को रिपोर्ट कर दी जाएगी। हम सदैव चिंतित, सावधान रहते हैं। इसके अलावा एक समय यहां कई सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक कारक थे, वह प्रभाव कम होता दिख रहा है। मेरठ कार्यालय में एक बड़ी शीशे वाली मेज के पीछे बैठे एक व्यस्त धर्मार्थ अस्पताल के निदेशक से सवाल किया गया कि क्या यूपी में मुसलमान शांत हो गए हैं? उनका जवाब आता है, निश्चित रूप से। शामली, बागपत, आगरा कहीं भी चले जाइए। आप पाएंगे कि हमारी आवाजें दबी हुई हैं। हम अनावश्यक ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहते। हम अब सबसे आगे नहीं आना चाहते। कोई भी पार्टी नहीं चाहती कि हम ‘चेहरा’ बनें। चतुराई से काम लेना बुद्धिमानी है, शोर-शराबा नहीं।

बुलंदशहर के सियाना में आम के बड़े बागों के मालिक एक व्यापारी ने इस बात पर सहमति जताई कि इस वक्त पर मुस्लिम की ज़ुबान तो बंद ही है। साथ ही, स्थानीय नेता या उम्मीदवार कहां हैं? हमें टिकट कौन दे रहा है? तो, हम किसके पक्ष में हैं? सहारनपुर, नगीना, बिजनौर, कैराना, पीलीभीत, रामपुर, मुरादाबाद और मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर शुक्रवार को मतदान होगा। इन सभी सीटों पर बड़ी संख्या में मुस्लिम वोटर हैं। पीलीभीत को छोड़कर इनमें से अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी 35 फीसदी से अधिक है।

कांग्रेस ने सहारनपुर में इमरान मसूद को मैदान में उतारा है। वहीं, कैराना में समाजवादी पार्टी के इकरा हसन और रामपुर में मोहिबुल्लाह नदवी मैदान में हैं। मायावती ने इरफान सैफी को मुरादाबाद से चुनाव लड़ने के लिए खड़ा किया है। मायावती ने पिछले हफ्ते मुजफ्फरनगर में एक रैली के दौरान कहा था कि वह अपनी पार्टी, बसपा से लड़ने के लिए एक मुस्लिम उम्मीदवार चाहती थीं, लेकिन कोई नहीं मिला… वे बहुत डरे हुए हैं।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे सलमान गौरी ने कहा कि एक तरह से मुसलमानों को अपना मुंह बंद रखने के लिए मजबूर किया गया है। कौन जेल जाना चाहता है? हमारे बीच इतने सारे गरीबों के साथ बोलकर अनावश्यक जोखिम लेना उचित नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हम ध्रुवीकृत चुनाव नहीं चाहते हैं। इसका मतलब होगा पहले से ही शक्तिशाली भाजपा को पहले से तैयार जीत सौंपना। देवबंद के मुफ्ती अरशद फारूकी जैसे कई समुदाय प्रमुखों और मौलवियों का कहना है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से मोहभंग का मतलब वोट देने से मोहभंग नहीं है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में लोकतांत्रिक प्रक्रिया हमारे लिए और अधिक कीमती हो गई है। मुझे यह स्पष्ट करने दीजिए। मुसलमानों से वोट डालने की अपील ईदगाहों, मस्जिदों, मदरसों से की गई है। ये अपीलें जारी रहेंगी।

धर्मार्थ अस्पताल के निदेशक भी मुसलमानों की चुप्पी को एक अलग नजरिए से पेश करते हैं। वे कहते हैं कि हमारा मसला विकास नहीं, वजूद का है। अर्थ समझाते हुए वे बताते हैं कि हमारा प्रमुख मुद्दा विकास नहीं है। यह अस्तित्व का मसला है। पहचान का मामला है। मुसलमान अब यह समझता है। वह उसी के अनुरूप मतदान करेंगे। नगीना लोकसभा सीट से आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और निर्दलीय उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद को लेकर दावा करते हैं कि अगर वे जीत जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नगीना आरक्षित सीट पर मुसलमानों की बड़ी आबादी है। वहीं, बीजेपी अल्पसंख्यक सेल के पश्चिमी यूपी उपाध्यक्ष कदीम आलम की एक अलग थ्योरी है। वे कहते हैं कि मुसलमानों को इस समय ऐसा लगता है जैसे वे गहरी नींद में हैं, क्योंकि वे भ्रमित हैं। वे किसे वोट देंगे? विपक्ष कहां है? यह सवाल हर किसी के मन में है।