औषधियों को हमारे बहुत ही ज्यादा उपयोगी माना गया है! कम्पिल्लक या कबीला एक सुन्दर हल्के लाल रंग का गन्धहीन और स्वादहीन पदार्थ है। यह ठण्डे पानी में नहीं घुलता है। यह उबलते हुए पानी में थोड़ा घुलता है और एल्कोहल तथा ईथर में पूरी तरह से घुल जाता है। आप कम्पिल्लक के बारे में शायद बहुत अधिक जानकारी नहीं रखते होंगे लेकिन आयुर्वेदिक ग्रंथों में कम्पिल्लक के उपयोग या कम्पिल्लक के फायदे के बारे में बहुत अच्छी-अच्छी बातें बताई गई हैं।
क्या आप जानते हैं कि कम्पिल्लक या कबीला रोगों को ठीक करने का काम करता है? नहीं! तो यह जान लीजिए कि कम्पिल्लक या कबीला भूख बढ़ाता है, घाव को ठीक करता है, पेट के कीड़े को खत्म करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके साथ ही कबीला या कम्पिलक का उपयोग पेट के रोग, डायबिटीज, कब्ज, आदि बीमारियों में भी किया जाता है। आइए जानते हैं कि आप कम्पिल्लक या कबीला का प्रयोग किस तरह से कर सकते हैं।
कम्पिल्लक के वृक्ष लगभग 10 मीटर तक ऊँचे और अनेक शाखा-प्रशाखाओं से युक्त तथा सदा हरे रहने वाले होते हैं। इस वृक्ष की लकड़ी लाल, चिकनी एवं मजबूत होती है। इसके फल गोलाकार तथा बीज श्यामले रंग के, चिकने और लगभग गोलाकार होते हैं।
फलों के पकते समय उन पर लालिमा युक्त चमकदार फल पराग उत्पन्न होता है। इसी को कबीला कहते है। फलों के पक जाने पर उन्हें मोटे कपड़े में डालकर रगड़ते हैं तथा इ तरह रज को अलग निकाल लिया जाता है।
शुद्ध कमीला हल्का, सुगन्धरहित, स्वाद रहित तथा लालिमायुक्त होता है। उँगली को जल में गीला कर कम्पिल्लक में रखने से जो रज उँगली में लगे उसे सफेद कागज पर रगड़ दें। यदि पीले रंग की रेखा व निशान पड़ जाए तो उसे शुद्ध मानना चाहिए।
टंकण, कम्पिल्लक तथा हरीतकी चूर्ण को समान मात्रा में मिला लें। इसे हरीतकी काढ़ा की भावना देते हुए 125 मिग्रा की वटी बना ले।, अब इस वटी को घी में घिसकर लेप करें। इससे कान के घाव ठीक होते हैं।
कम्पिल्लक (कबीला) फूल, सप्तपर्ण, साल, विभीतक, रोहितक, कुटज तथा कपित्थ की छाल को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। अब 5 ग्राम चूर्ण को मधु या आमलकी रस के साथ सेवन करें। इससे कफज तथा पित्तज दोष के कारण होने वाली डायबिटीज की परेशानी में तुरंत लाभ होता है!
टंकण, कम्पिल्लक तथा हरीतकी चूर्ण को समान मात्रा में मिला लें। इसे हरीतकी काढ़ा की भावना देते हुए 125 मिग्रा की वटी बना ले।, अब इस वटी को घी में घिसकर लेप करें। इससे कान के घाव ठीक होते हैं।
कम्पिल्लक (कबीला) भारत के उष्णकटिबंधीय भागों में पाया जाता है। यह सूखे प्रदेशों को छोड़कर 1500 मीटर तक की ऊँचाई पर, हिमालय से कश्मीर, पूर्व की ओर बंगाल, अंडमान द्वीप, सिंध से दक्षिण एवं पश्चिमी घाटों में पाया जाता है।काले जीरे की बारीक चूर्ण में कम्पिल्लक (कबीला) चूर्ण तथा घी मिला लें। इसे गले की गांठों पर लेप करने से गण्डमाला में लाभ होता है। 1 ग्राम कबीला में 125 मिग्रा हींग मिला लें। इसे पानी में पीसकर 125 मिग्रा की गोलियाँ बना लें। रोज 1 गोली को गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से पार्श्वशूल (पसली के दर्द) में लाभ होता है। 3 ग्राम कम्पिल्लक चूर्ण में मधु मिलाकर सेवन करें। इससे पेट साफ हो जाता है और शरीर के दोष बाहर निकल जाते हैं। इससे पित्तज-गुल्म में लाभ होता है।
1-2 ग्राम कम्पिल्लक चूर्ण में शर्करा अथवा मधु मिलाकर सेवन करने से गुल्म में लाभ होता है।
2 ग्राम कम्पिल्लक चूर्ण में बराबर मात्रा में गुड़ मिला लें। इसका सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं। इसे दूध अथवा दही के साथ भी ले सकते हैं।1 ग्राम कबीला चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चाटने से उदर-कृमि नष्ट हो जाते हैं।कम्पिल्लक (कबीला) फूल, सप्तपर्ण, साल, विभीतक, रोहितक, कुटज तथा कपित्थ की छाल को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। अब 5 ग्राम चूर्ण को मधु या आमलकी रस के साथ सेवन करें। इससे कफज तथा पित्तज दोष के कारण होने वाली डायबिटीज की परेशानी में तुरंत लाभ होता है।
कम्पिल्लक (कबीला) फूल, सप्तपर्ण, साल, विभीतक, रोहितक, कुटज तथा कपित्थ की छाल को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। अब 5 ग्राम चूर्ण को मधु या आमलकी रस के साथ सेवन करें। इससे कफज तथा पित्तज दोष के कारण होने वाली डायबिटीज की परेशानी में तुरंत लाभ होता है!
टंकण, कम्पिल्लक तथा हरीतकी चूर्ण को समान मात्रा में मिला लें। इसे हरीतकी काढ़ा की भावना देते हुए 125 मिग्रा की वटी बना ले।, अब इस वटी को घी में घिसकर लेप करें। इससे कान के घाव ठीक होते हैं।
कम्पिल्लक (कबीला) भारत के उष्णकटिबंधीय भागों में पाया जाता है। यह सूखे प्रदेशों को छोड़कर 1500 मीटर तक की ऊँचाई पर, हिमालय से कश्मीर, पूर्व की ओर बंगाल, अंडमान द्वीप, सिंध से दक्षिण एवं पश्चिमी घाटों में पाया जाता है।