औषधियों को हमारे वैदिक विज्ञान में कई महत्वपूर्ण स्थान दिए गए हैं, जो हमारे शारीरिक स्वास्थ्य से लेकर मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं! अकरकरा का नाम बहुत कम लोगों को पता होगा। आप ये जानकर आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि अकरकरा के औषधीय और आयुर्वेदिक गुण अनगिनत हैं। आयुर्वेद में अकरकरा पाउडर और चूर्ण का उपयोग दवा के रूप में किया जाता है। अकरकरा को सिर दर्द, दांत दर्द, मुँह के बदबू, दांत संबंधी समस्या, हिचकी जैसे बीमारियों के लिए जादू जैसा काम करता है।आयुर्वेद में अकरकरा का प्रयोग लगभग 400 वर्षों से किया जा रहा है। यद्यपि चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रन्थों में इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता है, तथापि यह नहीं माना जा सकता कि यह बूटी भारतवर्ष में पहले नहीं होती थी।
अकरकरा के पौधे के फायदों के बारे में जितना कहेंगे कम ही होगा। अकरकरा के गुणों के कारण ये कई बीमारियों के लिए आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है।
अगर आपको काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है तो अकरकरा का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। अकरकरा के फायदे सिरदर्द से राहत दिलाने में बहुत मदद करता है।अकरकरा की जड़ या फूल को पीसकर, हल्का गर्म करके ललाट (मस्तक) पर लेप करने से मस्तक का दर्द कम होता है। इसके अलावा इसके प्रयोग से मुख की दुर्गंध भी दूर हो जाती है, एक बार के प्रयोग के लिए एक फूल या थोड़ा कम पर्याप्त होता है।
अगर दांत दर्द से परेशान हैं तो अकरकरा का इस तरह से सेवन करने पर जल्दी आराम मिलता है। 10 ग्राम अकरकरा की जड़ या पुष्प में 2 ग्राम कपूर तथा 1 ग्राम सेंधानमक मिलाकर, पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का मंजन करने से सब प्रकार के दंत दर्द से राहत मिलती है।
अकरकरा, माजुफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, काली मिर्च तथा सेंधानमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूड़ों के सभी रोग ठीक हो जाते हैं तथा मुख की दुर्गन्ध मिट जाती है। इसके अलावा अकरकरा का जड़ा या पुष्प, हल्दी तथा सेंधानमक को बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण में थोड़ा सरसों का तेल मिलाकर दाँतों पर मलने से दांत का दर्द कम होता है; साथ ही मुख-दुर्गन्ध व मसूढ़ों की समस्या भी दूर होती है। यह एक चमत्कारिक प्रयोग है।
अकरकरा की मूल को चबाने से अथवा मूल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से कवल एवं गण्डूष धारण करने से दंतकृमि (दांत में कीड़ा लगना), दांत दर्द आदि दंत रोगों वातजन्य मुख-रोगों तालु और गले के रोगों में बहुत लाभ होता है।
अकरकरा-चूर्ण को 250-500 मिग्रा की मात्रा में सेवन करने से बच्चों का कंठ स्वर सुरीला हो जाता है। अकरकरा मूल या अकरकरा-फूल को मुंह में रखकर चूस भी सकते हैं यह कण्ठ के लिए बहुत लाभकारी है।हिचकी आने पर आधा से एक ग्राम अकरकरा-मूल-चूर्ण को शहद के साथ चटाएं। हिचकी पर यह चमत्कारिक असर दिखाता है।अगर मौसम के बदलाव के कारण सूखी खांसी से परेशान है और कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है तो अकरकरा से इसका इलाज किया जा सकता है। 2 ग्राम अकरकरा एवं 1 ग्राम सोंठ का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है तथा अकरकरा चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से कफज विकारों में लाभ होता है। इसके अलावा दो भाग अर्जुन की छाल और एक भाग अकरकरा-मूल-चूर्ण, दोनों को मिलाकर, पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी आदि हृद्-विकारों में लाभ होता है।
हृदय संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करने के लिए हृदय का स्वस्थ होना भी जरूरी होता है। अकरकरा का इस तरह से सेवन करने पर ह्रदय को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है।
–दो भाग अर्जुन की छाल और एक भाग अकरकरा की जड़ का चूर्ण, दोनों को मिलाकर, पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, दर्द, कम्पन और कमजोरी आदि हृदय संबंधी रोगों में लाभ होता है।
-कुंजन, सोंठ और अकरकरा की 2-5 ग्राम मात्रा को 100 मिली पानी में उबालें, जब चतुर्थांश (1/4 भाग) काढ़ा शेष रह जाए तो इस काढ़े को नियमित रूप से पिलाने से घबराहट, नाड़ीक्षीणता, हृदय की कार्य शिथिलता आदि हृदय संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है।पेट संबंधी विभिन्न बीमारियों जैसे पेट दर्द,पेट फूलना,अपच, बदहजमी जैसे बीमारियों में अकरकरा का सेवन फायदेमंद होता है।अकरकरा मूल-चूर्ण और छोटी पिप्पली-चूर्ण को समान मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी भुनी हुई सौंफ मिलाकर, आधा चम्मच सुबह शाम भोजनोपरांत (खाना खाने के बाद) खाने से उदररोगों या पेटदर्द में लाभ होता है।