कहां से शुरू हुई कहानी?
हिंदुओ का पलायन की नीव साल 1990 में पड़ी जब देश के गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद थे, जो शुरू से अलगावादी नेता थे, उनकी बेटी मेहबूबा मुफ़्ती को तो आप जानते होंगे , मुफ़्ती मोहम्मद सईद कश्मीर से नहीं यूपी के मुज्जफरनगर से चुनाव लड़ते थे। यहीं से शुरू हुआ था असली खेल।
मुफ़्ती मोहम्मद सईद के गृहमंत्री बनने के ठीक 6 दिन बाद उनकी दूसरी बेटी रुबिया सईद का अपहरण हो जाता है, अपहरण करने वाले पाकिस्तानी समर्थक आतंकी और आतंकी यासीन मलिक था। 5 दिन तक अपहरण का ड्रामा चला था, यह कोई अपरहण नहीं एक खेल था।किडनैप करने वालों ने रुबिया सईद को रिहा करने के बदले 5 आतंकियों को रिहा करने की डिमांड की थी।गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने आतंकियों की डिमांड पूरी कर दी और रुबिया सुरक्षित रिहा हो गई।जैसे ही आतंकी रिहा हुए, कश्मीर में हिन्दू विरोधियों के हौसले बुलंद हो गए,और कश्मीरी पंडितों पर इस्लामिक आतंकियों और वहां के लोगों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया।
आज मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी मेहबूबा मुफ़्ती किस सोच और विचारधारा की नेता है पूरा देश जनता है, आतंकियों का समर्थन करने वाली मेहबूबा के पिता भी उसी विचारधारा के थे।जब कश्मीर में नरसंहार चल रहा था तब राज्य में फारूक अब्दुल्ला की सरकार थी जिसमे एन वक़्त में पद छोड़ दिया था और लंदन भाग गया था,, 3 दिन तक कश्मीर में कोई सरकार नहीं थी।
अराजकता का दौर शुरू।
जैसा कि सबने सुना ही होगा 19 जनवरी , 1990 को रात क़रीब साढ़े 8 बजे मस्जिदों में लाउडस्पीकर के जरिए ऐलान हो रहे थे। सड़कों पर नारे लगाए जा रहे थे। कुछ नारे हिंदू (कश्मीरी पंडित) महिलाओं के ख़िलाफ़ भी लग रहे थे। इन हालात में कुछ कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़ कश्मीर से जाने लगे। अगले दिन हालात और बुरे होने लगे , सड़कों पर सन्नाटा पसरा था।
सबसे बड़ा सवाल लोगो के मन जो रहता है वो है की 1990 में किसकी सरकार थी :
जब कश्मीर में कश्मीरी हिन्दुओं का नरसंहार और पलायन हो रहा था। उस समय में केंद्र में कांग्रेस की बल्कि नेशनल फ्रंट सरकार में थी और विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे।
अब क्या हो रहा है कश्मीर घाटी में?
घाटी में लगातार हो रही हिंदुओं की हत्या से फैली दहशत, पंडितों ने फिर किया पलायन। क्या है मामला?कश्मीर घाटी के कुलगाम में गुरुवार को एक बैंक में घुसकर आतंकियों ने मैनेजर विजय कुमार की हत्या कर दी। बीते तीन दिनों में किसी हिंदू की यह दूसरी हत्या थी। इससे पहले मंगलवार को स्कूल टीचर रजनी बाला का मर्डर आतंकियों ने कर दिया था। यही नहीं राहुल भट की हत्या भी आतंकियों ने तहसील परिसर में ही घुसकर की थी। इन घटनाओं ने कश्मीरी पंडितों और प्रवासी लोगों में खौफ पैदा कर दिया है। इस बीची कश्मीरी पंडितों ने शुक्रवार से बड़ी संख्या में पलायन करने का फैसला लिया है। बैंक मैनेजर की जघन्य हत्या के बाद यह फैसला लिया गया है।
सरकार का क्या है प्लान?
कश्मीर में चल रहे टारगेट किलिंग से वहां के लोगो में धहस्त है। इस पर लोगो ने सरकार से अपनी सुरक्षा की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। सरकार ने भी इसको तुरंत संज्ञान लेते हुए घाटी से सरकारी कर्मचारियों को जम्मू ट्रांसफर कर दिया। और इस पर गृह मंत्रालय ने अपना रुख साफ करते हुए कहा कि वह इस स्तिथि पर नियंत्रण पा लिया है और एक भी आतंकी को छोड़ा नहीं जायेगा।
धारा 370 हटने के बाद पहली बार हुई आतंकी घटनाए।
मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को एक बड़ा कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष रूप से बनाई गई धारा 370 तथा अनुच्छेद 35-ए के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था। इसके बाद से अब तक कोई बड़ी आतंकी घटना नही हुई थी पर बीते दिनों घाटी का माहौल खराब हो गया है।
क्या है धारा 370?
370 हटने से पहले संसद को राज्य में कानून लागू करने के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार की मंजूरी की आवश्यकता है – रक्षा, विदेशी मामलों, वित्त और संचार के मामलों को छोड़कर वही इसके कानून के तहत जम्मू और कश्मीर के निवासियों की नागरिकता, संपत्ति के स्वामित्व और मौलिक अधिकारों का कानून शेष भारत में रहने वाले निवासियों से अलग है। अनुच्छेद 370 के तहत, अन्य राज्यों के नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं। अनुच्छेद 370 के तहत, केंद्र को राज्य में वित्तीय आपातकाल घोषित करने की कोई शक्ति नहीं है। यहां ये ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अनुच्छेद 370 (1) (सी) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 अनुच्छेद 370 के माध्यम से कश्मीर पर लागू होता है। अनुच्छेद 1 संघ के राज्यों को सूचीबद्ध करता है। इसका मतलब है कि यह अनुच्छेद 370 है जो जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संघ से जोड़ता है। अनुच्छेद 370 को हटाना, जो राष्ट्रपति के आदेश द्वारा किया जा सकता है, राज्य को भारत से स्वतंत्र कर देगा , जब तक कि नए अधिभावी कानून नहीं बनाए जाते।
इस कानून के खत्म होने के बाद ना केवल आतंकी बल्कि कश्मीरी नेताओ को अपनी जमीन जाती हुई दिखाई दे रही है। इसका ही एक कारण है कि वहां गैर मुस्लिम लोगो को निशाना बनाया जा रहा है।