आज हम आपको बताएंगे कि अखिलेश यादव सबसे रणनीतिक नेता क्यों कहे जाते हैं! लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव में पहले चरण का मतदान हो गया है। दूसरे चरण का मतदान होने को है। चुनाव धीरे-धीरे अपनी रंग पकड़ता दिख रहा है। लेकिन समाजवादी पार्टी अलग ही चुनौती से जूझ रही है। वैसे तो समाजवादी पार्टी ने चुनाव की तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी थी। संभावित प्रत्याशियों को लेकर फीडबैक आदि भी चल रहा था। लेकिन चुनाव आते-आते ये सारी रणनीति कहीं गुम सी हो गई दिखती है। स्थिति ये है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव खुद अपने चुनाव लड़ने का फैसला आखिरी समय पर ले सके। उन्होंने अपने भतीजे तेज प्रताप यादव का टिकट काटकर कन्नौज से अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। इस बार चुनाव पर नजर डाल लें तो समाजवादी पार्टी के खेमे में प्रत्याशी चयन को लेकर कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन दिखता है। पता नहीं चुनाव से पहले प्रत्याशियों को लेकर कैसा फीडबैक लिया गया कि नामांकन के आखिरी समय तक टिकट को लेकर असमंजस ही दिख रहा है। अभी तक के चुनाव में गौतमबुद्धनगर, मिश्रिख, मेरठ, बदायूं, मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, बागपत, सुल्तानपुर और अब कन्नौज तक प्रत्याशी बदल चुके हैं। बस एक संभल की सीट ऐसी थी, जहां सपा के प्रत्याशी शफीकुर्रहमान बर्क के देहांत के कारण उनके पोते और कुंदरकी से विधायक जियाउर्रहमान बर्क को टिकट दिया गया। इसी असमंजस ने कहीं न कहीं अखिलेश के रणनीतिक कौशल पर सवाल उठ रहे हैं। अपने नामांकन के बाद अखिलेश यादव ने सफाई दी कि पार्टी, नेता, कार्यकर्ता और सभी की भावनाएं यह थी कि समाजवादी पार्टी की तरफ से मुझे यहां से चुनाव लड़ाया जाए। मुझे उम्मीद है कि मुझे यहां से आशीर्वाद मिलेगा। अब सवाल ये उठता है कि क्या पार्टी, नेता, कार्यकर्ता की भावनाओं की जानकारी अखिलेश यादव को उस समय नहीं थी, जब उन्होंने अपने भतीजे तेज प्रताप यादव का नाम प्रत्याशी के रूप में घोषित किया था? ये सवाल इसलिए क्योंकि कन्नौज सीट से वो अनजान नहीं रहे हैं। चौबीस साल पहले यहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। इसके बाद वह 2012 तक यहां से लगातार सांसद रहे। उनकी पत्नी डिंपल यादव यहां से निर्विरोध चुनाव जीतीं। हालांकि 2019 में उनकी हार हुई। लेकिन ये सीट हमेशा से यादव परिवार का गढ़ मानी जाती रही।
गौतमबुद्ध नगर लोकसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस के साथ गठबंधन के तहत ये सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में आई थी। अखिलेश ने यहां से महेंद्र नागर को चुनाव मैदान में उतारा। महेंद्र दो साल पहले ही कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुए थे। इसके बाद लोकल सपा नेताओं की तरफ से महेंद्र नागर के विरोध की बात सामने आई। आखिरकार हफ्ते भर के अंदर महेंद्र नागर का टिकट काट दिया गया और उनकी जगह राहुल अवाना को सपा प्रत्याशी बनाया गया। लेकिन यहां भी राहुल आवाना के नाम पर विरोध खड़ा हो गया। उनकी उम्र और गुर्जर समाज के वोट नहीं मिलने के तर्क दिए जाने लगे। नोएडा से लेकर लखनऊ तक प्रत्याशी को लेकर कशमकश जारी रही आखिरकार सपा ने राहुल आवाना का टिकट काट दिया और वापस डॉ महेंद्र नागर को उम्मीदवार घोषित कर दिया।
सीतापुर जिले की मिश्रिख लोकसभा सीट पर तो गजब ही हाल देखने को मिला। यहां पहले रामपाल राजवंशी को टिकट दिया गया। उनके बाद उनके बेटे मनोज राजवंशी को सपा ने टिकट दिया। फिर मनोज का भी टिकट काटकर उनकी पत्नी संगीता राजवंशी को प्रत्याशी बना दिया गया। दिलचस्प बात ये रही कि आखिरकार संगीता का भी टिकट काट दिया गया और पूर्व सांसद राम शंकर भार्गव अब सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। अब राजवंशी परिवार की तरफ से निर्दलीय चुनौती देने की बात सामने आ रही है।
मुरादाबाद लोकसभा सीट पर भी इस बार असमंजस देखा गया। ये वो सीट थी, जिस पर 2019 के लोकसभा चुनाव में एसटी हसन ने समाजवादी पार्टी की लाज बचाई थी। यूपी में सपा सिर्फ 5 सीटें ही जीत सकी थी। इस बार भी एसटी हसन की ही दावेदारी मजबूत थी, उन्हें टिकट भी दे दिया गया। लेकिन इसके बाद नामांकन के आखिरी दिन एसटी हसन का टिकट काटकर रुचि वीरा को टिकट दे दिया गया। इसके पीछे आजम खान को कारण माना गया। एसटी हसन अखिलेश के इस फैसले के बाद मायूस दिखे।
बदायूं लोकसभा सीट की भी कुछ ऐसी ही कहानी रही। पहले अखिलेश यादव ने यहां अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया। धर्मेंद्र यहां से एक बार सांसद रह चुके हैं। लेकिन अचानक अखिलेश ने फैसला बदल लिया और धर्मेंद्र का टिकट काटकर उन्हें कन्नौज और आजमगढ़ का चुनाव प्रभारी बना दिया। इधर बदायूं सीट पर चाचा शिवपाल यादव को प्रत्याशी बना दिया गया। कुछ समय बाद धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ से टिकट दे दिया गया। शिवपाल ने यहां रोड शो से लेकर चुनाव प्रचार किया। लेकिन ऐन वक्त उनके बेटे आदित्य यादव टिकट दे दिया गया। इस फैसले के पीछे कहीं न कहीं शिवपाल यादव की ‘इच्छा’ को कारण माना गया।
इसी तरह बागपत में समाजवादी पार्टी ने पहले मनोज चौधरी को टिकट दिया। लेकिन कुछ समय बाद उनका टिकट काट दिया गया और अमर पाल शर्मा को प्रत्याशी बना दिया गया। बिजनौर में भी यही हुआ। यहां पहले पूर्व सांसद यशवीर सिंह को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया। इसके बाद नूरपुर से सपा विधायक राम अवतार सैनी के पुत्र दीपक सैनी को टिकट दे दिया। सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर भी यहां पहले अखिलेश यादव ने भीम निषाद को टिकट दिया फिर काट दिया। अब राम भुआल निषाद को उम्मीदवार बनाया है।