मानसून आने वाला है, इकट्ठा हुआ बारिश का पानी मच्छरों के जीवन का सबसे बड़ा स्रोत है! मानसून अपने साथ कई तरह की बीमारियां लेकर आता है। वातावरण में नमी के कारण वायरस और बैक्टीरिया को पनपने के लिए यह सबसे उपयुक्त परिस्थियां हो जाती है, जिसके कारण बरसात के मौसम में कई तरह की बीमारियां बढ़ जाती है। बरसात का समय मच्छरों के प्रजनन के लिए भी काफी अनुकूल होता है, जिसके कारण डेंगू, मलेरिया और मच्छरों के कारण होने वाली कई तरह की बीमारियां बढ़ जाती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दक्षिण-पूर्व एशिया डेटा के मुताबिक इस क्षेत्र में सामने आने वाले मलेरिया के कुल मामलो में से 83 फीसदी केस अकेले भारत से ही रिपोर्ट किए जाते रहे हैं।
संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से मलेरिया की बीमारी होती है। बच्चों में इसकी गंभीर स्थिति जानलेवा भी हो सकती है। आमतौर पर इसके इलाज के लिए करीब दो सप्ताह तक की दवाइयां चलती हैं। हालांकि अब यह उपचार काफी आसान हो सकता है। जेएनयू के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी कैंडी/टॉफी का निर्माण किया है जो मलेरिया को ठीक करने में काफी मदद कर सकती है। विशेषकर बच्चों में मलेरिया के उपचार की दिशा में इसे बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है।
मलेरिया के उपचार के लिए प्रभावी दवाओं की खोज कर रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के शोधकर्ताओं की टीम ने एक अनोखी कैंडी विकसित की है।दावा किया जा रहा है कि यह मलेरिया के रोगियों पर उसी तरह से काम करेगी जिस तरह से अब तक इसके उपचार के लिए एंटीबायोटिक दवाओं को प्रयोग में लाया जाता रहा है। इस कैंडी को मलेरिया से पीड़ित बच्चों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है क्योंकि बच्चों के लिए लंबे समय तक दवा खाते रहना काफी कठिन होता है। शोधकर्ताओं की टीम ने इस कैंडी के बारे में बताया कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों को यह कैंडी दी जा सकती है। वैज्ञानिकों ने इस कैंडी के लिए एरिथ्रिटोल का इस्तेमाल किया। एरिथ्रिटोल को आमतौर पर स्वीटनर के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। शोधकर्ताओं की टीम ने पाया कि यह एक शक्तिशाली एंटीमलेरियल भी हो सकता है। मेडिकल की भाषा में समझें तो एरिथ्रिटोल शुगर-अल्कोहल एक प्रकार का कार्बनिक यौगिक है जिसका उपयोग खाद्य पदार्थों को मीठा बनाने के लिए किया जाता रहा है।
प्रीप्रिंट BioXRiv में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, एरिथ्रिटोल, मलेरिया परजीवी के विकास को रोक सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर हमारे अध्ययन को नियामकों से हरी झंडी मिलती है तो यह मलेरिया के प्रसार और इसके कारण हर साल होने वाली बड़ी संख्या में मौत को कम करने में विशेष भूमिका निभा सकती है। फिलहाल अध्ययन प्रीप्रिंट है और इसका रिव्यू किया जा रहा है।
जेएनयू के स्पेशल सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन की प्रोफेसर शैलजा सिंह ने अपने नए निष्कर्षों के बारे में बताया, जिन बच्चों को मलेरिया हो जाता है उन्हें लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता होती है। इतने दिनों तक बच्चों के लिए दवाइयां खाना कठिन होता रहा है, इसी को ध्यान में रखते हुए ये कैंडीज तैयार की गई है। हमने शोध में पाया कि अगर मलेरिया से पीड़ित बच्चों में इन कैंडीज के साथ आर्टीमिसिनिन थेरेपी को प्रयोग में लाया जाए तो इसके तेज और बेहतर परिणाम हो सकते हैं।
मलेरिया और डेंगू की समस्या मच्छरों के काटने से होती है। अधिकतर ऐसे स्थानों पर मच्छरों की तादाद अधिक होती है। जहां पर साफ-सफाई कम रहती है। जलभराव होता है। इसलिए आपके घरों के आसपास अगर जलभराव हो रहा है। तो जल की निकासी करें या गड्ढों को बंद कर दें। गड्ढों में भरा पानी नहीं निकाल पाते हैं। तो उसमें जला हुआ ऑयल डालें। ताकि मच्छर उसमें नहीं पनप सकेंगे।घर में मच्छरों से बचने के लिए नीम की पत्तियों का धुआं करें या फिर बाजार में मिलने वाले मच्छर नाशक अगरबत्ती आदि का उपयोग करें। इसी के साथ मच्छरदानी लगाकर सोए।
बारिश में घर की छतों पर रखे टूटे-फूटे बर्तन, टायर, कूलर आदि में पानी भरा जाता है और इस पानी में मच्छर पनपने लगता है। इसलिए इस दौरान टूटे-फूटे बर्तनों को हटा दें या फिर उन्हें उल्टा रख दें। ताकि उसमें पानी नहीं भरा सके। क्योंकि इन टूटे टूटे सामानों में होने वाले जलभराव में मच्छर पनपने लगते हैं। जो बीमारियों का घर करते हैं।
घर में उपयोग किया जाने वाला पानी भी खुला ना रखें। इस मौसम में पानी भी उबालकर पीएं। जिससे आपको किसी प्रकार की कोई बीमारी का भय नहीं रहेगा।नमी वाली जगह पर मच्छरों का अधिक प्रकोप रहता है। इसलिए अगर आपके घरों में सीलन, पानी का रिसाव आदि कोई समस्या है। तो उसे भी ठीक कराएं। ताकि मच्छरों के प्रकोप से बचा जा सके।
इस मौसम में बीमारियों से बचने के लिए फुल आस्तीन के कपड़े पहने। ताकि मच्छर आपको काट नहीं सके और मौसम से पड़ने वाला प्रभाव भी आप पर असर नहीं कर पाए।
उक्त उपाय करने के बाद भी अगर आप डेंगू या मलेरिया की चपेट में आ जाते हैं। तो तुरंत अपने निकट के अस्पताल में जांच कर उपचार करवाएं। शासकीय चिकित्सालय में इसकी निशुल्क जांच होती है और उपचार भी निशुल्क किया जाता है।