डल झील में शिकारे में बैठे हुए आप ठंडी हवा का आनंद ले रहे हैं। वाह, क्या सुकून मिल रहा है। झील के बीचों-बीच एक दाढ़ीवाला इंसान प्यार से आपको कश्मीरी कहवा पिलाता है। जब वो गरम-गरम चाय आपके गले से उतरती है तो आप आंख मूंद लेते हैं। इसी को जन्नत कहते हैं। खैर, श्रीनगर से निकलने से पहले आप टैक्सी वाले से कहते हैं, भाई मुझे कहवा जरूर खरीदना है। मुंबई में भी तो इसका मजा लेंगे। एक साल बाद, दिवाली की सफाई करते वक्त वो कहवा का पैकेट आपको मिलता है। ओहो, ये तो खोलना ही भूल गए। अब तो खराब हो चुका, फेंकना पड़ेगा। वैसे अगर आप खोल भी लेते, पी भी लेते, कोई खास फर्क ना होता। क्योंकि वो डल झील वाली फीलिंग नहीं आती। कश्मीरी कहवा का लुत्फ उस मौसम, उस नजारे से जुड़ा हुआ है, जो शहर के धुंए और कशमकश में हासिल ही नहीं हो सकता। यहां तो कड़क कटिंग चाय ही चलेगी। कहने का मतलब ये है कि जब हम छुट्टी मनाने जाते हैं, वहां की बहुत सारी चीजें हमें पसंद आती हैं। लगता है, इसे सूटकेस में डालकर घर ले जाएं। इसी तरह आजकल किसी भी हॉलिडे स्पॉट पर लोग एक ही जगह खड़े होकर 500 फोटो लेते हैं। क्योंकि मोबाइल में फोटो खींचने के कोई पैसे नहीं लगते। मैं सोचती हूं – इन फोटोज का होगा क्या! एक तो लेने के बाद आप सोशल मीडिया पर शेयर करेंगे। व्हाट्सएप ग्रुप में डालेंगे। लेकिन क्या आपने उन हसीन वादियों को सचमुच एन्जॉय किया? अगर करते तो मोबाइल की तरफ आपका ध्यान भी ना जाता। खैर, फोटो लेना कोई बुरी बात नहीं, लेकिन अगर ग्रुप में चार लोग हैं, क्या सबको अपने-अपने मोबाइल से फोटो लेना जरूरी है? इससे बेहतर है कि किसी एक को जिम्मेदारी सौंप दी जाए। या तो वो शख्स, जो फोटोग्राफी का शौकीन है, या वो जिसे अपने चेहरे से बहुत ज्यादा प्यार हो। बाकी लोग कैमरे के लेंस से नहीं, अपनी आंखों से उस नजारे का कैप्चर करें। अपने दिल-दिमाग में। कानों में चिड़िया की चहक, नाक में फूलों की महक। पैरों में ठंडी घास, फितरत का वो एहसास। कोई कैमरा उसे नहीं पकड़ सकता। सिर्फ आपकी रूह गवाह है। लेकिन ये तब महसूस होगा, जब आप वहां पूरी तरह से मौजूद हैं। उस पल को जी रहे हैं, उसका रस पी रहे हैं। भूतकाल या भविष्यकाल में नहीं, सिर्फ वर्तमान में। वैसे कहते हैं कि मनुष्य को ऐसे ही जीना चाहिए। क्योंकि जो हो चुका, वो हो चुका। जो होने वाला है, अभी हुआ नहीं। आप जिस पल को जी रहे हैं, उसी में गुंजाइश है। इसे बरबाद ना करो, ये फरमाइश है। चिंता करने का कोई फायदा नहीं, लेकिन दुनिया का कायदा वही। क्या हुआ, परेशान हो? आओ हमसे ज्ञान लो। हम भी कुछ कहेंगे। दुखड़ा अपना गाएंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं? लॉ ऑफ अट्रैक्शन मानते हैं? हर विचार में पावर है, मन एक टेलीकॉम टावर है। जिस फ्रीक्वेंसी पर दिमाग चलेगा, उसी का फल मिलेगा। दुःख-दर्द और रोना-धोना, इनसे कोई फायदा हो ना। कूड़ादान जहां मिल जाए, मक्खी को वहां ही पाएं। फूल जहां महक बिखराए, मधुमक्खी वहीं मंडराए। अपने मन की बगिया सुंदर बनाइए, जीवन का सच्चा आनंद पाइए। सही फ्रीक्वेंसी का सिग्नल कैच होगा, चाहत और असलियत मैच होगा। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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