नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने उम्रकैद की सजा काट रहे दोषियों में से एक ‘एजी पेरारिवलन’ को रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट का इस फैसले के बाद नलिनी श्रीहरन, मरुगन, एक श्रीलंकाई नागरिक सहित मामले में अन्य 6 दोषियों की रिहाई की उम्मीद भी जग गई है। राजीव गांधी हत्याकांड मामले में 7 लोगों को दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने सभी दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था। केंद्र सरकार ने राजीव गांधी हत्याकांड में 30 साल से ज्यादा कारावास की सजा काट चुके एजी पेरारिवलन की दया याचिका राष्ट्रपति को भेजने के तमिलनाडु के राज्यपाल के फैसले का बचाव किया था। कोर्ट में अतिरिक्त सालिसिटर जनरल केएम नटराज ने जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ को बताया कि केंद्रीय कानून के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा में छूट, माफी और दया याचिका के संबंध में याचिका पर केवल राष्ट्रपति ही फैसला कर सकते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे ए. जी. पेरारिवलन को न्यायालय ने यह देखते हुए नौ मार्च को जमानत दे दी थी कि सजा काटने और पैरोल के दौरान उसके आचरण को लेकर किसी तरह की शिकायत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट 47 वर्षीय पेरारिवलन की उस याचिका पर सुनाई कर रही थी, जिसमें उसने ‘मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेंसी’ (एमडीएमए) की जांच पूरी होने तक उम्रकैद की सजा निलंबित करने का अनुरोध किया था। तमिलनाडु के श्रीपेरुम्बदुर में 21 मई, 1991 को एक चुनावी रैली के दौरान एक महिला आत्मघाती हमलावर ने खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था जिसमें राजीव गांधी मारे गए थे। महिला की पहचान धनु के तौर पर हुई थी। न्यायालय ने मई 1999 के अपने आदेश में चारों दोषियों पेरारिवलन, मुरुगन, संथन और नलिनी को मौत की सजा बरकरार रखी थी। तमिलनाडु सरकार ने सितंबर 2018 में पेरारिवलन की रिहाई की सिफारिश की थी, लेकिन राज्यपाल ने दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेज दी थी. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को दया याचिका राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार नहीं है. पीठ ने साथ ही यह भी कहा था कि पेराविलन 30 साल जेल में बिता चुका है और अदालत ने पहले भी 20 साल से अधिक की सजा भुगतने वाले उम्र कैदियों के पक्ष में फैसले सुनाए हैं. इस मामले में भी कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.