महाराष्ट्र में चल रही उठापटक तो आपने सुनी ही होगी! उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में अपना इस्तीफा राज्य के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को राजभवन में सौंप दिया है। एक तरफ भाजपा ने यहां सरकार बनाने की कवायद तेज कर दी है तो शिंदे गुट के विधायक गोवा पहुंच चुके हैं। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की थी। उन्होंने मंगलवार शाम राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात भी की थी। राजभवन ने बयान जारी कर बताया कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। उन्होंने वैकल्पिक व्यवस्था होने तक उद्धव को मुख्यमंत्री पद पर बने रहने को कहा है।
उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में अपना इस्तीफा राज्य के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को राजभवन में सौंपा और वह राजभवन से निकल चुके हैं।उद्धव ठाकरे खुद कार चलाकर राजभवन पहुंचे हैं। ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को सौंपने के लिए राजभवन पहुंचे हैं। इस समय उनके साथ आदित्य ठाकरे भी मौजूद हैं। वहीं राजभवन के बाहर बारिश हो रही है और बड़ी संख्या में सड़कों पर शिवसैनिक भी मौजूद हैं।
महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने बताया कि जो (शिवसेना के बागी विधायक) कल मुंबई पहुंच रहे थे, मैं उनसे कल नहीं आने का आग्रह करता हूं, वे शपथ ग्रहण के दिन आएं।शिंदे गुट के विधायक गोवा पहुंचे। हालांकि उद्धव ठाकरे के इस्तीफा देने के बाद अब कल विधानसभा में बहुमत परीक्षण के आसार नहीं हैं।
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ राज्य भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल और पार्टी के अन्य नेता मुंबई के ताज प्रेसिडेंट होटल में एक विधायक बैठक के लिए पहुंचे। उद्धव के इस्तीफा देते ही यहां जश्न का दौर शुरू हो गया।
शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, अब अग्निपरीक्षा की घड़ी है, ये दिन भी निकल जाएंगे। उद्धव ठाकरे ने सीएम पद से इस्तीफा देने का एलान कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ने की घोषणा की। फेसबुक के जरिए दिए संबोधन में उन्होंने कहा कि शिवसेना को किसी को छीनने नहीं देंगे। सीएम उद्धव ठाकरे इसे लेकर कुछ ही देर में फेसबुक लाइव के जरिए अपनी बात लोगों के सामने रख रहे हैं। कहा- मैं संतुष्ट हूं कि हमने आधिकारिक तौर पर औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव कर दिया है। ये बालासाहेब ठाकरे द्वारा नामित शहर हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद एनसीपी नेताओं नवाब मलिक और अनिल देशमुख को कल महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत परीक्षण की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दी।सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु की याचिका पर नोटिस जारी किया और कहा कि कल का शक्ति परीक्षण वर्तमान याचिका के परिणाम के अधीन होगा। कोर्ट उनकी याचिका पर 11 जुलाई को सुनवाई करेगा।उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के साथ ही गुरुवार को होने वाले बहुमत परीक्षण अब नहीं होगा। राज्य में अब नई सरकार के गठन की कवायद शुरू होगी। राज्यपाल अब सबसे बड़े दल यानी भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दे सकते हैं। हालांकि, हालात को देखते हुए भाजपा खुद भी सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है। भाजपा के खेमे में अभी से जश्न शुरू हो गया है। इससे साफ है कि भाजपा अब सरकार बनाने के करीब है।
शिवसेना के बागी विधायक लगातार भाजपा के साथ गठबंधन की बात करते रहे हैं। ऐसे में ये बागी गुट भाजपा को समर्थन देगा ये तय माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि बागी विधायक नई सरकार का भी हिस्सा होंगे। एकनाथ शिंदे को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। उद्धव ठाकरे सरकार में बागी गुट के नौ विधायक मंत्री थे। नई सरकार में ये संख्या बढ़ सकती है।
बागी विधायक लगातार कह रहे हैं कि वो शिवसेना में हैं। यानी, बागी विधायक शिवसेना पर भी दावा ठोक रहे हैं। संख्या बल की बात करें तो बागी गुट के पास विधायकों के साथ ज्यादातर सांसदों का भी समर्थन बताया जा रहा है। पार्टी पर दावे की लड़ाई अगर बढ़ती है तो मामला चुनाव आयोग भी जा सकता है। इस स्थिति में चुनाव आयोग तय करेगा की असली शिवसेना किसके पास है, 1968 का इलेक्शन सिंबल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर चुनाव आयोग (ईसी) को किसी पार्टी के चुनाव चिह्न पर फैसला लेने की छूट देता है। इसी नियम के तहत ईसी किसी पार्टी का चुनाव चिह्न तय करता है और इसके बंटवारे पर भी फैसला सुनाता है।
अगर किसी रजिस्टर्ड और मान्यता प्राप्त पार्टी के दो धड़े बन जाते हैं तो इलेक्शन सिंबल ऑर्डर का पैरा 15 कहता है कि चुनाव चिह्न किसे मिलेगा, इसका फैसला सुनाने के लिए निर्वाचन आयोग पूरी तरह स्वतंत्र है। यह भी हो सकता है कि ईसी चुनाव चिह्न किसी को न दे।
इस नियम के मुताबिक, “चुनाव आयोग एक ही पार्टी में दो विपक्षी धड़ों की बात को पूरी तरह सुनेगा और सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करेगा। इसके अलावा ईसी दोनों धड़ों के प्रतिनिधियों को भी सुनेगा। जरूरत पड़ी तो आयोग तीसरे पक्ष को भी सुन सकता है और फिर चुनाव चिह्न किसी एक धड़े को देने या न देने से जुड़ा फैसला सुना सकता है।” इस नियम की सबसे खास बात यह है कि आयोग का फैसला सभी पक्षों के लिए सर्वमान्य होगा।